Wednesday, April 3, 2019

असमंजस में ब्रिटेन, डेडलाइन के बाद भी ब्रेग्जिट पर नहीं नहीं बन पा रही सहमति

साभार: जागरण समाचार 
23 जून 2016 को हुए जनमत सर्वेक्षण के बाद ब्रिटेन ने यूरोपीय यूनियन से अलग होने का फैसला लिया। जनमत सर्वेक्षण में शामिल मतदाताओं में से 51.9 फीसद ने ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने के
पक्ष में मतदान किया था। 
असमंजस में ब्रिटेन, डेडलाइन के बाद भी ब्रेग्जिट पर नहीं नहीं बन पा रही सहमतिइस सर्वेक्षण के ठीक अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपने पद से इस्तीफा दिया और फिर थेरेसा मे को सरकार बनाने का मौका मिला। इसके बाद से लेकर अब तक का करीब दो सालों का समय इस बात को तय करने में निकल चुका है कि ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन से कैसे बाहर निकलेगा? वह सुरक्षित रास्ता क्या होगा ताकि ब्रेग्जिट के बाद की चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना किया जा सके।
डेविड डेविस को इस पूरे मामले का प्रभारी बनाया गया है, जिनकी निगरानी में ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के बीच ब्रिटेन के बाहर निकलने के तरीकों को लेकर बातचीत हो रही है। हालांकि, अभी तक यूरोपीय यूनियन को छोड़ने या सुरक्षित ब्रेग्जिट के विकल्पों को खोजने में असफलता ही हाथ लगी है।
ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर होने की डेडलाइन 29 मार्च थी, जिसे पूरा नहीं किया जा सका। इसके बाद ब्रिटिश संसद ने ब्रेग्जिट समझौते को तय डेडलाइन से आगे ले जाने के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया है। हालांकि, इस प्रस्ताव के अमल में आने के लिए यूरोपीय संघ के सभी 27 देशों की सहमति की जरूरत होगी।
इसके बाद ब्रिटेन के सांसदों ने यूरोपीय संघ के साथ सरकार के तीन समझौतों को खारिज करने के बाद ब्रेग्जिट के चार संभावित वैकल्पिक योजनाओं के खिलाफ भी वोट कर चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ, ब्रिटिश सांसदों के एक समूह ने ब्रेग्जिट करार को खारिज करने का भी अनुरोध किया है। कंजरवेटिव सांसद बिल कैश ने सांसदों के समूह की ओर से कहा कि हमारे खुद के कानूनी आकलन के आलोक में हम आज सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने की सिफारिश नहीं कर सकते।
गौरतलब है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री मे ने ब्रेक्जिट समझौते पर अपनी कन्जर्वेटिव पार्टी के सांसदों से अपील की थी कि वे अपनी 'निजी प्राथमिकताओं' को दरकिनार कर समझौते पर एकजुट हों। अगर ब्रिटेन बिना किसी समझौते के यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलता है तो उनकी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। इससे देश और यूरोपीय संघ में रोजगार की स्थिति पर भी असर होगा।