साभार: जागरण समाचार
सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में पुनर्विचार याचिकाओं के साथ लगाए गए दस्तावेजों को लेकर उठाई गई केंद्र सरकार की आपत्तियां खारिज कर दी हैं। कोर्ट अब पुनर्विचार याचिकाओं की मेरिट पर नए सिरे से सुनवाई
करेगा।
इसमें उन तीन दस्तावेजों पर भी विचार किया जाएगा जिन्हें गोपनीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए केंद्र ने विचार न करने का आग्रह किया था। हालांकि बताते चलें कि फैसले में कोर्ट ने राफेल सौदे की मेरिट पर कोई चर्चा नहीं की है। राफेल सौदे को लेकर एक भी शब्द नहीं कहा गया है। यह फैसला बुधवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं की मेरिट पर सुनवाई होगी और साथ लगाए गए तीनों दस्तावेजों की प्रासंगिकता पर भी विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने गत 14 दिसंबर को राफेल सौदे की सीबीआइ जांच की मांग वाली भाजपा नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, वकील प्रशांत भूषण, सांसद संजय सिंह व वकील एमएल शर्मा व विनीत ढांडा की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। सभी ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की हैं।
इसलिए थी सरकार को आपत्ति: सरकार का कहना था कि दस्तावेज ऑफीशियल सीक्रेट एक्ट के तहत गोपनीय दस्तावेज हैं और उन्हें गलत तरीके से हासिल किया है। दस्तावेज रक्षा मंत्रलय से लीक कर चोरी से फोटोकॉपी कराए गए हैं। बगैर इजाजत इन्हें नहीं पेश कर सकते। सरकार ने साक्ष्य अधिनियम के तहत प्रिविलेज दस्तावेज का भी दावा दिया था। सरकार ने जिन दस्तावेजों पर आपत्ति जताई थी उनमें एक निगोशिएशन टीम का पत्र है। एक रक्षा मंत्रलय का नोट और एक रक्षा मंत्रलय के अधिकार का पत्र है।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है कि राफेल मामले में कोई न कोई भ्रष्टाचार जरूर हुआ है। प्रधानमंत्री ने वायुसेना की 30 हजार करोड़ की राशि चोरी कर अनिल अंबानी को दे दिया है। - राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
- कांग्रेस अध्यक्ष ने आधा पैराग्राफ भी नहीं पढ़ा होगा, लेकिन वह कह रहे हैं कि कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है कि चौकीदार चोर है। यह अदालत की अवमानना का मामला है। - निर्मला सीतारमण, रक्षा मंत्री
प्रेस की आजादी की वकालत: आपत्तियां खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि जिन दस्तावेजों पर आपत्ति उठाई गई है वे एक अंग्रेजी दैनिक में छप चुके हैं और सार्वजनिक हैं। अखबार में दस्तावेजों का प्रकाशन संविधान सम्मत है। संसद ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है जो अनुच्छेद 19(2) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी के तहत इन दस्तावेजों के प्रकाशन पर रोक लगाता हो।
दस्तावेजों पर दलील खारिज: गलत तरीके से दस्तावेज हासिल करने की दलील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक कानून या संविधान में इसकी स्पष्ट मनाही न हो तब तक दस्तावेजों की स्वीकार्यता उनकी प्रासंगिकता पर निर्भर करती है। सूचना कानून के तहत मिली छूट की सरकार की दलील भी दस्तावेजों के पहले से ही सार्वजनिक होने के आधार पर खारिज हो गई।