Monday, April 24, 2017

हेल्थ केअर सेक्टर में डॉक्टर के अलावा नर्स, रेडियोग्राफर और लैब टेक्नीशियन के लिए प्रोफेशनल की कमी; सुनहरे करियर का मौका

विश्व की आबादी का करीब 17.5 फीसदी हिस्सा भारत में रहता है, लेकिन विश्वभर की बीमारियों का करीब 20 फीसदी देश में है। इसके मुकाबले मौजूदा डॉक्टरों की संख्या जरूरत से कम है। ट्रेंड प्रोफेशनल की कमी के चलते हेल्थकेअर क्षेत्र छात्रों के लिए कॅरिअर के एक बेहतर विकल्प बन सकता है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक देशभर में 2017 में 10.12 लाख एलोपेथिक डॉक्टर हैं। काउंसिल के अनुसार
इनमें से 80 फीसदी यानी कि 8.10 लाख एक्टिव सर्विस में हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। देश में डॉक्टर पॉपुलेशन रेशो करीब 1:1560 है, जबकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मानकों के अनुसार यह 1:1000 होना चाहिए। इंडिया स्पेंड के मार्च, 2016 में राज्यसभा में पेश की गई फंक्शनिंग ऑफ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिपोर्ट के एनालिसिस के अनुसार देशभर में करीब 5 लाख डॉक्टरों की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक प्राइमरी हेल्थकेअर सेंटर जो 80 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण आबादी को कवर करते हैं, स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं। इनमें सर्जन के 83.4 फीसदी, ऑब्स्टेट्रीशियन गायनेकोलॉजिस्ट के 76.3 फीसदी, फिजीशियन के 83 फीसदी और पेडिट्रिशयन के 82.1 फीसदी पद रिक्त हैं। इसी प्रकार कम्युनिटी हेल्थकेअर सेंटर में 81 फीसदी स्पेशलिस्ट के पद खाली हैं। कम्युनिटी हेल्थकेअर सेंटर में स्वीकृत पदों में सर्जन के 74.6%, ऑब्स्टेट्रीशियन गायनेकोलॉजिस्ट के 65.4%, फिजीशियन के 68.1% और पेडिट्रिशयन के 62.8 फीसदी पद रिक्त हैं। 
हालांकि हेल्थकेअर का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। आईबीईएफ की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में देश का हेल्थकेअर बाजार करीब 100 अरब डॉलर का है और 2020 के अंत तक यह लभगभग तिगुना 280 अरब डॉलर को जाएगा। यह 22.9 फीसदी की सालाना दर से बढ़ रहा है। इसमें 65 फीसदी हिस्सेदारी हॉस्पिटल, नर्सिंग होम और फार्मास्युटिकल्स की है। वहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रति व्यक्ति खर्च में इजाफा हुअा है। 2010 में प्रति व्यक्ति खर्च 54 डॉलर से बढ़कर 2015 में 68 डॉलर प्रति व्यक्ति हो गया। 
बैचलर डिग्री इंटर्नशिप जरूरी: 50 फीसदी अंकों के साथ साइंस स्ट्रीम से 12वीं करने वाले छात्र इस क्षेत्र में कॅरिअर बना सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी विषय रहा हो। इसके बाद छात्र नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट के वैलिड स्कोर के आधार पर देशभर के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के एमबीबीएस या बीडीएस में प्रवेश ले सकते हैं। कोर्स के बाद इंटर्नशिप जरूरी होती है। स्पेशलाइजेशन हासिल करने के लिए छात्रों को मास्टर डिग्री करनी जरूरी है। बैचलर डिग्री करने वाले छात्र नीट पीजी के माध्यम से संबंधित विषयों के मास्टर डिग्री कोर्स जैसे कि एमडी, डीएम, एमडीएस, एमसीएच आदि में प्रवेश ले सकते हैं। कुछ संस्थानों के मास्टर डिग्री में प्रवेश के लिए जरूरी होता है कि छात्र मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में या स्टेट काउंसिल ऑफ इंडिया में रजिस्टर्ड हों। इसके अलावा लैब टेक्नीशियन, नर्स, रेडियोग्राफर आदि से संबंधित कोर्स भी नौकरी में मददगार हो सकते हैं। 
सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में हैं जॉब की संभावनाएं: हेल्थ केअर के क्षेत्र में छात्रों के लिए निजी और सरकारी दोनों सेक्टर में जॉब के अवसर मौजूद हैं। छात्र सरकारी अस्पतालों, नर्सिंग होम, निजी अस्पतालों, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर और प्राइमरी हेल्थ सेंटर में जॉब कर सकते हैं। इसके अलावा खुद का क्लीनिक शुरू करने का विकल्प भी होता है। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी से इस क्षेत्र में जॉब की संभावनाएं ज्यादा बेहतर हैं। 
सैलरी पैकेज भी अच्छा: इस क्षेत्र में सैलरी संस्थान के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। कॅरिअर शुरू करने वाले प्रोफेशनल को 20 से 25 हजार रुपए प्रति माह का औसत पैकेज मिल सकता है। प्राइवेट संस्थानों में यह और ज्यादा हो सकता है। कुछ वर्षों के अनुभव के बाद सैलरी पैकेज 40 से 50 हजार प्रति माह होने की संभावना होती है। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों का सैलरी पैकेज शुरुआत में ही औसत से ज्यादा हो सकता है।
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साभार: भास्कर समाचार 
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