दुष्कर्मी बाबा की सबसे बड़ी राजदार, ग्लैमरस इतनी कि बाबा एक पल भी उससे दूर नहीं रहता था। हर छोटे-बड़े, धार्मिक, फिल्मी आयोजन में वह साए की तरह बाबा के साथ रहती थी। बॉलीवुड में बाबा की एंट्री से लेकर
फिल्मों के प्रचार-प्रसार में उसका अहम योगदान रहा। लेकिन इन सब के बीच हनीप्रीत जितना ग्लैमरस होती जा रही थी और बाबा के करीब पहुंच रही थी उसके अपने उसका साथ छोड़ते जा रहे थे। उसके मामाओं ने उससे रिश्ता तोड़ लिया और चाचा ने भी किनारा कर लिया। हालांकि हनीप्रीत ने अपने मां-बाप का मना रखा था और वो सीधे डेरे में ही रहने चले गए थे। हनीप्रीत के दो मामा सिरसा में ही रहते हैं। एक मामा अशोक बब्बर का टायरों का बिजनेस है जबकि दूसरा मामा सीड विक्रेता है। अशोक बब्बर कहते हैं हमने 15 बरसों से हनीप्रीत और उसके माता-पिता से हमने संबंध तोड़ रखे हैं। तो हमारा उनके यहां आना जाना है और ही उनका हमारे यहां। वहीं, हनीप्रीत के चाचा नामदेव तनेजा कहते हैं कि यह सही है कि बोलचाल में बिंदास है। लेकिन उसके चरित्र पर अंगुली उठाना गलत है। हम तो पिछले 15-16 वर्षों से उसके पूरे परिवार से नाता तोड़े हैं। जब से हमारा भाई रामानंद तनेजा अपने परिवार सहित डेरा में रहने लगा तब से उनके साथ हमारे परिवार का आना-जाना बंद है। यहां तक कि बोल चाल भी नहीं होती है।
हनीप्रीत के दादा को शाह मस्ताना ने बनाया था 'खजांची': हनीप्रीत के दादा रामशरण दास तनेजा दादी कुलवंत तनेजा डेरा के संस्थापक शाह मस्ताना के गद्दीनशीनी कार्यकाल में डेरा से जुड़े थे। शाह मस्ताना ने हनीप्रीत के दादा को वर्ष 1965 में डेरा के खजांची पद पर नियुक्त कर दिया था। तब से रामशरण तनेजा को सभी डेराप्रेमी 'खजांची जी' के नाम से ही पुकारते थे। डेरा में तनेजा परिवार का अच्छा खासा रसूख और दबदबा होने लगा। रामशरण तनेजा का देहांत होने के बाद हनी के पिता भी मां सिरसा गए और डेरे में रहने लगे।
प्रियंका नाम का गीत गुनगुनाने वालों पर गुस्साता था राम रहीम: साधुओं को नपुंसक बनाए जाने के केस करने वाले पूर्व साधु हंसराज उर्फ हकीकी हंस ने बताया कि बाबा ने हनीप्रीत का नाम इसलिए बदला क्योंकि पंजाबी फिल्म यार अणमुल्ले में जट टिंका, ओय-होय नी प्रियंका गीत को डेरे के लोग गाकर प्रियंका का मजाक उड़ाते थे। जिससे बाबा नाराज होता था।