Friday, April 28, 2017

अब आसमानी बिजली जगह बता कर गिरेगी; पूर्वानुमान लगाना हुआ आसान

देश में अन्य किसी भी प्राकृतिक आपदा से अधिक सालाना मौतें आकाशीय बिजली से होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। साल दर साल इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। अचानक कहर मचा देने वाली अब बताकर गिरेगी। वक्त और जगह की इत्तला पहले ही हो जायेगी। मौसम विभाग अब केवल आंधी-तूफान और तेज गर्जना के साथ बारिश की ही चेतावनी जारी नहीं करेगा, बल्कि अब आकाश में कड़क कर धरती पर तबाही मचाने वाली आसमानी बिजली के बारे में भी पूर्वानुमान जारी कर सकता है। प्राकृतिक आपदाओं में कहर बरपाने वाली से सालाना औसतन ढाई हजार लोग मारे जाते हैं। जबकि मवेशियों के मारे जाने की संख्या इससे कई गुना अधिक होती है।

मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ते शहरीकरण और गगनचुंबी इमारतों के निर्माण के चलते गिरने का खतरा और बढ़ गया है। इन इमारतों के निर्माण के समय ही इन्हें पकड़ने की प्रणाली से लैस किया जाना चाहिए। हालांकि आंकड़ों के मुताबिक से मारे जाने वालों में सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अथवा मवेशी ज्यादा हैं। इमारतों के ढहने से भी मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है। 

अथवा वज्रपात जैसी आपदा को रोक पाना अथवा इसका पूर्वानुमान फिलहाल आसान नहीं है। देश में चमकने और गिरने का पूर्वानुमान करने के लिए मौसम विभाग की ओर से देश के चुनिंदा केवल 20 जगहों पर सेंसर ट्रैक प्रणाली स्थापित की गई हैं। सूत्रों के मुताबिक मौसम विभाग और भारतीय वायुसेना के बीच वज्राघात से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान करने का फैसला किया गया है। वायु सेना के अपने विभिन्न केंद्रों पर लगभग डेढ़ सौ सेंसर स्थापित हैं, जो उनकी अपनी सुरक्षा के लिए लगाये गये हैं। सेंसर से मिलने वाली इन पूर्व सूचनाओं से इस प्राकृतिक आपदा से अब आम लोगों को भी निपटने में मदद मिलेगी। पूर्वानुमान की वजह से इस गंभीर आपदा में मारे जाने वालों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी। मौसम विभाग अभी गिरने की कोई वानिर्ंग जारी नहीं करता है। मौसम विभाग की ओर से महाराष्ट्र में कुछ सेंसर ट्रैकिंग नेटवर्क स्थापित किये गये हैं।

ऐसे बनती है आकाशीय बिजली: जब ठंडी हवा संघनित होकर बादल बनाती है तब इन बादलों के अंदर गर्म हवा की गति और नीचे ठंडी हवा के होने से बादलों में धनावेश (पॉजिटिव चार्ज) ऊपर की ओर एवं ऋणावेश (निगेटिव चार्ज) नीचे की ओर होता है। बादलों में इन विपरीत आवेशों की आपसी क्रिया से विद्युत आवेश उत्पन्न होता है। इस प्रकार आकाशीय बिजली उत्पन्न होती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फिर धरती पर पहुंचने पर आकाशीय बिजली बेहतर कंडक्टर (संचालक) को तलाशती है, जिससे वह गुजर सके। इसके लिए धातु और पेड़ उपयुक्त होते हैं। बिजली अक्सर इन्हीं माध्यमों से पृथ्वी में जाने का रास्ता चुनती है।

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साभार: जागरण समाचार 
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