Monday, June 26, 2017

अवश्य पढ़ें, आर्टिकल रोचक है: जब कोई खुद से पहले दूसरों को रखता है तो समाज आगे बढ़ता है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: वे आधुनिक समय के शाहजहां बनना चाहते थे, कम से कम छोटे पैमाने पर और वह भी निजी स्तर पर। कई लोग अपनी प्रेयसी को लुभाने के लिए ताज़ महल बनाने का वादा करते हैं। लेकिन, उन्होंने बहुत
ईमानदारी और गंभीरता से अपनी वृद्ध पत्नी से इसका वादा किया और उसे वह जमीन दिखाने भी ले गए, जहां वे इसके निर्माण का इरादा रखते थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 2011 में पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी जीवनसंगिनी से किए वादे के मुताबिक निर्माण कार्य शुरू किया। मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज़ महल की याद में उत्तरप्रदेश के आगरा शहर में ताज़ महल का निर्माण करवाकर पुरुषों के लिए प्रेयसी के प्रति प्रेम का इज़हार करने में वाकई बहुत ऊंचा मानक स्थापित कर दिया। अचरज नहीं कि उन्हें भी इस मुगल सम्राट से ही प्रेरणा मिली होगी।  
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के पास और दुनिया के आश्चर्यों में गिना जाने वाले मूल ताज़महल से कुछ सौ किलोमीटर दूर स्थित छोटे से गांव केसर कलां में रहने वाले रिटायर्ड पोस्टमास्टर फैजुल हसन कादरी अपनी दिवंगत पत्नी ताजामुल्ली बेगम की याद में मिनी 'ताज़महल' बनाकर दुनिया का एक और 'आश्चर्य' निर्मित करने की कोशिश कर रहे हैं। 'मिनी' ही क्यों हो पर ताज़महल बनाना वह भी 15 हजार रुपए मासिक पेंशन पाने वाले रिटायर्ड पोस्टमास्टर के लिए कोई आसान बात नहीं है। किंतु पत्नी के लिए प्रेम आर्थिक प्रबंध पर भारी पड़ा और काम शुरू कर दिया गया। फिर पैसे की कमी के कारण निर्माण बीच में ही रुक गया। ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने अपना सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट त्याग दिया हो लेकिन, वह अपनी ही रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। पैसे की जुगाड़ के साथ काम आगे बढ़ता है। रुक-रुककर चलता रहता है। हालांकि, वे खुद 81 साल के हो गए हैं। उन्हें यह अहसास है कि उनका कोई भरोसा नहीं और कोई भी दिन उनकी जिं़दगी का आखिरी दिन हो सकता है। शायद इसीलिए उन्होंने आधे बने ढांचे के भीतर खुद के लिए भी जगह रखी है ताकि उनके गुजरने पर उन्हें पत्नी की कब्र के पास ही दफनाया जा सके। 
दो साल पहले जब उत्तर प्रदेश के तत्कालिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कादरी के प्रयास के बारे में पता चला तो उन्होंने उनकी मदद करने का निश्चय किया। लेकिन, पोस्टमास्टर की योजना कुछ और ही थी। अब उनके मन में एक अलग तरह के ताज़महल की कल्पना साकार हो रही थी। उन्होंने मुख्यमंत्री से वादा लिया की वे उनकी मदद करने की अपनी बात पर खरे उतरेंगे और फिर उन्होंने अपना सपना बताया। वे गांव में लड़कियों का हाईस्कूल बनते देखना चाहते थे और उसके लिए वे अपने 'ताज़महल' के पास वाली जमीन भी देने को तैयार थे। मुख्यमंत्री राजी हो गए, निर्माण शुरू हुआ और चूंकि सरकारी मदद मिल रही थी तो इस माह पूरा भी हो गया। 
छठी से कक्षा 12वीं तक की नियमित कक्षाओं के लिए फंड भी जारी हो गया है और इस साल जुलाई से गांव की लड़कियों को पढ़ने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं रहेगी। मेरा ख्याल है वे जो ताज़महल बनवा रहे हैं उसका तो अपना महत्व है ही लेकिन, इस स्कूल के रूप में साकार हुआ ताज़महल बहुत लंबे समय तक समाज की सेेवा करेगा। मुझे 'चक दे इंडिया' फिल्म का डायलॉग याद आया, 'इस टीम को सिर्फ वो प्लेयर्स चाहिए जो पहले इंडिया के लिए खेल रहे हों…फिर अपनी टीम में अपने साथियों के लिए…और उसके बाद भी अगर थोड़ी बहुत जान बच जाए तो अपने लिए…' मुझे पक्का पता है कि इस स्कूल में शिक्षा पाकर कासेर कलां गांव की छात्राओं की तरक्की होगी फिर चाहे 'मिनी ताज़' का काम पूरा हो या हो। 
स्टोरी 2: जब कोई परोपकार का काम करता है तो वे हमेशा उन लोगों की मदद करना पसंद करते हैं, जो अपना आभार अपनी आंखों से व्यक्त करते हैं, क्योंकि आंखों से व्यक्त होने वाले भाव ओठों से निकलने वाले शब्दों की तुलना में अधिक प्रभावशाली होते हैं। पिछले हफ्ते शिलांग स्थित एनजीओ बेथनी सोसायटी ने मेघालय में दृष्टिहीनों के लिए पहली ब्रेल लाइब्रेरी खोली है, क्योंकि राज्य में अभी सरकारी ब्रेल लाइब्रेरी नहीं है पर मौजूदा सरकारी लाइब्रेरियों में ब्रेल में लिखी किताबें मौजूद हैं। राज्य में 6,980 दृष्टिहीन छात्र हैं, जो जी भरकर किताबें पढ़ना चाहते ैं। बेथनी सोसायटी को ज्योति स्रोअत इंक्लूज़िव स्कूल चलाता है, जहां 80 दृष्टिहीन छात्र हैं अौर इस लाइब्रेरी ने निश्चित ही उन्हें फायदा होगा, किंतु लाइब्रेरी राज्य के सुदूरवर्ती भागों के दृष्टिहीन छात्रों को शिक्षा मुहैया कराएगी। 
फंडा यह है कि जब कोई व्यक्ति अथवा संगठन खुद से पहले समाज को प्राथमिकता देता है, अपने हित की बजाय परहित को महत्व देता है तो वह समाज निश्चित रूप से तरक्की करता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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