Wednesday, April 5, 2017

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संभवत: मोतिहारी रेलवे स्टेशन ने खेतिहरों की ऐसी भीड़ पहले कभी नहीं देखी होगी जैसी 15 अप्रैल 1917 को दोपहर 3 बजे थी। एक दुर्बल-से व्यक्ति को परिचित राजकुमार शुक्ला ने आमंत्रित किया था। उन्हें चंपारण के
खेतिहरों की समस्याओं के बारे में बताया गया था। बिहार के चंपारण जिले में समस्या यह थी कि ब्रिटिश लोगों ने किसानों को नील की खेती के लिए बाध्य किया था। उन्हें और कोई अनाज उगाने की इजाज़त नहीं थी और भुगतान भी बहुत कम किया जा रहा था। अगर कोई नील उगाने से इंकार करता तो उसे भारी कर देना पड़ता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। चूंकि स्थानीय लोगों के हाथों से स्थिति निकलती जा रही थी, इसलिए शुक्ला ने उन्हें बुलाया था। दिलचस्प बात यह थी कि जो व्यक्ति आया था उसे पता ही नहीं था कि चंपारण है कहां और नील क्या है। लेकिन, आमंत्रित करने वालों और आमंत्रित के बीच अनोखा आत्मविश्वास था। मोतिहारी पहुंचकर उन्होंने काश्तकारों की बातें सुनी और अगले गांव जसालुपट्‌टी की ओर बढ़ गए। रास्ते में उन्हें ब्रिटिश डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट डब्ल्यूबी हेकॉक ने एक नोटिस दिया। इसमें कहा गया था कि पहली उपलब्ध ट्रेन से चंपारण छोड़ दें। 
चूंकि उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 18 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया गया, जहां मजिस्ट्रेट ने एक समझौते का प्रस्ताव रखा कि अगर आप अभी जिला छोड़ दें और वादा करें कि फिर कभी यहां नहीं लौटेंगे तो आपके खिलाफ केस वापस ले लिया जाएगा। उस दुर्बल से दिखाई देने वाले व्यक्ति ने कहा- ऐसा हो नहीं सकता। मैं यहां इस क्षेत्र के लोगों की सेवा के लिए आया हूं। मुझे तो यहां अपना घर बना लेना चाहिए और तब तक इसे नहीं छोड़ना चाहिए जब तक पीड़ित लोगों की कुछ मदद हो जाए। इस समय कोर्ट के बाहर मौजूद भीड़ नारेबाजी कर रही थी। पुलिस और मजिस्ट्रेट नर्वस लग रहे थे। गिरफ्तार व्यक्ति ने कहा कि अगर आप मुझे बात करने दें तो मैं इन लोगों को शांत करने में आपकी मदद कर सकता हूं। मजिस्ट्रेट ने सहमति में सिर हिलाया। वे बाहर गए और कहा- आपको खामोश रहकर मुझमें और मेरे काम पर भरोसा जताना चाहिए। मजिस्ट्रेट को मुझे गिरफ्तार करने का अधिकार है, क्योंकि मैंने उनके आदेश की अवहेलना की है। अगर मुझे जेल भेज दिया जाए तो आपको इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। हमें शांति से काम करना चाहिए, कोई भी हिंसा हमारे उद्देश्य को नुकसान पहुंचा सकती है। भीड़ शांत हो गई। जब वे भीतर लौटे तो पुलिस उनके पीछे थी। 
सरकार ने उनके खिलाफ केस वापस ले लिया और वे खेतिहरों की परेशानियों के अध्ययन के लिए वहीं रुके रहे। उन्होंने 8000 किसानों से बात की और दर्ज कीं। इस तरह वे समझ सके कि उनकी असल परेशानी क्या है और इसका कारण क्या है। और फिर इनका समाधान हुआ ब्रिटिशर्स द्वारा ही बनाई गई एक कमेटी के चंपारण अग्रेरिअन बिल से। शायद ही तब कोई जानता था कि इस घटना के बाद मोहनदास महात्मा बन जाएंगे और यह तेजी से पहले सत्याग्रह आंदोलन का रूप ले लेगा। इस बारे में हम सभी इतिहास की किताबें पढ़ते रहे हैं। जब मुझे पता चला कि महात्मा गांधी के चंपारण नील सत्याग्रह की शताब्दी बिहार के मधुबनी कलाकार और भागलपुर के सिल्क बुनकर मना रहे हैं, तो इतिहास की यह घटना मुझे याद आई। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति सम्मान जताने के लिए एक हजार से ज्यादा कलाकार फिलहाल 3700 से ज्यादा शॉल पर यह कहानी बना रहे हैं। इस संबंध में 17 अप्रैल को होने वाले आयोजन में बापू के परिवार के सदस्य भी शामिल होंगे। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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