Wednesday, June 28, 2017

लाइफ स्किल: आंखों की दृष्टि से अधिक शक्तिशाली होता है विज़न

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
चालीस साल पहले उन्हें दृष्टिहीनों के स्कूल में भर्ती किया गया था, क्योंकि वे जन्म से ही देख नहीं सकते थे। स्कूल में कक्षा आठ तक उनका पता डिवाइन लाइफ ट्रस्ट फॉर ब्लाइंड ही था। उस समय बेंगलुरू के एक परिवार
ने उन्हें गोद लिया। इससे उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के साथ अर्थशास्त्र में एमए तक की पढ़ाई पूरी कर ली। फिर एमबीए भी किया। अपने अनाथालय परिवार की मदद से ही शादी की और आज उनकी दो बड़ी संतान हैं। हालांकि वे पूरी जिंदगी दृढ़ता से यह मानते रहे कि दृष्टिहीन और शारीरिक रूप से अपंग लोगों को भी समाज में योगदान देना चाहिए, साथ ही उन्हें कार्य स्थल में सहभागी बनकर सामान्य जिंदगी जीनी चाहिए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अब 2017 में जाते हैं। उन्होंने एक बैंक में जॉब करते हुए खुद को तो समाज के लिए उपयोगी बनाया ही साथ ही हर साल करीब 80 लोगों को अपने जैसा प्रोडक्टिव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण और जॉब के लिए जरूरी कंप्यूटर और कम्यूनिकेशन स्किल का प्रशिक्षण दिलाया। 48 साल के पॅाल मुधा बेंगलुरू के कैनरा बैंक में सीनियर मैनेजर हैं। पिछले कई वर्षों से उनके पुराने घर का एक कमरा दृष्टिहीन और सुनने में अक्षम लोगों के लिए प्रशिक्षण केंद्र बना हुआ है। इसमें कंप्यूटर और वोकेशनल स्किल के संसाधन और उपकरण मौजूद हैं। ये चीजें इस अाधुनिक युग में स्वतंत्र जीवन गुजारने और रोजगार कमाने के लिए जरूरी है। 
कई वर्ष पहले दृष्टिहीन लोग सिर्फ टेलिफोन बूथ या फिर कुर्सियों की केन बुनाई के कामों में लगाए जाते थे। या उन्हें संगीत शिक्षक बनने और आयुर्वेद थेरेपी सेंटर में काम मिल जाता था। लेकिन कंप्यूटर के प्रवेश ने सिर्फ सामान्य लोगों बल्कि दृष्टिहीनों का जीवन भी बदल दिया, क्योंकि इसने सुनकर समझने और काम करने की सुविधा भी दी है। अपने शुरुआती संघर्ष से प्रेरित होकर पॉल ने जितने संभव हों उतने दिव्यांगों की मदद करने का फैसला किया। पिछले नौ वर्षों से पॉल सुनने-देखने में अक्षम देशभर के लोगों को उस दुनिया के काबिल बनाने के प्रयास में लगे हैं जो टेक्नोलॉजी के जरिये नया रूप ले रही है। 
सेंटर छह और नौ महीने के दो ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाता है। इसमें छात्रों को कंप्यूटर का ज्ञान और अंग्रेजी का स्किल सिखाया जाता है। हाल ही के दिनों में प्रशिक्षण की उनकी सुविधा उन लोगों के लिए भी शुरू की गई है, जो सुनने में अक्षम हैं। इनके प्रशिक्षण के लिए अलग तरह की टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है। बीते वर्षों में उनके यहां से प्रशिक्षित लोग स्थानीय एनजीओ स्नेहदीप की मदद से छोटी और मध्यम कंपनियों ही नहीं बैंक के अलावा बड़ी आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस, विप्रो, सिस्को और इंफोसिस में भी जॉब हासिल कर चुके हैं। कुुछ छात्र लेक्चरर बने हैं तो कुछ सीए और स्वतंत्र लॉयर भी हैं। 
पिछले साल डिमॉनिटाइजेशन के साथ उनकी ट्रेनिंग में अब नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग और अन्य प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल को भी शामिल किया गया है। 2008 से अब तक उनके ट्रेनिंग सेंटर 850 दृष्टिहीन युवाओं को प्रशिक्षण दे चुका है। साथ ही 12000 से 15000 दिव्यांगों को शैक्षणिक सहयोग,. सहायता और उपकरण मुहैया कराए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने दृष्टिहीनों के लिए तीन होस्टल भी शुरू किए। उनकी नेटवर्किंग इतनी अच्छी है कि ये सभी सुविधाएं जारी रखने के लिए उन्हें कई समाजसेवियों से धन का इंतजाम करना होता है। ये लोग इनके समर्पण में सहयोग करते हैं। कंपनियों के कॉर्पाेरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड से भी सहयोग मिलता है। 
फंडा यह है कि आंखों की दृष्टि सामान्य गुण है लेकिन, कोई भी विज़न विकसित कर सकता है, जो नज़र से ज्यादा शक्तिशाली होता है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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