साल 2018 आते ही भारत में वित्त वर्ष एक अप्रैल के बजाय एक जनवरी से शुरू हो सकता है। केंद्र सरकार वित्त वर्ष की करीब 150 साल पुरानी परंपरा खत्म करने को तैयार दिखाई दे रही है। इस तरह सरकार अगला बजट
इस साल नवंबर में पेश कर सकती है। यह जानकारी सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह विचार प्रस्तुत किये जाने के बाद सरकार वित्त वर्ष को कैलेंडर वर्ष के साथ लाने पर काम कर रही है। इस साल बजट को जल्दी पेश करके यह एक और एतिहासिक बदलाव होगा। सरकार ने 28 फरवरी को बजट पेश होने की कई दशक पुरानी परंपरा को बदलकर एक फरवरी को बजट पेश किया था।
सूत्रों के अनुसार विचाराधीन प्रस्ताव के अनुसार संसद का बजट सत्र दिसंबर से काफी पहले शुरू हो सकता है ताकि बजट की पूरी प्रक्रिया वर्ष समाप्त होने से पहले पूरी की जा सके। बजट प्रक्रिया पूरी करने में करीब दो माह लगते हैं, ऐसे में बजट सत्र की शुरुआत नवंबर के पहले सप्ताह से करने की घोषणा हो सकती है।
देश में एक अप्रैल से 31 मार्च तक के वित्त वर्ष की परंपरा करीब डेढ़ सौ साल से बदस्तूर जारी है। भारतीय वित्त वर्ष को ब्रिटिश सरकार के अनुरूप लाने के लिए 1967 में इसे सैद्धांतिक रूप से अपनाया गया था। तब तक वित्त वर्ष एक मई से शुरू होकर 30 अप्रैल तक चलता था।
मोदी ने वित्त वर्ष को कैलेंडर वर्ष के अनुरूप बदलने का सुझाव दिया था। इसके बाद पिछले साल सरकार ने इसकी व्यावहारिकता तलाशने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने दिसंबर में अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्री को सौंप दी। वित्त वर्ष बदलने के दूसरे कारकों के साथ नीत आयोग का यह भी तर्क है कि अप्रैल में वित्त वर्ष शुरू होने से वर्किग सीजन का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो पाता है। इसी वजह से इसे बदलने का विचार आया है। उसका मानना है कि देश की सांस्कृतिक और पारंपरिक जरूरत और नीतिनिर्धारकों की सुविधा को देखें बगैर वित्त वर्ष बदल दिया गया था। नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय और विशेष कार्य अधिकारी किशोर देशाई ने कहा है कि मौजूदा वित्त वर्ष अंतरराष्ट्रीय प्रैक्टिस के भी अनुरूप नहीं है।
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साभार: जागरण समाचार
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