Wednesday, April 26, 2017

तनाव नहीं है तो क्या इसका अर्थ ये है कि परीक्षा के प्रति गंभीरता नहीं?

विनीत जोशी (पूर्व चेयरमैन, सीबीएसई)
पढ़ाई का मतलब सिर्फ शैक्षणिक विकास नहीं है बल्कि इसका उद्‌देश्य तो विद्यार्थियों का सम्पूर्ण विकास करना है। ऐसा विकास, जिसे हम सिर्फ अंकों के आधार पर नहीं आंक सकते। नया पैटर्न क्यों लाया गया, यह तो
सीबीएसई के अधिकारी ही बता सकते हैं। हो सकता है उनके पास अपने पक्ष में कुछ आंकड़े भी हों, लेकिन इतना तो तय है कि हर विद्यार्थी के व्यक्तित्व के कई आयाम होते हैं और शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो उनके हर आयाम का विकास करे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। आठ साल पहले जब हम सीसीई (कंटीन्यूअस एंड कॉन्प्रिहेंसिव इवेल्यूएशन) लाए थे तब सोच यही थी कि नई पीढ़ी का मूल्यांकन सिर्फ एकेडमिक्स नहीं, बल्कि को-स्कॉलिस्टिक लर्निंग (जिंदगी में काम आने वाले कौशल, कार्य आधारित शिक्षा, ललित कलाएं, रवैया और जीवन मूल्यों) के आधार पर किया जाए ताकि विषय ही नहीं, उसके कॉन्सेप्ट और व्यावहारिक उपयोगिता के साथ-साथ विद्याथियों की रुचियों को पहचाना जा सके, हम उन्हें आगे बढ़ा पाएं। उनकी क्रिटिकल थिंकिंग (निष्पक्ष विश्लेषण मूल्यांकन की क्षमता) और गुणों का आकलन कर जान सकें कि वे विपरीत हालातों में चुनौतियों का मुकाबला करने के कितने काबिल हैं। यह तो तय ही था कि इसे लागू करने में वक्त लगता लेकिन, यह जरूर है कि यह बदलाव आकार लेने लगा था। कुछ स्कूलों को सीसीई पैटर्न समझने में दिक्कतें आईं, सवाल भी उठाए गए। यह तक कहा जाता था कि विद्याथियों को अंग्रेजी में एप्लीकेशन भी लिखनी नहीं आती लेकिन, यह समस्या दृष्टिकोण की थी। अगर आपको विद्यार्थी कम अंक आने पर दुखी नहीं दिख रहे या परीक्षा से पहले तनाव में नहीं हैं तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि वे परीक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं। यह तो सकारात्मक पहलू है। 
2008 से पहले सीबीएसई दो सर्टिफिकेट जारी करता था-एक अकेडमिक दूसरा को-स्कॉलिस्टिक यानी 2008 से पहले भी को-स्कॉलिस्टिक असेसमेंट होता था लेकिन, लोगों को इसकी अहमियत पता नहीं थी, इसलिए अभिभावक दूसरा सर्टिफिकेट लेने ही नहीं आते थे। देश के जिन स्कूलों में एक क्लास में ज्यादा छात्र होते थे, वहां शिक्षकों ने सीसीई पैटर्न को लागू करने में गंभीरता नहीं दिखाई। थर्ड पार्टी असेसमेंट की ही रिपोर्ट्स देख लीजिए-सीसीई पैटर्न की वजह से बोर्ड या जेईई मेन्स के रिजल्ट में कोई गिरावट नहीं आई। सीसीई का मकसद पढ़ाने के तरीकों को वक्त के मुताबिक बदलना था। पारम्परिक तरीकों से आगे बढ़कर लर्निंग बेस्ड तरीकों के प्रति रुचि पैदा करना था। हमने 11वीं के विद्यार्थियों पर सीसीई का असर जांचने के लिए कई बार रैंडमली चैक किया तो पाया कि वे बेहतर सीख और समझ पा रहे थे। सबसे अच्छी बात तो यह थी कि वे सेल्फ स्टडी की ओर बढ़ने लगे थे। माहौल ऐसा बन गया था, जहां शिक्षक सिर्फ उनके मददगार थे। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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