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साभार: जागरण समाचार
जिन दो हस्तियों को वर्ष 2018 के शांति का नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है वह दुनिया में जारी हथियारबंद संघर्षो में यौन हिंसा के खिलाफ काम कर रहे हैं। नोबेल
समिति ने कांगो के डॉक्टर डेनिस मुकवेगे और इराक की यजीदी महिला नादिया मुराद को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार देने का फैसला लिया है।
समिति की अध्यक्ष ब्रेट सेइस एंडर्सन ने ओस्लो में पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा, ‘दोनों को युद्ध के हथियार के रूप में यौन ¨हसा का इस्तेमाल रोकने के प्रयास के लिए पुरस्कार देने का फैसला लिया गया है।’
एंडर्सन ने कहा, ‘दुनिया में केवल तभी शांति का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है जब युद्ध में महिला, उसका बुनियादी अधिकार एवं उसकी सुरक्षा मान्य हो और उसका संरक्षण किया जाए।’
मुकवेगे और मुराद दोनों दुनिया के उस आतंक के खिलाफ संघर्ष के प्रतिनिधि के रूप में सामने आए हैं जो प्रसारित होते चले जा रहे मी टू मूवमेंट जैसे एकल आंदोलनों से कहीं आगे जाता है।
आइएस के चंगुल में थी नादिया: समिति ने 25 वर्षीया इराकी महिला नादिया मुराद को भी शांति का नोबेल पुरस्कार के लिए चुना है। वह यजीदी समुदाय से आती हैं। मलाला युसूफजई के बाद उन्हें भी सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार मिला है। वर्ष 2014 में आइएस के आतंकियों ने नादिया का अपहरण कर लिया था। आतंकियों ने उन्हें तीन महीने तक सेक्स स्लैव बनाकर रखा जिस दौरान उनके साथ हर रोज अत्याचार किया। उन्हें कई बार बेचा और खरीदा गया था। वह उन तीन हजार से ज्यादा यजीदी लड़कियों और महिलाओं में से एक हैं जिनके साथ आतंकियों ने दुष्कर्म और अत्याचार किया।
कौन हैं मुकवेगे: 63 वर्षीय मुकवेगे पिछले दो दशकों से युद्ध से जर्जर पूर्वी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में यौन प्रताड़ना और दुष्कर्म की शिकार महिलाओं की चिकित्सा करते चले आ रहे हैं। दक्षिणी किवू में 1999 में उन्होंने पांजी अस्पताल की स्थापना की थी। इस अस्पताल में उन्होंने महिलाओं, बच्चों और शिशुओं की भी चिकित्सा की है। अभी तक उन्होंने हजारों दुष्कर्म पीड़िताओं का भी इलाज किया है।