Wednesday, December 2, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: शहरी जीवनशैली के बुरे असर से बच्चों को बचाएं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
राहुल दस साल का है। सुबह 8.30 बजे स्कूल पहुंचने के लिए वह सुबह जल्दी 7 बजे उठ जाता है। स्कूल पहुंचने में 30 मिनट का समय लगता है। आधुनिक कॉन्वेंट स्कूल के अधिकांश बच्चों को ऐसा ही करना पड़ता है। बिस्तर से उठने और ब्रश करने के बाद वह तुरंत किताब उठा लेता है। माता-पिता को अक्सर उसे परिवार के
गेट-टुगेदर में शामिल होने के लिए मनाना पड़ता है। या घूमने के लिए कमरे से बाहर आने, खरीदी करने मॉल साथ चलने के लिए कहना पड़ता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वह हमेशा पढ़ाई में लगा रहता है। उसका लक्ष्य 2017 में होने वाली स्कूल की स्टेट एग्जाम में शीर्ष दस छात्रों में आना है। (अनुरोध पर नाम बदल दिया गया है)। कौन मां-बाप अपने ऐसे बच्चे से प्रसन्न नहीं होंगे। पढ़ाई-लिखाई में वह होशियार है और अपने परिवार, समाज, स्कूल और साथियों का गौरव है। वह पहली कक्षा से ही पहले नंबर पर आता रहा है और क्लास का हैड, स्कूल का हैड बॉय, टॉप स्कोरर रहा और इसके अलावा कई प्रतियोगिताओं में उसे एक दर्जन से ज्यादा ट्रॉफियां मिली हैं, इसमें स्पैलिंग बी, बोर्नवीटा क्वीज कॉन्टेस्ट जैसी प्रतिष्ठित स्पर्द्धाएं भी शामिल हैं। 
लेकिन एक बुरी खबर है। फिटनेस के मापदंडों पर उसकी शारीरिक क्षमता छह आंकी गई है। मापदंडों में तेज दौड़, सहनशीलता, लचीलापन, लोअर और अपर बॉडी स्ट्रेंथ, एब्डॉमिनल स्ट्रेंथ और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) शामिल है। वह ऐसा अकेला बच्चा नहीं है। देश में हर पांच में से दो बच्चों का बीएमआई दुरुस्त नहीं है। देश के हर पांच में से एक बच्चे की सहनशीलता का स्तर ठीक नहीं है। हर चार में एक बच्चे में पर्याप्त लचीलापन नहीं है। देश के बच्चों का अपर बॉडी स्ट्रेंथ तो थोड़ा ठीक है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर की तुलना में लोअर बॉडी स्ट्रेंथ कमजोर है। एज्यूस्पोर्ट नाम की संस्था द्वारा छह साल तक किए गए सर्वे के नतीजे माता-पिता को अपने बच्चे के हैल्थ रिपोर्ट कार्ड के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगे। यह सर्वे देश के 87 शहरों में 7 से 17 साल की उम्र के 1.48 लाख छात्रों पर किया गया है। जाहिर है शारीरिक विकास की बजाय मानसिक बौद्धिक विकास पर अधिक जोर है। यह संतुुलित विकास नहीं है। 
खास बात यह है कि सर्वे के मुताबिक हालांकि, माता-पिता बच्चों की रोजाना की कसरत के प्रति पूरी तरह सतर्क हैं, लेकिन फिर भी अगली पीढ़ी का हेल्थ कार्ड रिपोर्ट चिंता का कारण है। खेलने के लिए मैदानों की कमी, पढ़ाई का बहुत ज्यादा दबाव और हर शहर में खेल के मैदानों की बुरी हालत जैसे मसले बच्चों के हेल्थ रिपोर्ट कार्ड पर असर दिखाने लगे हैं। मैदानों में और खुले में खेले जाने वाले खेलों की कमी के कारण शहरी बच्चों में बॉडी मास इंडेक्स और सहनशीलता का स्तर निम्न होता जा रहा है। स्कूलों में समग्र रूप से स्पोर्ट्स और शारीरिक शिक्षा की कमी इस समस्या को और जटिल बना रही है। सर्वे कहता है कि चूंकि बच्चे अब दौड़-भाग के खेल कम खेलते हैं इसलिए भी उनका बॉडी मास इंडेक्स नीचे आता जा रहा है। माता-पिता खासकर वे जिन्होंने कुछ समय विदेशों में बिताया है वे शारीरिक फिटनेस के मामले को गंभीरता से लेते हैं। वे इसे समझते हैं और पैसा खर्च करने के लिए भी तैयार हैं, लेकिन वे क्लबों की ओर देखते हैं, जहां उनके बच्चों को पर्याप्त सुविधाएं मिल सकें। 
भारतीय स्कूलों में खेल के लिए जो वक्त तय होता है उसमें कुछ ही ऐसे होते हैं जो खेलते हैं बाकी सिर्फ दर्शक होते हैं। जो मजबूत होते हैं वे खुशकिस्मत होते हैं और उन्हें खेलने का मौका मिलता है। अगर बच्चा किसी विषय में कमजोर होता है तो हम उसे पढ़ने से रोक नहीं देते हैं, लेकिन जब यही बात खेल पर आती है तो यह नियम लागू करने में हम नाकाम रहते हैं। और इसका सीधा असर कमजोर स्वास्थ्य के रूप में सामने आता है। 
फंडा यह है कि अगली पीढ़ी को समग्र रूप से मजबूत बनाने के लिए स्कूल, माता-पिता, और नीति निर्माताओं को पूरी शिक्षा प्रणाली में शारीरिक शिक्षा को भी शामिल करना होगा। संतुलित विकास से ही हम सक्षम नई पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.