Thursday, June 29, 2017

लाइफ स्किल: विचार मिलने चाहिए और अमल में लाए जाने चाहिए

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
दो लोग, दाे अलग दुनियाएं और दोनों की अपनी समस्याएं। दोनों अपने क्षेत्रों में अधिकार भी रखते हैं। पहले एक फाउंड्री के मैनेजिंग डाइरेक्टर और दूसरे पूरे राज्य के जेल डेप्यूटी इंस्पेक्टर जनरल। देश भर में युवाओं का
ऐसा वर्कफोर्स तैयार हो रहा है जो कम तनख्वाह पर भी मॉल और रिटेल आउटलेट्स पर काम करने को तैयार हैं, क्योंकि इस काम में पसीना नहीं आता। ऐसे में नई पीढ़ी किसी फाउंड्री में काम करने को तैयार नहीं है, जब तक कि जीवन और मरण का प्रश्न पैदा हो जाए। कोल्हापुर की घाटे पाटिल इंडस्ट्रीज के एमडी किरण पाटिल इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे और इसलिए किसी तरह अच्छे वर्कफोर्स की अपनी जरूरत को पूरा करने की कोशिश में थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल प्रिजन स्वाति साठे- जानती थीं कि उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी कैदियों का सुधार और पुनर्वास है। उनकी जेल में कारपेंट्री, टेलरिंग, बैकिंग और अन्य कौशलों की ट्रेनिंग दी जाती थी। पर वे दिल में अच्छी तरह जानती थीं कि जब ये लोग छूट जाएंगे तो बाहर की दुनिया में जॉब हासिल करना इनके लिए आसान नहीं होगा। वे अपने स्तर पर ही किसी आइडिया की तलाश में थीं, जिससे कैदी से वर्कफोर्स में बदले इन लोगों का बाहरी दुनिया में स्वागत हो। लंबे समय तक कोई हल नहीं निकला। फिर जब पाटिल छुटि्टयों में मॉरिशस गए तो एक हल नज़र आया। उन्होंने हाईवे कंस्ट्रक्शन के काम में एक अजीब दृश्य देखा। काम कर रहे लोगों में अधिकतर चीनी थे और उनमें से कोई भी मजदूर स्थानीय नागरिक नहीं लग रहा था। 
उन्हें जिज्ञासा हुई तो उन्होंने कुछ पूछताछ की। पता चला कि जिस चीनी कंपनी को काम का ठेका दिया गया है उसने एक खास शर्त रखी थी कि वो लेबर अपने साथ लेकर आएगी। इस कारण उसने बोली भी कम राशि की लगाई थी। वह अपने साथ चीनी कैदियों को काम करने के लिए लाई थी। इससे उसकी लेबर कॉस्ट में कमी आई थी और कैदियों की सजा भी कम हो गई थी। इस विचार ने तुरंत पाटिल के दिमाग को झकझोरा, जो कोल्हापुर के सबसे पुराने बिज़नेस घराने से हैं और उनका सबसे बड़ा ढलाई कारखाना है। वे लौटकर आए तो केंद्रीय जेल प्रशासन के सामने कोल्हापुर की कलंबा जेल में छोटी फाउंड्री स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। वे अपना कुछ काम यहां आउटसोर्स करने के लिए भी तैयार थे। प्रशासन ने इस विचार के प्रति काफी खुला रवैया अपनाया और मई 2016 में काम शुरू हो गया। 
स्वाति और प्रशासन को लगा कि ये कैदी जब अपनी सजा पूरी कर बाहर जाएंगे तो उन्हें कोल्हापुर की किसी फाउंड्री में काम मिल जाएगा। यह पहला ऐसा प्रयास था और प्रशासन ने इसमें काम करनेे के लिए ऐसे कैदियों को चुना जो 24 साल की कैद काट रहे थे और अब जल्द ही रिहा होने वाले थे। कैदी हर चार हफ्ते के काम पर सजा में एक सप्ताह की कमी के हकदार थे। इस छूट ने उन्हें हर रोज काम करने के लिए प्रेरित किया। कंपनी ने सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज के साथ भी कैदियों को बेसिक क्लास रूम और ट्रेनिंग की सुविधा देने की व्यवस्था की। इस प्रोजेक्ट के 80 कामगार कैदियों में 22 ग्रेजुएट हैं। 55 रुपए रोजाना की फिक्स मजदूरी मिली। बाकी जेल के खाते में गई। अमेरिकी जीव विज्ञानी और साइंस राइटर मैट रिडले कहते हैं कि विचार आना, मिलना और अमल में लना चाहिए। वे गारंटी देते हैं- अगर इंसान सभी की भलाई के लिए विचारों का आदान-प्रदान करें और ईमानदारी से इसमें महारत हासिल करें तो दुनिया वर्तमान संकट से निकल जाएगी। 
फंडा यह है कि सभीके अच्छे के लिए क्या आप अपने विचार को दूसरे के विचार का सहयोगी बनाकर कार्यरूप देने के लिए तैयार हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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