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साभार: जागरण समाचार
रोहिंग्या घुसपैठियों के खिलाफ भारत सरकार के कड़े रुख का असर दिखने लगा है। इस सिलसिले में सात मुसलमान रोहिंग्या घुसपैठियों को पहली बार वापस म्यांमार भेजा गया है। ये सभी अवैध रूप से भारत में घुस
आए थे और उनकी पहचान के बाद म्यांमार सरकार के साथ पूरी बातचीत के बाद उन्हें सीमा पार का रास्ता दिखाया गया है। वहीं, गृहमंत्री राजनाथ सिंह देश में रह रहे सभी रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान और उनकी बायोमीटिक पहचान एकत्रित करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दे चुके हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गुरुवार को मणिपुर की मोरेह सीमा चौकी पर सात रोहिंग्या घुसपैठियों को पड़ोसी देश म्यांमार के अधिकारियों को सौंप दिया गया है। असम के एडीजी (बार्डर) भास्कर जे.महंता ने बताया कि सिल्चर की जेल में छह साल की सजा काट चुके इन सातों के नाम मु. जमाल, मोहबुल खान, जमाल हुसैन, मु.यूनुस, साबिर अहमद, रहीमुद्दीन और मु.सलाम है। इन सभी की उम्र 26 से 32 साल के बीच है। अवैध रूप से भारत में घुस आए इन रोहिंग्या को असम में 29 जुलाई, 2012 को गिरफ्तार कर लिया गया था। अवैध रूप से घुसपैठ करने के आरोप में अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी। उन्हें वापस भेजने के लिए सबसे पहले म्यांमार को इनके बारे में जानकारी दी गई। पूरी छानबीन के बाद म्यांमार ने स्वीकार किया कि वे सभी उसके नागरिक हैं।
भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं 40 हजार से अधिक रोहिंग्या: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी में पंजीकृत आंकड़ों के मुताबिक 14 हजार रो¨हग्या भारत में रह रहे हैं। लेकिन माना जा रहा है कि असल में भारत में अवैध रूप से रहने वाले रो¨हग्या की संख्या इससे कई गुना ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 40 हजार से अधिक रो¨हग्या विभिन्न प्रांतों में रह रहे हैं।राज्य सरकारों को रो¨हग्याओं की गतिविधि पर नजर रखने के निर्देश1ध्यान देने की बात है कि देश के भीतर और बाहर मानवाधिकार संगठनों के चौतरफा दबाव के बीच भारत सरकार ने साफ कर दिया था कि देश के विभिन्न भागों में रह रहे रो¨हग्या अवैध घुसपैठिये हैं और उन्हें वैध शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। यहां तक कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्य सरकारों को भी रो¨हग्या की पहचान कर उनकी गतिविधि पर नजर रखने का निर्देश दिया था। पिछले दिनों राज्य सरकारों को रो¨हग्या घुसपैठियों की बायोमीटिक पहचान जुटाने का भी निर्देश दिया गया था ताकि उन्हें अवैध तरीके से देश के वैध दस्तावेज बनवाने से रोका जा सके।’