Friday, June 30, 2017

साबरमती आश्रम में मोदी - गाेरक्षा के नाम पर इंसान को मार देना कतई बर्दाश्त नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में गाय के नाम पर बढ़ती हिंसक घटनाओं पर दुख जताया है। गुरुवार को साबरमती आश्रम में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर वे अपनी बात रखते हुए भावुक हो गए। उन्होंने
अपने बचपन का एक किस्सा सुनाकर गोरक्षकों को अहिंसा का संदेश दिया। कहा, 'क्या हमें गाय के नाम पर किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है? क्या ये गो-भक्ति है? क्या ये गोरक्षा है? ये गांधीजी-विनोबाजी का रास्ता नहीं हो सकता। हम कैसे आपा खो रहे हैं? क्या गाय के नाम पर इंसान को मार देंगे?' यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। गोरक्षा के नाम पर हिंसा के विरोध में मोदी का बीते 10 महीने में यह तीसरा बयान है। मोदी ने कहा, 'मैं देश के मौजूदा माहौल की ओर अपनी पीड़ा और नाराजगी व्यक्त करता हूं। ये देश ऐसा है जहां हम मोहल्ले के कुत्तों को भी रोटी देते हैं और सुबह नदी-तालाब किनारे मछलियों को दाना खिलाने की परंपरा रखते हैं। 
हम अस्पताल में कोई पेशेंट न बचा पाएं, विफल हो जाएं, दवाई कारगर मिले और मरीज की मौत हो जाए तो क्या अचानक परिवारजन अस्पतालों को आग लगा देंगे और डॉक्टरों से मारपीट करेंगे। हम क्या कर रहे हैं? इन चीजों को बढ़ावा मिल रहा है। मौजूदा हालात पर पीड़ा होती है।' 
देश में अराजकता का माहौल बनाया किसने - कांग्रेसमोदी के गो-रक्षा के बयान पर कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, पीएम को खुद से पूछना चाहिए कि किसने इस देश में अराजकता का माहौल बनाया है। औपचारिकता के तौर पर आलोचना पर्याप्त नहीं है।' महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो भी कुछ कहा वह पूरी तरह से सही है, लेकिन इसका जमीनी तौर पर मजबूत कार्रवाई के साथ पालन किया जाना चाहिए। जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री के बयान में कोई तत्व नहीं दिखाई देता।

मेरे जीवन की एक सत्य घटना है। हमारे घर के सामने एक परिवार रहता था। शादी के कई साल बाद उनके यहां संतान हुई। घर के सामने गली संकरी थी। यहां सुबह-सुबह गाय गुजरती और लोग उसे रोटी देते। एक दिन बच्चों ने पटाखे फोड़ दिए और गाय हड़बड़ाकर भागने लगी। हालात ऐसे बने कि बड़ी उम्र के दंपति का जो बच्चा मुश्किल से तीन-चार साल का था, वह गाय के पैरों तले कुचला गया और उसकी मौत हो गई। परिवार में दुख का माहौल था। दूसरे दिन सुबह ही गाय उनके घर के सामने आकर खड़ी हो गई थी। किसी भी घर के सामने जाकर रोटी नहीं खाई। उसके आंसू कभी नहीं रुके। एक दिन, दो दिन, पांच दिन, गाय खाना खा रही, पानी पी रही थी। कई दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया, कुछ नहीं पिया। पीड़ित परिवार के लोग भी उसे खिलाने की कोशिश करते, लेकिन गाय ने संकल्प नहीं छोड़ा। उस बालक की मृत्यु के पश्चाताप में आखिरकार गाय ने शरीर छोड़ दिया।' - पीएम 
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साभार: भास्कर समाचार 
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