साभार: जागरण समाचार
स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूती देने में जुटी सरकार ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के मान्यता देने के नियमों में बड़ा बदलाव किया है। इसके तहत सीबीएसई अब किसी भी नए स्कूल को मान्यता
उसकी पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता (लर्निग आउटकम) के आधार पर देगी। वहीं स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को जांचने का जिम्मा राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया है। इसके लिए स्कूलों को जिला शिक्षा अधिकारी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को सीबीएसई स्कूलों के मान्यता देने के सालों पुराने नियमों में बदलाव की जानकारी दी। साथ ही बताया कि अभी तक स्कूलों के मान्यता देने की प्रक्रिया के तहत सीबीएसई और राज्य दोनों ही इंफ्रास्ट्रक्चर की जांच करते थे। ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया में सालों लग जाते थे। जबकि पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता को परखने की ओर ध्यान कम था। लेकिन नए नियमों के तहत सीबीएसई अब सिर्फ स्कूलों के लर्निग आउटकम पर ही फोकस करेगी। इस दौरान वह स्कूलों में शिक्षकों की योग्यता, उनके प्रशिक्षण, वेतन और प्रयोगशाला आदि की जांच-पड़ताल करेंगे। साथ ही स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों की योग्यता को भी परखेंगे। यानी वह जिस कक्षा में पढ़ रहे है, उसका पाठ उन्हें आता है या नहीं।
उन्होंने बताया कि देश में मौजूदा समय में सीबीएसई से संबंद्ध करीब 20,783 स्कूल हैं। इनमें केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय भी शामिल हैं। जबकि इनमें करीब 16 हजार निजी स्कूल भी हैं।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में देश में प्रति वर्ष मान्यता के लिए दो से ढाई हजार स्कूलों की ओर से आवेदन आते हैं। इसके तेजी से निराकरण को लेकर इस पूरी व्यवस्था को ऑनलाइन कर दिया गया है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पुरानी व्यवस्था के चलते 2007 से मान्यता के आवेदन अभी तक लंबित थे। हाल ही में ऐसे आठ हजार से ज्यादा आवेदनों को निराकरण किया गया है। 1सीबीएसई स्कूलों में वसूली जाने वाली मनमानी फीस के सवाल पर उन्होंने कहा कि सीबीएसई इस पर नजर रखेगी। स्कूल फीस के अतिरिक्त कोई अन्य राशि नहीं ले सकेंगे। जरूरत पड़ी, तो ऐसे स्कूलों की मान्यता रद करने की भी कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि सीबीएसई मान्यता को लेकर सरकार ने पहली बार 1988 में नियम बनाए थे। बाद में इसमें वर्ष 2012 में कुछ बदलाव भी किया गया है।’