Monday, June 26, 2017

विशेष खबर: बिहार के इस गाँव में हर हाथ के पास रोजगार और सालाना टर्नओवर 70 करोड़

आज जहां एक ओर पूरे बिहार से रोजगार के लिए लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसा गांव भी है, जहां को बेरोजगार है ही नहीं। रोजगार का साधन भी लोगों ने खुद तैयार किया है। अव्वल यह कि
आसपास के गांव के लोग भी खुशहाल हो रहे हैं। यह सब संभव हुआ है 37 वर्ष पूर्व कर्ज लेकर एक युवक द्वारा चावल तैयार करने वाली मशीन सेलर के निर्माण से। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। युवक वासुदेव शर्मा ने तब जापान में एक श्रमिक की हैसियत से सेलर मशीन बनाने की ट्रेनिंग ली। वह भारत-नेपाल सीमा पर रक्सौल से पांच किलोमीटर दूर स्थित शीतलपुर गांव का निवासी है। उसकी प्रेरणा और सहयोग से आज सिर्फ शीतलपुर में सेलर मशीन बनाने वाली 90 इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं। इस गांव के हर हाथ को रोजगार उपलब्ध है। हर घर में खुशहाली है। इस उद्योग के माध्यम से आसपास के गांवों के भी करीब 15 हजार से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार मिल रहा है। 
उल्लेखनीय यह है कि देश के आठ राज्यों के साथ ही नेपाल में भी इस गांव में निर्मित सेलर मशीन की आपूर्ति हो रही है। गांव का सालाना टर्नओवर करीब 70 करोड़ रुपए का है। कृषि उद्योग के लिए प्रसिद्ध पंजाब और हरियाणा के साथ ही पश्चिम बंगाल आदि में भी यहां से सेलर मशीनें जाती हैं। दरअसल, वासुदेव शर्मा नेपाल की एक कंपनी में श्रमिक थे। कंपनी ने उन्हें जापान भेजा था। वहीं श्री शर्मा ने सेलर मशीन बनाना सीखी। जापान से लौट कर नौकरी छोड़ दी। 1979 में गांव में सेलर मशीन बनाने वाली इकाई लगाई। तब इनके पैसे की काफी किल्लत थी। लेकिन, 50 हजार रुपए बैंक से कर्ज लेने के साथ स्थानीय साहूकार ऊंची ब्याज दर पर 50 हजार रुपए लिए। पांच वर्ष तक किसी तरह उद्योग चला कर अपनी पहचान बनाई। अच्छी-खासी बिक्री होने लगी। 1995 तक आते-आते पहचान ऐसी बनी कि गांव के कई लोग उनके साथ आए। उन्हें भी वासुदेव ने ट्रेनिंग दी। तब से अब तक इस गांव में 90 उद्योग स्थापित हो चुके हैं। 205 से अब अगल-बगल के गांव के भी सैकड़ों लोगों ने सेलर मशीन बनाने की ट्रेनिंग ली। आसपास के गांवों को मिला कर सेलर मशीन बनाने की करीब 200 इकाइयां चल रही हैं। इन्हीं इकाइयों में लोगों को रोजगार मिल रहा है। 

आंकड़ों में सेलर मशीन निर्माण उद्योग:
  • एक घंटे में एक टन चावल बनाने वाली एक सेलर इकाई पर 30 से 35 लाख की लागत आती है। 
  • एक बड़ी मशीन बनाने में दस और छोटी मशीन बनाने में 8 दिन लगते हैं। 
  • देश के आठ राज्यों बिहार, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, असम, ओड़िशा, उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल में बिकती हैं सेलर मशीनें। 
  • गांव का सालाना टर्नओवर 70 करोड़ रुपए है।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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