मंगलवार का दिन और वह भी सुबह 4.30 बजे, इस लिहाज से वहां बहुत लंबी कतार थी। आमतौर पर मंगलवार एवीएशन इंडस्ट्री के लिए कम ट्रैफिक का दिन माना जाता है। यही कारण है कि इतनी लंबी कतार देखकर मैं चौक गया। एयरपोर्ट के सभी चैक-इन काउंटर्स पर खासकर प्रीमियर क्लास में भी लंबी लाइन थी। मैं इस अखबार की नॉलेज सीरिज में शामिल होने मुंबई से भोपाल होते हुए होशंगाबाद जा रहा था। यह
पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मेरे आगे जो नौजवान कतार में लगा था वह काफी अधीर हो रहा था, क्योंकि वह काउंटर से काफी दूर था। अच्छे वस्त्र पहना वह व्यक्ति मुझे किसी कंपनी का सीईओ या डायरेक्टर लग रहा था। वह लगातार फोन पर अपने स्टाफ के किसी व्यक्ति को अपने दिनभर के प्लान के बारे में निर्देश दे रहे था। दूसरी ओर जो व्यक्ति था वह निर्देश ले रहा था, वह भी सुबह 4.30 बजे। चूंकि 12 मिनट से हम उसी स्थान पर खड़े थे और कतार आगे नहीं बढ़ रही थी, नौजवान ने एक एयरलाइन कर्मचारी को बुलाया और उससे कहा कि पता लगाएं कि इस कतार में खड़े कुछ लोग प्रीमियर क्लास के हैं भी या नहीं। उसका मानना था कि जो लोग अच्छे कपड़े नहीं पहने हैं( संभव है अच्छे से मतलब हो सूट और बूट) वे प्रीमियर क्लास के नहीं होंगे और इसलिए उन्हें जनरल क्लास की कतार में ले जाया जाना चाहिए।
हालांकि, जनरल क्लास की कतार पहले से ही काफी लंबी थी। नौजवान ने काफी विनम्रता से ही अनुरोध किया था। स्टाफ की ओर से जवाब मिला 'अगर उनके पास प्रीमियर क्लास का टिकट नहीं होगा तो कांउटर क्लर्क उन्हें जनरल क्लास काउंटर की ओर भेज देगा'। उसने उस महिला कर्मचारी से कहा कि 'बिल्कुल, यही मैं कह रहा हूं अगर आप उन लोगों को कतार से निकाल देंगी तो प्रीमियर क्लास के असली यात्रियों को अपने बोर्डिंग पास जल्दी मिल जाएंगे।' जब यह तर्क और उनके जवाबों का आदान-प्रदान दोनों के बीच हो रहा था एक युवक चुपचाप इस स्थिति का वीडियो ले रहा था। यह देखकर मैं आश्चर्य में पड़ गया। जब मैंने उससे इस मामूली बातचीत का वीडियो बनाने का कारण पूछा तो उसका रूखा-सा जवाब था कि कौन जानता है कि कौन-सी परिस्थिति दिलचस्प और रोचक स्क्रिप्ट बन जाए।
ऐसे समय में जब स्मार्टफोन सर्वव्यापी हो चुका है और सोशल मीडिया जरूरत बना चुका है, सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर वीडियोज का वायरल होना अवश्यंभावी हो गया है। एक तरफ डिजिटल दुनिया में नए जमाने के प्लेटफॉर्म का कब्जा है। दूसरी तरफ 2017 तक भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 50 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। 2013 के बाद से इसमें 20 करोड़ की बढ़ोतरी हो चुकी है। डिजिटल माध्यम अपनी कई उपयोगिताओं के कारण आकर्षित करता है, रचनात्मक संदेशों से लेकर बातचीत के प्लेटफॉर्म तक और साथ ही रचने वालों और यूजर से लेकर फॉलोअर तक के व्यक्तित्व के विकास में मदद के कारण तक। विविध फायदों और उपयोग करने वालों की बढ़ती संख्या टैक सेवी ऑडियंस की लालसा को दर्शाती है, जो अलग-अलग अपडेट्स, कहानियों, फोटोज पर दाद चाहते हैं। सिर्फ कुछ ही लाइक या री-ट्वीट पर भी इसका असर कई गुना हो जाता है, जो उन्हें उत्साहित कर देता है। और यही कारण है कि कुछ अति उत्साही लोग जाने-अनजाने ही आम लोगों की निजता में दखल देते हैं। हालांकि, यह माध्यम साथियों के लाइक हासिल करने के लिए रोमांचक है, लेकिन इसके लिए सामग्री जुटाना गड़बड़ियों से भरा ही रहेगा, जब तक कि कुछ नियम बन जाए। तब तक हम जैसे सभी आम पुरुषों और महिलाओं को सोशल मीडिया पर अपने व्यवहार के प्रति सतर्क रहना होगा, क्योंकि कई डिजिटल प्लेटफॉर्म इंतजार में बैठे हैं।
फंडा यह है कि अपने सोशल व्यवहार पर नजर रखिए और उसे विनम्र और शांत बनाए रखिए ताकि कहीं आप डिजिटल प्लेटफॉर्म की लगातार बढ़ती भूख का शिकार हो जाएं। कहीं
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साभार: भास्कर समाचार
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