Wednesday, December 2, 2015

लेख: बेटी पढ़ेगी तो खुशहाली लाएगी

अलका आर्य
घर में तब खुशहाली होगी, बेटी जब शाला जाएगी। बालिका मतलब शिक्षा, आजादी नाकि चूल्हा-चौका और शादी। इस सरीखे संदेश एक बड़ी स्क्रीन पर लड़कियों की शिक्षा के महत्व को रेखांकित कर रहे थे। विकास में पिछड़े व नक्सलवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ जैसे सूबे में लड़कियों को सेंकडरी तक स्कूल में रोके रखना, बाल
विवाह के जाल से बचाना अहम मुद्दे हैं। सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना सरकार का दायित्व है। ऐसे ही कुछ मसलों पर हाल में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बाल अधिकार सम्मेलन में चर्चा हुई। राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने छह हजार स्कूली बच्चियों के समक्ष स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम मानव अधिकारों की बात करते हैं पर बाल अधिकार भी बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे पूरा भरोसा है कि यूनिसेफ व राज्य शिक्षा विभाग की कोशिशें सुनिश्चित करेंगी कि बालिकाएं अपनी शिक्षा को पूरी करने के लिए प्रेरित हों और हम अपने सूबे के बच्चों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान कर सकें।
सवाल यह है कि क्या सरकार इस दिशा में सही कदम उठा रही है? अक्सर दूर-दराज व बीहड़ इलाकों में बने सरकारी स्कूलों में न तो अध्यापक समय पर आते हैं व न ही छात्र पूरा वक्त स्कूल में हाजिर मिलते हैं। यह शिकायत आम है। इसके समाधान के लिए इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग व यूनिसेफ के संयोजन से बनाए गए एजूट्रैक एप्प को लॉन्च किया गया। यह एप्प बीहड़ इलाकों के स्कूलों की माॉनिटरिंग करेगा। इसके जरिए स्कूलों में उपस्थित छात्रों और अध्यापकों की हर रोज अपडेट जानकारी किसी भी समय ली जा सकती है। यह एप्प कितना कारगर साबित होता है व सरकार का मकसद किस हद तक पूरा करने में मददगार साबित होगा, इसके लिए इंतजार करना होगा। दरअसल, भारत जैसे विकासशील मुल्क में आजादी के बाद शिक्षा की अलख के लिए मुहिम छेड़ी गई पर वंचित, अनुसूचित जाति-जनजाति समुदायों के बच्चों को इसका लाभ ज्यादा नहीं मिला। इनमें लड़कियों की तादाद लड़कों से ज्यादा थी।
बीते पांच सालों में खासतौर पर शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद से स्कूलों में नामांकन दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। सरकारी दस्तावेज यही कहते हैं। बेशक नामांकन दर में वृद्धि हुई पर दो सवाल यहां भी खड़े हो जाते हैं-लड़कियों का बीच में ही स्कूली पढ़ाई छोड़ना व दूसरा शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट। फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर, जो कि सेलेब्रिटी एडवोकेसी फॉर यूनिसेफ भी हैं, ने भी कहा कि भारत में बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लेकिन सीख नहीं रहे, क्योंकि स्कूलों में वो माहौल नहीं मिल रहा है। बच्चे रटने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, पढ़ने पर कम। क्वालिटी एजुकेशन हमारे सामने बड़ी चुनौती है। बच्चे अपनी उम्मीदों और सपनों को पढ़कर पूरा कर सकते हैं। लड़कियां समाज में अगर सुरक्षित महसूस करें तो वे पढ़ाई पूरी कर सकती हैं। रायपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली मुस्कान सैनी और अंकिता ठांडी मुल्क की सेवा करना चाहती हैं। राज्य के बलरामपुर जिले के कस्तूरबा गांधी आवास विद्यालय में बिंदु टोप्यो नामक आदिवासी लड़की 8वीं कक्षा में पढ़ती है। वह अपने गांव शंकरपुर में 5वीं जमात के बाद पढ़ाई नहीं जारी रखना चाहती थी। वजह-शिक्षा की क्वालिटी का खराब होना। उसने खेती करने वाले अपने पिता को यह बताया और हॉस्टल में पढ़ने चली आई। बिंदु जानती है कि लड़कियों की 18 साल की उम्र से पहले ही शादी कर दी जाती है पर वह अपने साथ ऐसा नहीं होने देगी। बिंदु डॉक्टर बनकर अपने गांववासियों की सेवा करना चाहती है।
दरअसल, अपने मुल्क में लड़की की शादी की उम्र 18 साल व लड़के की 21 साल है। इससे पहले शादी करना गैरकानूनी है। छत्तीसगढ़ में भी बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई फैली हुई है। सूबे में लड़कियों को शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से मुख्यमंत्री ने 2006 में सरस्वती साइकिल योजना शुरू की। 40,000 लड़कियों ने उस साल इस योजना का लाभ उठाया था और अब यह तादाद दो लाख तक पहुंच गई है। एक लाख लड़कियां सरकारी छात्रावास में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। यही नहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वायदा किया था कि अगर वह जीती तो लड़कियों के लिए राज्य के सरकारी कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई नि:शुल्क कर देगी। भाजपा ने सरकार बनाई और 2014 में सरकार ने अपने इस वादे को पूरा करने का ऐलान कर दिया कि राज्य में 200 से ज्यादा सरकारी कॉलेज व तीन इंजीनियरंग कॉलेज में दाखिला लेने वाली छात्राओं को फीस नहीं देनी होगी। करीब एक लाख लड़कियां इस सरकारी योजना से लाभान्वित हो रही हैं। 
सरकारी योजनाओं का एक सकारात्मक नतीजा नामांकन दर में वृद्धि का साफ नजर आना है पर उसके साथ ही शिक्षा में गुणवत्ता वाला पक्ष बहस का केंद्र बिंदु बना हुआ है। इस मुद्दे पर प्रथम नामक गैर सरकारी संगठन अपनी सालाना रिपोर्ट के जरिए सरकार को बराबर आगाह कर रहा है। हाल ही में दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली विधानसभा में शिक्षा का अधिकार संशोधन विधेयक पेश किया। संशोधन से दिल्ली में 8वीं तक बच्चों को फल नहीं करने का अधिकार अब खत्म होगा। सरकार अगर चाहे तो बच्चे को रोका जा सकता है। हालांकि इस फैसले की आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि इस फैसले की मार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब छात्रों पर पड़ेगी। कक्षा में पिछड़ने का सारा दोष छात्रों पर क्यों थोपा जा रहा है। स्कूलों में अध्यापकों की कमी को दूर करने वाली कोशिशों पर फोकस करना होगा। सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि उसके पास क्या सबूत है कि 8वीं तक फेल न करने वाली नीति के कारण ही शिक्षा में गिरावट आई है। यह भी कहा जा रहा है कि दूसरे मुल्कों में फेल नहीं करने वाली नीति कारगर साबित हुई है। छात्रों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। यदि यह नीति वहां अच्छा कर रही है तो भारत में क्यों नहीं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने और बाल विवाह को खत्म करने का संकल्प लिया है। इसे पूरा करने के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ वंचित व जरूरतमंद तक सुनिश्चित करना होगा। समाज भी योजनाओं के मकसद को समझे।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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