Wednesday, April 3, 2019

मुख्यमंत्री मनोहर लाल और राव इंद्रजीत सिंह की राजनीतिक केमिस्ट्री नहीं खा रही मेल: देखो क्या होता है

साभार: जागरण समाचार 
रहट चाल। मुख्यमंत्री मनोहरलाल व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के राजनीतिक रिश्तों को यही नाम दिया जा सकता है। अठारह बीतते-बीतते लग रहा था उन्नीस में सब कुछ ठीक-ठाक रहेगा, लेकिन कुछ महीनों की चुप्पी
के बाद सोमवार को गुरुग्राम के पचगांव में हुई मुख्यमंत्री की जनसभा में राव की गाड़ी घूमकर फिर वहीं खड़ी हो
गई है, जहां से चली थी। ठीक रहट के पहिए की तरह। मनोहर और राव की राजनीतिक केमेस्ट्री मेल नहीं खा रही है।  
अनुशासन के नजरिए से देखें तो सोमवार को दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक झगड़े जैसा ऐसा कुछ नहीं था जो सुर्खियां बनता। मगर फूट और अहम के टकराव से जोड़कर देखें तो भरपूर सामग्री थी। यह सारी स्थिति इसलिए पैदा हुई क्योंकि बिना राव के तालमेल के गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र में जनसभा तय कर दी गई। अगर इसे सामान्य ढंग से लिया जाता तो हर लोकसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री की जनसभा चल ही रही है। पार्टी ने यहां भी तय कर दी तो क्या हो गया, लेकिन छोटी-छोटी बातों से मामला असामान्य हो गया। चुनावी गणित हल करने के दोनों नेताओं के फामरूले अलग-अलग हैं।
सूत्रों के अनुसार राव इंद्रजीत गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र में फ्री हैंड चाहते हैं, जबकि मुख्यमंत्री मनोहरलाल पार्टी का प्रभुत्व चाहते हैं। मनोहर के लिए व्यक्ति (राव) महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि पार्टी महत्वपूर्ण है। वहीं राव अपने सुरक्षित भविष्य के लिए व्यक्तिगत राजनीति(खुद की चौधर की) को किसी हालत में कमजोर नहीं होने देना चाहते। उन्हें डर है कि एक बार भाजपा अगर उनके समर्थकों को भगवा रंग में रंगने में कामयाब हो गई तो उनके पास पार्टी के समर्थक तो रहेंगे, लेकिन अपने समर्थक नहीं। राव अपने गढ़ में पार्टी को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं, जबकि पार्टी राव को संगठन के अनुसार चलाना चाहतीहै। इसी कशमकश में आए दिन असहज स्थिति बनती रही है। राव अभी खुद को भाजपा की संस्कृति में पूरी तरह नहीं ढाल पाए हैं।
क्यों गुस्से में थी बिमला चौधरी: पार्टी के लोकसभा स्तर के एक पदाधिकारी ने नाम ने छापने की शर्त पर जागरण को बताया कि राज्यमंत्री डा. बनवारी लाल सीएम के आने से पहले बोल चुके थे। बिमला चौधरी से भी पहले बोलने के लिए आग्रह किया गया परंतु बिमला ने यह कहकर मना कर दिया कि वह मुख्यमंत्री के आने के बाद ही बोलेंगी क्योंकि उन्हें कुछ समस्याएं रखनी है। इस पर उन्हें यह बताया गया कि आचार संहिता के दौरान मांग रखने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता, लेकिन बिमला ने मांग रखने के आग्रह पर जोर दिया। पार्टी के प्रदेश स्तरीय वरिष्ठ पदाधिकारी ने गड़बड़ देख दखल दिया। मुख्यमंत्री की व्यस्तता को देखते हुए बिमला चौधरी को समय नहीं दिया गया। इसी पर राव की नाराजगी सार्वजनिक हो गई। एक पदाधिकारी ने यह भी कहा कि राव मानो बहाने की तलाश में थे।

‘शायद’ के कारण पैदा हुई कड़वाहटराव व मनोहर के बीच ‘शायद’ शब्द ने कड़वाहट घोली। मुख्यमंत्री ने जब यह कहा कि गुरुग्राम से शायद राव को टिकट मिलेगी तो उसमें तकनीकी रूप से कुछ भी गलत नहीं था। क्योंकि मनोहर केंद्रीय नेतृत्व के बिना टिकट का खुला एलान कर ही नहीं सकते थे। सूत्रों के अनुसार इसी कारण उन्होंने ‘शायद’ शब्द इस्तेमाल किया था, लेकिन राव खेमे को यह शब्द नागवार गुजरा है। यह वक्त बताएगा कि इसका परिणाम क्या रहेगा, लेकिन दो नेताओं की केमेस्ट्री मेल नहीं खाने से किसी बड़े राजनीतिक विस्फोट की संभावना तो पैदा हो ही गई है। आइए समय का इंतजार करते हैं। कुछ चौंकाने वाला होने वाला है।