सिक्किम के साथ लगी चीन की सीमा पर विवाद के बीच भारत ने वहां और सैनिक तैनात कर दिए हैं। दोनों सेनाएं वहां 1 जून से यानी करीब एक माह से आमने-सामने हैं। 1962 के युद्ध के बाद दोनों सेनाओं के बीच यह
सबसे लंबा गतिरोध है। सूत्रों ने कहा कि विवाद वाले डोकाला इलाके में चीनी सेना के दो बंकर तबाह करने और आक्रामक तेवर दिखाने के बाद और सैनिक तैनात कर दिए गए हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। चीन का दावा है कि यह उसका क्षेत्र है कि भूटान या भारत का। भारत का कहना है कि यह भूटान का इलाका है और समझौते के तहत भूटान की सूरक्षा की जिम्मेदारी भारत की है। 1914 की मैकमोहन रेखा के मुताबिक यह इलाका भूटान के अधिकार में है जबकि चीन इस लाइन को मानने से ही इनकार करता है। पूरे मामले की शुरुआत एक जून को हुई। यह 1962 के बाद सबसे लंबा गतिरोध है। इससे पहले 2013 में जम्मू कश्मीर के लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी में चीनी सेना की घुसपैठ के समय दोनों सेनाएं 21 दिन तक आमने-सामने रही थीं। तब चीनी सेना 30 किमी तक भारतीय क्षेत्र में गई थी। बाद में हालांकि उनको पीछे हटना पड़ा था।
1 जून को बंकर तबाह करने और फिर सैनिकों में हाथापाई के बाद से तनाव:
- 1 जून को चीनी सेना ने भारतीय सेना से डाेकाला के ललटेन में दो बंकर हटाने को कहा।
- 6 जून को उसके दो बुलडोजरों ने दो बंकर तबाह कर दिए। वहां मौजूद सेना ने चीनी सेना को आगे बढ़ने से रोका।
- 8 जून को दोनों सेनाओं में झूमाझटकी हुई। दोनों ओर के सैनिकों को मामूली चोटें आईं। चीन ने अतिरिक्त बल तैनात कर दिया। दो बार फ्लैग मीटिंग की मांग ठुकराने के बाद चीन तीसरी बार बैठक के लिए माना। उसने भारतीय सेना के ललटेन से हटने की मांग की।
- सिक्किम से लगी चीनी सीमा पर 2008 के बाद पहली बार यह टकराव हुआ है। इसके बाद चीन ने नाथू ला के रास्ते मानसरोवर की यात्रा रोक दी है। चीन यहां से भारतीय सैनिक हटाने की बात पर अड़ा है।
चीनी एजेंसी सिन्हुआ ने एक टिप्पणी में कहा है, 'कुछ भारतीय राजनेताओं में विकसित होते चीन को लेकर चिंता कुछ हद तक रणनीतिक चिंता में बदल गई है।' भ्रामक, निराधार 'चीन का भय' रणनीतिक भय पैदा कर सकता है और इससे भारत के हितों को नुकसान हो सकता है। टिप्पणी में कहा गया है कि चीन के प्रस्तावित बेल्ट और रोड पहल का बहिष्कार करने का भारत का निर्णय तो समझा जा सकता है, लेकिन इससे दूर रहना नई दिल्ली के लिए अच्छा विकल्प नहीं है।
रक्षा मामलों के जानकारों के मुताबिक चीन (ड्रैगन) ने भारत एवं भूटान के साथ पुराने समझौतों को दरकिनार करके पहली बार सीधे 'चिकेन नेक' की ओर हाथ बढ़ाने की कोशिश की है। पूर्वोत्तर को भारत से जोड़ने वाले 40 गुणा 40 वर्ग किमी के क्षेत्र को चिकेन नेक कहा जाता है। डोकाला क्षेत्र में चीनी सेना की मौजूदगी से उसकी रेंज में सीधा सिलीगुड़ी का 'चिकेन नेक' इलाका जाएगा। 'चिकेन नेक' यानी मुर्गे की गर्दन शब्द का प्रयोग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण, लेकिन कमजोर क्षेत्रों के लिए किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चिकेन नेक पर हमला करके चीनी सेना पूर्वोत्तर क्षेत्र को निशाना बना सकती है। भारत के लिए जरूरी है कि वह चीनी सेना को डोकाला क्षेत्र में पक्की सड़क बनाने से रोके।
रक्षा मामलों के जानकारों के मुताबिक चीन (ड्रैगन) ने भारत एवं भूटान के साथ पुराने समझौतों को दरकिनार करके पहली बार सीधे 'चिकेन नेक' की ओर हाथ बढ़ाने की कोशिश की है। पूर्वोत्तर को भारत से जोड़ने वाले 40 गुणा 40 वर्ग किमी के क्षेत्र को चिकेन नेक कहा जाता है। डोकाला क्षेत्र में चीनी सेना की मौजूदगी से उसकी रेंज में सीधा सिलीगुड़ी का 'चिकेन नेक' इलाका जाएगा। 'चिकेन नेक' यानी मुर्गे की गर्दन शब्द का प्रयोग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण, लेकिन कमजोर क्षेत्रों के लिए किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चिकेन नेक पर हमला करके चीनी सेना पूर्वोत्तर क्षेत्र को निशाना बना सकती है। भारत के लिए जरूरी है कि वह चीनी सेना को डोकाला क्षेत्र में पक्की सड़क बनाने से रोके।
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साभार: भास्कर समाचार
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