एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: सावित्री बाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी (एसपीपीयू) में पढ़ने वाले फार्मेसी के कोई पचास विद्यार्थियों को चिंतित होने का कारण है। बी फार्मा कोर्स के तीसरे साल का अंतिम पेपर 2 जून को हुआ और अपने कार्यक्रम के
मुताबिक यूनिवर्सिटी रिजल्ट घोषित करने में कम से कम 45 दिन लेती है। लेकिन आगे पढ़ाई जारी रखने वाले ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए फार्मेसी में बेचलर्स डिग्री हासिल करने के बाद मोहाली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एनआईपीईआर) अगला पसंदीदा पड़ाव होता है। कुछ छात्रों ने एनआईपीईआर की एमबीए प्रवेश परीक्षा पास कर ली है, जबकि शेष एमएस फार्मेसी टेस्ट में कामयाब रहे हैं। इन सबकी काउंसलिंग और प्रवेश की प्रक्रिया 14 और 17 जुलाई के बीच पूरी होनी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यदि मान लें कि पुणे की एसपीपीयू सारे रविवार और छुट्टी के दिन मिलाकर भी 45 दिन लेती है तो भी 17 जुलाई के पहले रिजल्ट की घोषणा नहीं हो सकती। लेकिन, कुछ छात्रों की काउंसलिंग 14 जुलाई को है और एनआईपीईआर ने जोर देकर कहा है कि इंटरव्यू के लिए आने वाले छात्रों के पास उस दिन प्रमाणीकृत रिजल्ट होना चाहिए। बी फार्मा में तीन साल और फिर प्रवेश परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत करने के बाद कुछ छात्र बहुत विचलित थे कि दोनों संस्थानों के कार्यक्रमों में टकराव के कारण उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाएगा। एनआईपीईआर सारी औपचारिकताएं जल्द पूरी करना चाहता है ताकि पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया जा सके।
14 जुलाई को काउंसलिंग में भाग लेने वाले दो छात्र ने एसपीपीयू के कुलपति नितिन कर्मालकर से अजीब अनुरोध किया कि वे उनके नतीजों की जल्दी घोषणा करें ताकि उनका साल बर्बाद हो। यह ऐसा अनुरोध था कि कोई भी अधिकारी इसे सुनते ही खारिज कर देता पर कर्मालकर ने एनआईपीईआर के डायरेक्टर से चर्चा के बाद शनिवार को इन दो छात्रों के लिए गोपनीय मार्कशीट जारी की, जिनका काउंसलिंग सेशन 14 जुलाई को है। सिलबंद लिफाफे में मौजूद ये मार्कशीट्स केवल यूनिवर्सिटी के मुखिया या उनके द्वारा मनोनित व्यक्ति ही देख सकेगा और छात्रों को उनके रिजल्ट तब तक मालूम नहीं पड़ेंगे, जब तक कि आधिकारिक रूप से उनकी घोषणा नहीं हो जाती। इस तरह विद्यार्थियों का काम भी बन गया और गोपनीयता भी कायम रही।
कर्मालकर का स्टाफ इस वक्त ऐसे विद्यार्थियों की मदद करने के लिए दिन-रात काम कर रहा है, जिनकी आगे की शिक्षा में नतीजों में देरी होने से अड़चन जाएगी। इस मंगलवार को विद्यार्थी एनआईपीईआर का कन्फर्मेशन लेटर और अपने हॉल टिकट दिखाकर गोपनीय रिजल्ट प्राप्त कर सकेंगे। यूनिवर्सिटी ने शिक्षा की भावना को समझते हुए यह अपूर्व कदम उठाया। गौरतलब है कि एनआईपीईआर फार्मास्यूटिकल साइंसेस का पहला राष्ट्रीय स्तर का स्वायत्त संस्थान है, जिसमें सिर्फ 1500 सीटें हैं।
स्टोरी 2: यह लेख पढ़ रहा हममें से हर व्यक्ति सिर्फ यह जानता है कि आरटीई का मतलब क्या होता है बल्कि इस कानून को बनाने के पीछे की भावना क्या थी यह भी समझता है। यह सारे आर्थिक वर्गों को एक ही कक्षा में लाने का प्रयास था। आश्चर्य की बात है कि पिछले हफ्ते अहमदाबाद में यह उजागर हुआ कि अच्छे स्कूलों में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए संपन्न वर्गों के पालकों ने फर्जी दस्तावेज देकर आरटीई के तहत ऐसा करने की कोशिश की। उनके बच्चों को प्रवेश मिल भी गया लेकिन, फिर वे पीछे हट गए और उन्होंने अपने बच्चों को 15 हजार से 45 हजार रुपए की फीस चुकाकर अन्य स्कूलों प्रवेश दिला दिया, क्योंकि अधिकारियों को उनकी वास्तविक आर्थिक हैसियत का पता चल गया था।
कक्षा आठवीं तक आरटीई के तहत प्रवेश हमेशा विवाद का विषय रहा है। इस मामले में स्कूलों ने मामलातदार के ऑफिस को दोष दिया कि उसने जमा किए दस्तावेजों की वैधता की जांच नहीं की और उधर राज्य के शिक्षा मंत्री ने फर्जी दस्तावेज देकर अधिकारियों को धोखा देने के आरोप में पालकों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्णय लिया है। इस कार्रवाई का जो भी नतीजा हो, मुझे तो यह आश्चर्य होता है कि पालक झूठ की नींव पर अपने बच्चों का भविष्य बनाने की बात सोच कैसे सकता है। जब यह बच्चा बड़ा होकर कुछ बन जाता है अथवा नहीं भी बनता है और उसे सच्चाई पता चलती है तो वह क्या सोचेगा?।मुझे पक्का भरोसा है कि उनमें कम से कम शिक्षा की भावना तो तब तक मर चुकी होगी।
फंडा यह है कि नियम-कानूनकिसी खास भावना को बनाए रखने के लिए निर्मित किए जाते हैं। कानून चाहे रखे पर कम से कम अच्छे लोग तो उस भावना का सम्मान करते ही हैं। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
कर्मालकर का स्टाफ इस वक्त ऐसे विद्यार्थियों की मदद करने के लिए दिन-रात काम कर रहा है, जिनकी आगे की शिक्षा में नतीजों में देरी होने से अड़चन जाएगी। इस मंगलवार को विद्यार्थी एनआईपीईआर का कन्फर्मेशन लेटर और अपने हॉल टिकट दिखाकर गोपनीय रिजल्ट प्राप्त कर सकेंगे। यूनिवर्सिटी ने शिक्षा की भावना को समझते हुए यह अपूर्व कदम उठाया। गौरतलब है कि एनआईपीईआर फार्मास्यूटिकल साइंसेस का पहला राष्ट्रीय स्तर का स्वायत्त संस्थान है, जिसमें सिर्फ 1500 सीटें हैं।
स्टोरी 2: यह लेख पढ़ रहा हममें से हर व्यक्ति सिर्फ यह जानता है कि आरटीई का मतलब क्या होता है बल्कि इस कानून को बनाने के पीछे की भावना क्या थी यह भी समझता है। यह सारे आर्थिक वर्गों को एक ही कक्षा में लाने का प्रयास था। आश्चर्य की बात है कि पिछले हफ्ते अहमदाबाद में यह उजागर हुआ कि अच्छे स्कूलों में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए संपन्न वर्गों के पालकों ने फर्जी दस्तावेज देकर आरटीई के तहत ऐसा करने की कोशिश की। उनके बच्चों को प्रवेश मिल भी गया लेकिन, फिर वे पीछे हट गए और उन्होंने अपने बच्चों को 15 हजार से 45 हजार रुपए की फीस चुकाकर अन्य स्कूलों प्रवेश दिला दिया, क्योंकि अधिकारियों को उनकी वास्तविक आर्थिक हैसियत का पता चल गया था।
कक्षा आठवीं तक आरटीई के तहत प्रवेश हमेशा विवाद का विषय रहा है। इस मामले में स्कूलों ने मामलातदार के ऑफिस को दोष दिया कि उसने जमा किए दस्तावेजों की वैधता की जांच नहीं की और उधर राज्य के शिक्षा मंत्री ने फर्जी दस्तावेज देकर अधिकारियों को धोखा देने के आरोप में पालकों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्णय लिया है। इस कार्रवाई का जो भी नतीजा हो, मुझे तो यह आश्चर्य होता है कि पालक झूठ की नींव पर अपने बच्चों का भविष्य बनाने की बात सोच कैसे सकता है। जब यह बच्चा बड़ा होकर कुछ बन जाता है अथवा नहीं भी बनता है और उसे सच्चाई पता चलती है तो वह क्या सोचेगा?।मुझे पक्का भरोसा है कि उनमें कम से कम शिक्षा की भावना तो तब तक मर चुकी होगी।
फंडा यह है कि नियम-कानूनकिसी खास भावना को बनाए रखने के लिए निर्मित किए जाते हैं। कानून चाहे रखे पर कम से कम अच्छे लोग तो उस भावना का सम्मान करते ही हैं। Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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