डॉ. अनिल सेठी
बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, उन्हें जिस सांचे में ढाल दें, वे उसी में ढल जाते हैं। इसलिए माता-पिता को हर समय बच्चों पर अपनी इच्छाएं अथवा अपेक्षाएं नहीं थोपनी चाहिए, बल्कि कई मामलों में उन्हें भी सही-गलत
का निर्णय लेने देना चाहिए। इससे बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
अक्षित का स्कूल उसके घर के पास है और अब उसने बस की बजाय अपने दोस्तों के साथ पैदल ही टहलते हुए स्कूल जाना शुरू किया है। ऐसा करने से उसे कई ऐसी चीजों के बारे में जानने को मिलता है, जो उसे बस में जाने पर नहीं मिलता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। पैदल दोस्तों के साथ जाने से उसे यातायात नियम भी पता हो गए हैं, जैसे कि ट्रैफिक सिग्नल्स कैसे और कब काम करते हैं और पैदल सड़क पार करते समय जेब्रा क्रॉसिंग का इस्तेमाल करना चाहिए आदि। हालांकि उसकी मां को अक्षित का पैदल स्कूल जाना पसंद नहीं है, क्योंकि उन्हें लगता है कि बस से जाना ज्यादा सुरक्षित रहता है और पैदल जाने में कई तरह के खतरे होते हैं। वहीं इस बारे में अक्षित के पिता का मानना है कि बच्चे आईने की तरह होते हैं और माता-पिता उसमें अपना प्रतिबिंब देखते हैं। वे समाज अथवा परिवार में जो देखते हैं, उससे वे काफी प्रभावित हो सकते हैं। कम से कम भारत में तो अभिभावक उन्हें वह निर्णय लेने की छूट नहीं देते, जो वे चाहते हैं। लेकिन पश्चिमी देशों में लोग दूसरी तरह से सोचते हैं। इस बारे में अमेरिका में 8 से 15 साल के बच्चों पर किया गया एक प्रयोग बताना ठीक रहेगा। वहां एक मशहूर स्कूल में एक फास्ट फूड सेंटर और एक हेल्थ फूड सेंटर खोला गया। इसमें बच्चों के लिए प्रवेश मुफ्त कर दिया गया। इसके जो नतीजे आए, वे काफी चौंकाने वाले रहे। सबसे पहले दिन तो सभी बच्चे फास्ट फूड सेंटर गए, अगले दो दिन तक ऐसा ही चलता रहा, लेकिन चौथे दिन एक स्टूडेंट हेल्थ फूड सेंटर गया और इसके बाद वहां जाने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती गई। दो हफ्ते बाद ही करीब 75 स्कूली बच्चों ने हेल्थ फूड सेंटर जाना शुरू कर दिया। इस बात से साफ पता चलता है कि यदि बच्चों को मौका दिया जाए तो वे भी सही निर्णय ले सकते हैं। इसलिए हमें बच्चों को बचपन से ही निर्णय लेने की आदत डालनी चाहिए और इसके लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
एक और उदाहरण के जरिए इस बात को समङिाए। एक दिन आसमान में बादल छाये हुए थे और बारिश होने को थी। हालांकि सुबह के समय मौसम काफी साफ था। अक्षित की मां ने कार बाहर निकाल ली, क्योंकि उन्हें पता था कि उनका बेटा स्कूल जाते समय न तो रेनकोट ले गया है और न ही छाता, जबकि बारिश होने को है। ट्रैफिक में फंसने के कारण जब तक वह स्कूल पहुंची, बारिश शुरू हो गई थी और सभी बच्चे अपने घर जा चुके थे। वह वापस लौटने लगीं तो उन्होंने रास्ते में देखा कि उनका बेटा बारिश का आनंद उठाता हुआ जा रहा है और वह काफी अच्छे मूड में है। उन्होंने अक्षित के पास कार रोकी और पूछा कि क्या वह बारिश होने और बिजली चमकने पर डर गया था? इस पर अक्षित ने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि आज उसे बहुत मजा आ रहा है, क्योंकि उसे ड्रॉइंग क्लास में प्रथम स्थान मिला है। ये जो बिजली चमक रही है, ऐसा लग रहा है, जैसे भगवान उसकी फोटो ले रहे थे। इसके बाद कार की खिड़की से झांकते हुए उसने अपनी मां से पूछा कि क्या वह उसके दोस्त को भी लिफ्ट दे सकती हैं जो एक पेड़ के नीचे खड़ा है। फिर अक्षित ने अपने दोस्त को अपने पास बुलाया और उससे पूछा कि वह बारिश का मजा क्यों नहीं ले रहा था और क्यों छिपा हुआ था? इस पर उसके दोस्त ने कहा कि मुङो माफ कर दो। दरअसल, आज मैंने तुम्हारा गोल्डन पेन चुरा लिया था और भगवान मेरी फोटो लेना चाहते थे, इसलिए मैं छिप रहा था। अब मैं समझ गया हूं कि हम कुछ भी गलत काम करते हैं, तो उसे किसी से भले ही छिपा लें, पर भगवान से नहीं छिपा सकते। यह सुनकर अक्षित की मां ने उसके दोस्त को गले से लगा लिया और मन ही मन सोचा कि बच्चे अपने आप भी बहुत कुछ सीखते हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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