रिक ग्लैडस्टोन, एडिटर फारेन डेस्क
सात दशकोंमें पहली बार परमाणु युद्ध को टालने के प्रयास में एक वैश्विक संधि हुई है और इसके पैरोकारों का कहना है कि यदि यह सफल हुई तो अंतत: सारे परमाणु हथियार नष्ट हो जाएंगे और उनके इस्तेमाल पर हमेशा
के लिए पाबंदी लग जाएगी। संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्यों में से दो-तिहाई का प्रतिनिधित्व कर रहे वार्ताकारों ने महीनों की बातचीत के बाद दस पेज की संधि को अंतिम रूप दिया। ट्रीटी ऑन प्रोहिबिशन ऑफ न्यूक्लियर वैपन्स (परमाणु शस्त्रों पर रोक लगाने संबंधी संधि) नामक दस्तावेज संयुक्त राष्ट्र में बातचीत के अंतिम सत्र के दौरान औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया। संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक महासभा के दौरान 20 सितंबर से यह सदस्य राष्ट्रों के दस्तखत के लिए उपलब्ध रहेगा और 50 देशों की पुष्टि के बाद यह 90 दिनों के भीतर कानूनी रूप अख्तियार कर लेगा। सात दशकोंमें पहली बार परमाणु युद्ध को टालने के प्रयास में एक वैश्विक संधि हुई है और इसके पैरोकारों का कहना है कि यदि यह सफल हुई तो अंतत: सारे परमाणु हथियार नष्ट हो जाएंगे और उनके इस्तेमाल पर हमेशा
अमेरिका और इसके पश्चिम के इसके निकट के साथी देशों सहित कुछ आलोचकों ने पूरे प्रयास को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह तर्कहीन और पथभ्रष्ट प्रयास है खासतौर पर तब जब उत्तर कोरिया ने अमेरिका पर परमाणु मिसाइल हमले की धमकी दी है। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी दूत निकी हैले ने कहा- 'हमें यथार्थवादी होना चाहिए। क्या कोई ऐसा है, जो सोचता है कि उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाएगा?' संधि को स्वीकार करने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने कहा, 'इस पर दस्तखत करने, इसकी पुष्टि करने या किसी तरह से इसमें सहभागी होना का हमारा कोई इरादा नहीं है।' परमाणु प्रतिरोध को जरूरी बनाने वाली सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखे बगैर लाए गए प्रतिबंध से एक भी परमाणु हथियार खत्म नहीं होगा और तो किसी देश की सुरक्षा बढ़ेगी और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा।
निरस्त्रीकरण समूह और संधि के अन्य पैरोकारों ने कहा है कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि परमाणु हथियारों से लैस कोई देश इस पर हस्ताक्षर करेगा। समर्थकों को उम्मीद है कि अन्य जगहों पर व्यापक रूप से स्वीकारे जाने पर जनमत का दबाव बढ़ेगा और ये देश अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने पर मजबूर होंगे। जेनेवा स्थिति समूह इंटरनेशनल कैम्पेन टू एबॉलिश न्यूक्लियर वेपन्स की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बैट्रिस फिन कहते हैं- संधि परमाणु हथियारों पर स्पष्ट पाबंदी के समान है और मानवीय कानूनों पर आधारित है।' जैविक, रासायनिक हथियारों, भूमिगत सुरंगों और क्लस्टर बम पर प्रतिबंध लगाने वाली संधियां बताती हैं कि कैसे जो हथियार एक समय में स्वीकार्य थे अब पूरी दुनिया में व्यापक तौर पर अस्वीकार्य हो गए हैं। परमाणु प्रतिबंध संधि के पैरोकारों को इससे नतीजे की उम्मीद है। संधि का समर्थक वाशिंगटन स्थिति समूह आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डेरिल जी किम्बेल कहते हैं- संधि से रातोरात परमाणु हथियार खत्म तो नहीं होंगे पर समय के साथ यह संधि परमाणु हथियारों को अवैध बना देगी।'
-द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद परमाणु हथियारों का प्रसार रोकने के सारे प्रयास नाकाम रहे हैं। इससे परमाणु हथियारों की होड़ बढ़ी है और यह सिद्धांत सामने आया कि परमाणु हमला रोकने का एकमात्र तरीका यही है कि हमलावर का विनाश भी निश्चित हो। इस सिद्धांत के पैरोकारों का कहना है कि इसमें पिछले 70 वर्षों में विनाशकारी महायुद्ध को टालने में मदद की है।
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साभार: भास्कर समाचार
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