साभार: जागरण समाचार
सेवानिवृत्ति के बाद हजार-दो हजार रुपये की मामूली पेंशन से गुजारे की चिंता में हलकान प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएस पेंशन के लिए कर्मचारियों के
आखिरी पूरे वेतन से अंशदान काटने के केरल हाईकोर्ट के पिछले साल अक्टूबर के फैसले को सही ठहराते हुए उसके खिलाफ भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की अपील को खारिज कर दिया है। इस निर्णय के परिणामस्वरूप अब कर्मचारियों को उनके आखिरी वेतन के 30 से 50 फीसद के बराबर पेंशन प्राप्त करने का रास्ता साफ हो गया है।
निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) से संबद्ध ईपीएस स्कीम के अंतर्गत पेंशन मिलती है। ये स्कीम 1995 में लाई गई थी। इसमें पेंशन पाने के लिए ईपीएफओ कर्मचारी के वेतन में से 8.33 प्रतिशत की दर से अंशदान कटता है। लेकिन ये कटौती केवल 15,000 रुपये पर होती है। भले ही कर्मचारी का वेतन कितना भी हो। पांच वर्ष पहले तक यह सीमा केवल 6500 रुपये थी, जिसे 2014 में एक संशोधन के जरिए बढ़ाकर 15,000 रुपये कर दिया गया था। यही नहीं, संशोधन के साथ ये पेंच भी फंसा दिया गया था कि पेंशन की गणना आखिरी पांच वर्षो के औसत मासिक वेतन के आधार पर होगी। जबकि उससे पहले आखिरी वेतन के आधार पर गणना होती थी। यही वजह है कि कटौती के लिए वेतन सीमा बढ़ने के बावजूद ईपीएस की पेंशन इतनी नगण्य होती है कि रिटायरमेंट के बाद अफसर श्रेणी के कर्मचारी का भी गुजारा होना मुश्किल है। इन संशोधनों के खिलाफ कर्मचारियों ने केरल हाईकोर्ट में वाद दाखिल किया था और अक्टूबर, 1996 में ईपीएस एक्ट में किए गए संशोधन का हवाला देते हुए ईपीएफओ को कर्मचारियों के पूरे वेतन से पेंशन का अंशदान काटने का आदेश देने की अपील की थी। इस पर हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष 12 अक्टूबर को ईपीएफओ को कर्मचारियों के पूरे वेतन से अंशदान काटने का आदेश दिया था। वर्ष 1996 के संशोधन में इस बात का प्रावधान भी किया गया था कि यदि कोई कर्मचारी ईपीएस में ज्यादा पेंशन पाने के लिए 8.33 प्रतिशत से अधिक अंशदान देना चाहता है तो उसे स्वीकार किया जाएगा और उसी हिसाब से कर्मचारी को बढ़ी हुई पेंशन दी जाएगी। लेकिन ईपीएफओ ने इस प्रावधान को कभी लागू करने की जरूरत नहीं समझी।
वो तो 2016 में पब्लिक सेक्टर के एक दर्जन सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने ईपीएफओ के रवैये के खिलाफ मुकदमे ठोंके और मामला अंतत: सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ को कर्मचारियों के अनुरोध पर भविष्य निधि से बढ़ा अंशदान काटने और उसके मुताबिक अधिक पेंशन देने का आदेश दिया।
सुप्रीमकोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के खिलाफ ईपीएफओ की अपील रद की, निर्णय के फलस्वरूप वेतन के तिहाई से आधे तक बनेगी पेंशन
फैसले से दूर होगी ईपीएस में गड़बड़ी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ईपीएस में 2014 के संशोधन के बाद से चल रही गड़बड़ी दूर होगी। इसके अनुसार अभी कर्मचारी के आखिरी पांच वर्षो के औसत मासिक वेतन के आधार पर पेंशन की गणना की जाती है। हाईकोर्ट ने पहले की तरह अंतिम वेतन के आधार पर पेंशन की गणना करने को कहा है। ईपीएस की पेंशन की गणना के लिए एक फामरूले का प्रयोग किया जाता है। इसमें नौकरी के सालों के साथ अंतिम वेतन को शामिल किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब यदि उसी फामरूले से पेंशन की गणना होगी तो काफी अधिक पेंशन बनेगी। उदाहरण के लिए यदि किसी कर्मचारी का अंतिम वेतन 50 हजार रुपये है तो उसे करीब 25 हजार रुपये मासिक पेंशन प्राप्त होगी। जबकि अभी 5000 रुपये से कुछ ही ज्यादा पेंशन बनती है।