साभार: भास्कर समाचार
कैलाश बिश्नोई 24 (दिल्ली विश्वविद्यालय,दिल्ली)
पिछले दिनों गुरुग्राम में सात वर्षीय बच्चे की हत्या और दिल्ली में स्कूल परिसर में पांच साल की बच्ची से दुराचार की घटनाओं ने अभिभावकों में खौफ पैदा कर दिया है। सवाल यह उठता है कि मोटी फीस देकर अभिभावक बच्चों को छह-सात घंटे के लिए स्कूल के भरोसे छोड़ते हैं और अगर वे वहां सुरक्षित नहीं है तो फिर इससे दुखद क्या हो सकता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है। ऐसे बच्चे अवसाद का शिकार हो जाते हैं और भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं। उनका व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास थम जाता है। बच्चे कई बार कुसंगति में पड़कर अपराध की तरफ भी मुड़ जाते हैं। अब वक्त की मांग है कि हर विद्यालय में ऐसे काउंसलर की नियुक्ति की जाए, जो बच्चों के मनोभावों को पढ़ सकें और उन्हें उत्पीड़ने के खिलाफ सजग बना सकें। अगर ये परामर्शदाता स्वतंत्र हों तो यह बच्चों के ज्यादा हित में होगा। इसके लिए बाल अधिकार के लिए काम करने वाले मशहूर गैर-सरकारी संगठनों की मदद ली जा सकती है। ये काउंसलर बच्चों के साथ सहायक स्टाफ पर भी नज़र रख सकेंगे।
सजगता आने पर बच्चे अभिभावकों से उनके साथ हुई अप्रिय घटनाओं को खुलकर बता सकेंगे। इसके अलावा प्रत्येक विद्यालयों में शिकायत समाधान पेटिका रखी जाए, ताकि छात्र-छात्राएं अपनी शिकायतें लिखकर समाधान पेटी में डाल सकें। जरूरत है कि सरकार और स्कूल प्रबंधन बच्चों के साथ होने वाली ज्यादतियों को रोकने के लिए ठोस रणनीति तैयार करें तथा शिक्षकों तथा कर्मचारियों की नियुक्ति के पहले उनके आचरण-व्यवहार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराया जाए।
स्कूलों कोज्ञान का मंदिर समझा जाता है। इन्हें बच्चों के वर्तमान और भविष्य गढ़ने का केंद्र माना जाता है
लेकिन, ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब स्कूलों में बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार की खबरें सुर्खियां बनती हों। कहीं यौन शोषण तो कहीं अनुशासन के नाम पर प्रताड़ना की घटनाएं आए दिन शिक्षा-मंदिरों को शर्मसार करती हैं। पिछले दिनों गुरुग्राम में सात वर्षीय बच्चे की हत्या और दिल्ली में स्कूल परिसर में पांच साल की बच्ची से दुराचार की घटनाओं ने अभिभावकों में खौफ पैदा कर दिया है। सवाल यह उठता है कि मोटी फीस देकर अभिभावक बच्चों को छह-सात घंटे के लिए स्कूल के भरोसे छोड़ते हैं और अगर वे वहां सुरक्षित नहीं है तो फिर इससे दुखद क्या हो सकता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है। ऐसे बच्चे अवसाद का शिकार हो जाते हैं और भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं। उनका व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास थम जाता है। बच्चे कई बार कुसंगति में पड़कर अपराध की तरफ भी मुड़ जाते हैं। अब वक्त की मांग है कि हर विद्यालय में ऐसे काउंसलर की नियुक्ति की जाए, जो बच्चों के मनोभावों को पढ़ सकें और उन्हें उत्पीड़ने के खिलाफ सजग बना सकें। अगर ये परामर्शदाता स्वतंत्र हों तो यह बच्चों के ज्यादा हित में होगा। इसके लिए बाल अधिकार के लिए काम करने वाले मशहूर गैर-सरकारी संगठनों की मदद ली जा सकती है। ये काउंसलर बच्चों के साथ सहायक स्टाफ पर भी नज़र रख सकेंगे।
सजगता आने पर बच्चे अभिभावकों से उनके साथ हुई अप्रिय घटनाओं को खुलकर बता सकेंगे। इसके अलावा प्रत्येक विद्यालयों में शिकायत समाधान पेटिका रखी जाए, ताकि छात्र-छात्राएं अपनी शिकायतें लिखकर समाधान पेटी में डाल सकें। जरूरत है कि सरकार और स्कूल प्रबंधन बच्चों के साथ होने वाली ज्यादतियों को रोकने के लिए ठोस रणनीति तैयार करें तथा शिक्षकों तथा कर्मचारियों की नियुक्ति के पहले उनके आचरण-व्यवहार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराया जाए।