ड्राॅपआउट हुए बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाने के लिए शिक्षा विभाग एक और प्रयोग करने जा रहा है। इसके साथ निर्णय लिया गया कि पंचायत की मदद से बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला कराया जाए। इस
काम के लिए पंचायत के विशेष सम्मेलन बुलाने का भी निर्णय लिया है। इनमें पंच सरपंच के सहयोग से अभिभावकों को समझाया जाएगा कि बच्चों को स्कूल भेजें। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। शिक्षा विभाग में यह नौबत इसलिए आई क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी सरकारी स्कूलों में ड्राप आउट की समस्या से पर काबू नहीं पाया जा रहा है। यह अभियान पांच मई तक चलाया जाएगा। इस बार तो हद ही हो गई, आठवीं से नौंवी कक्षा में नौंवी कक्षा में 1,05,334 छात्रों ने एडमिशन नहीं लिया। बच्चे स्कूल क्यों नहीं आए। इस सवाल का जवाब जानने के लिए शिक्षक अब अभिभावकों के पास जाएंगे।
शिक्षा विभाग की चिंता यह है कि बहुत से ऐसे स्कूल है, जहां बच्चों की संख्या बेहद कम है। पिछले साल पांचवीं में 2,04,637 छात्रों ने दाखिला लिया था, लेकिन इस वर्ष छठी कक्षा में 1,40,089 छात्रों ने एडमिशन लिया। अब भी करीब 64 हजार 548 छात्र स्कूल से बाहर है। आठवीं में 2,09,412 छात्रों का दाखिला था, लेकिन इस वर्ष नौंवी में 1,68,626 छात्रों ने ही प्रवेश लिया। करीब 40 हजार 786 छात्र ड्राप आउट है। समस्या यह है कि बच्चे स्कूल आना ही नहीं चाह रहे हैं।
कुछ ऐसे सरकारी स्कूल हंै, जहां दाखिले के लिए आज भी लाइन लग रही है। लेकिन यह गिनती के स्कूल हैं। शिक्षा का स्तर तेजी से गिर रहा है। प्रयोग तो खूब हो रहे हैं, लेकिन इनका परिणाम क्या है? इसके लिए किसकी जवाबदेही है। सबसे पहले तो शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में सबसे ज्यादा कर्मचारी इसी विभाग से हैं। इसके बाद भी शिक्षा का स्तर सुधर रहा, सरकारी स्कूल का। हालात में बदलाव के लिए सरकारी स्कूल को प्रोफेशनल तरीके से तैयार करना होगा। सरकारी स्कूल की पूरी व्यवस्था ही बदलनी होगी। टीचर का टारगेट बच्चों को दाखिले की बजाय शिक्षा का स्तर करना होगा। एक बार अच्छे रिजल्ट आने लगेंगे तो बच्चे तो खूद खूद स्कूल में आना शुरू कर देंगे।
कुछ ऐसे सरकारी स्कूल हंै, जहां दाखिले के लिए आज भी लाइन लग रही है। लेकिन यह गिनती के स्कूल हैं। शिक्षा का स्तर तेजी से गिर रहा है। प्रयोग तो खूब हो रहे हैं, लेकिन इनका परिणाम क्या है? इसके लिए किसकी जवाबदेही है। सबसे पहले तो शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में सबसे ज्यादा कर्मचारी इसी विभाग से हैं। इसके बाद भी शिक्षा का स्तर सुधर रहा, सरकारी स्कूल का। हालात में बदलाव के लिए सरकारी स्कूल को प्रोफेशनल तरीके से तैयार करना होगा। सरकारी स्कूल की पूरी व्यवस्था ही बदलनी होगी। टीचर का टारगेट बच्चों को दाखिले की बजाय शिक्षा का स्तर करना होगा। एक बार अच्छे रिजल्ट आने लगेंगे तो बच्चे तो खूद खूद स्कूल में आना शुरू कर देंगे।
आखिर क्यों नहीं आ रहे सरकारी स्कूल में बच्चे: शिक्षा के लिए प्रचार प्रसार के काम में लगी एनजीओ पहल के मीडिया इंचार्ज संतोष कुमार ने बताया कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों की स्थित बहुत खराब है। शिक्षक आते ही नहीं हैं। बच्चों के बैठने की उचित व्यवस्था नहीं है। खासतौर पर ग्रामीण स्कूलों के हाल तो और भी खराब हैं। संतोष ने बताया कि सरकारी स्कूलों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। अभी तक सरकारी स्कूलों में किताब नहीं पहुंची दाखिले के भी जो आंकड़े दिखाए जा रहे हैं, इस पर भी शक होता है। शिक्षा विभाग की कोशिश है कि किसी तरह से दाखिले का जो टारगेट है, वह पूरा कर लिया जाए। फिर जो होगा वह अगले साल देख लिया जाएगा।
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साभार: भास्कर समाचार
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