Friday, June 30, 2017

अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष और मेहनत कर दो बच्चों के टॉपर बनने की कहानी

पिता की कैंसर से मौत, मां ने मजदूरी कर पढ़ाया, 95.83% अंक लाकर बना टॉपर: ये कहानी है राजस्थान में एक मां की तपस्या और बेटे के संघर्ष की, यह कहानी है नोहर तहसील के गांव मलवानी के बेटे सुनील कुमार की। सुनील ने इस बार 10वीं बोर्ड में 95.83% अंक लाकर हनुमानगढ़ में अपने गांव और मां दोनों का नाम रोशन
किया है। सुनील ने बताया कि मां अनपढ़ है, फिर भी मेरे साथ पढ़ाई में दिन-रात सहयोग किया। सुनील ने बताया कि पिता भागीरथ का 2013 में कैंसर से देहांत हो गया था। पिता के जाने के बाद एक बार पूरा परिवार टूट गया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उस समय मैं छठी क्लास में पढ़ाई कर रहा था। पिता के जाने के बाद घर की आिर्थक स्थिति बेहद खराब हो गई। मां ने हमें पढ़ाने के लिए कभी मनरेगा में मजदूरी की तो कभी खेती। सुनील ने बताया, हमें याद है कि जब भी मां मजदूरी करने के बाद घर आती तो बेहद थकी होने के बावजूद कभी अपने चेहरे पर शिकन तक नहीं लाती। हमेशा हमें प्रोत्साहित करती कि तुम बच्चों के चेहरे सामने आते हैं तो मैं सारे दर्द भूल जाती हूं। बस मेरे बेटे सफल हो जाएं, यहीं मेरी इच्छा है। मां मंजूबाला ने बताया कि आज बेटे सफलता के पहले पायदान पर पहुंचे हैं। अब तो इन्हें खूब पढ़ाऊंगी और बड़ा अफसर बनाऊंगी। यही मेरी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य है।
स्कूल में लेक्चरर नहीं थे, अपने बूते पढ़ाई कर ममता ने आर्ट्स में पाए 92.40%अंक: श्रीगंगानगर जिले के गाँव 55 एफ की ममता सिखाती है कि संसाधनों के अभाव का रोना रोने से भला है, परिस्थितियों को समझें और निर्णय लें। प्रतिभा कभी संसाधनों की मोहताज नहीं होती। अगर ऐसा होता तो बीपीएल परिवार की यह बेटी आज इस मुकाम को ना पाती। ममता ऐसे सरकारी स्कूल में पढ़ी जिसमें ना पॉलिटिकल साइंस के व्याख्याता थे और ना पंजाबी के। इंग्लिश के व्याख्याता जनवरी में आए। जहां अन्य स्टूडेंट्स स्टाफ और अन्य संसाधनों के अभाव काे लेकर चिंतित रहे वहीं ममता ने पढ़ाई पर फोकस रखा। यकीन मानिए, तीन व्याख्याताओं की कमी के बावजूद राउमावि की ममता ने 12वीं कला वर्ग में 92.40 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। ममता के निकटवर्ती कस्बे श्रीकरणपुर में निजी स्कूलों के स्टूडेंट्स भी इतने अंक नहीं ला सके। ममता रोज अपने चक से जोरावरसिंहपुरा पढ़ने के लिए 3 किलोमीटर साइकिल पर जाती थी। ममता के पिता मंगलाराम मजदूरी करते हैं जबकि मां संगीता मनरेगा में श्रमिक है। ममता के स्कूल के प्रधानाचार्य एमपी चौधरी बताते हैं, इस छात्रा ने कभी भी ये शिकायत नहीं की, कि पढ़ाने को टीचर्स नहीं हैं। बस, खुद मेहनत करती गई और मुकाम पा लिया। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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