Friday, April 21, 2017

29 वर्षों से किताब नहीं, विकल्प की बैसाखी के सहारे शारीरिक शिक्षा

सरकार और उसके तंत्र की लापरवाही के भी क्या कहने। साल-दो साल नहीं, बल्कि तीन दशक बीत गए। इस दौरान छह सरकारें आईं-गईं मगर प्रदेश की शारीरिक शिक्षा को रहनुमाओं से पुस्तक नहीं मिल पाईं। नतीजा, व्यक्तिगत एवं सामूहिक तौर पर शारीरिक विकास एवं अन्य कार्यों के संपादन में सहायक यह शिक्षा महंगे
विकल्प की बैसाखी पर चलती आ रही है। इतने अरसे से पुस्तक के प्रति हरियाणा स्कूली शिक्षा बोर्ड की बेपरवाही अनेक सवालों को जन्म दे रही है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सवाल शारीरिक शिक्षा से जुड़े लाखों भविष्य का, सरकार की शिक्षा के प्रति संजीदगी का और सबसे अहम सरकारी तंत्र की नीयत का। कारण कि वर्ष 1988 में सेकेंडरी लेवल की शिक्षा में शामिल की गई शारीरिक शिक्षा के विद्यार्थी प्राइवेट दुकान चला रहे पब्लिशर्स की महंगी गाइड बुक खरीदने को बाध्य हैं। ऐसा इसलिए कि हरियाणा स्कूली शिक्षा बोर्ड ने 29 वर्षों से पुस्तक छपवाने की जहमत ही नहीं उठाई। बोर्ड की इस उपेक्षा से आक्रोशित ¨पक सिटी हाईस्कूल बिसला के विद्यार्थी सुरेंद्र, पूजा, शोभित, रचना, चमन व विजय कहते हैं कि उनके अभिभावक इतने बड़े सेठ नहीं कि महंगी-महंगी किताबें खरीदकर दें। चलो खरीद भी दी तो गाइड से विषय की गहराई तो नहीं मिल पाएगी। इस स्कूल के संचालक रमेश कुमार कहते हैं कि बिन पुस्तक बच्चे पढ़ें कैसे और शिक्षक पढ़ाएं कैसे? शारीरिक शिक्षा के डिमोंस्ट्रेटर अनूप कुमार बोर्ड ने सिलेबस तो दे दिया मगर अपनी कोई किताब नहीं है। कुछ बच्चे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताब खरीद लेते जबकि अधिकतर गाइड का सहारा ले रहे हैं। जाहिर तौर पर विषय का गहन अध्ययन नहीं हो पाता। ऐसा तब है जबकि तीन साल पहले भी बोर्ड को शारीरिक शिक्षक संघ ने सुझाव दिया गया था कि डीपीई, पीटीआई, अथवा लेक्चरर से पांच अलग-अलग टॉपिक पर लिखवाया जाए और उसे बुक की शक्ल दे दी जाए। बोर्ड ने इस सुझाव को भी नजरअंदाज कर दिया। परिणाम यह कि शारीरिक शिक्षा पुस्तक के बगैर खुद पंगु बनकर रह गई है। सरकार को तत्काल इस दिशा में कदम उठाने होंगे अन्यथा यूं ही बैसाखी पर रहेगी शारीरिक शिक्षा ..।
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साभार: जागरण समाचार 
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