Sunday, April 30, 2017

अवश्य पढ़ें: पेड़ लगाओ,वह फसल लेने से बेहतर है

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
क्या कोई ऐसी जगह बुकस्टोर खोलने में उत्सुक है, जिसकी आबादी 1500 हो, फिर चाहे सारे ही लोग शिक्षित क्यों हो? शुक्रवार को मैंने यह प्रश्न उदयपुर के उभरते आंत्रप्रेन्योर के समूह से पूछा। उन्हें इसका जवाब देने में
दस मिनिट लग गए, प्रत्येक व्यक्ति द्वारा की जाने वाली औसत खरीद का मोटा हिसाब लगाया, प्रत्येक किताब पर संभावित मुनाफा जोड़ा और बताया कि यह नुकसान वाला बिज़नेस होगा और इसलिए कोई भी ऐसे व्यवसाय में पैसा लगाना नहीं चाहेगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फिर उन्हें मैंने यूके के प्रांत वैल्स स्थित 'हे ऑन व्हे' गांव पर केंद्रित फिल्म दिखाई, जहां 1500 लोगों की आबादी में 30 बुकस्टोर है और सारे ही मुनाफे में हैं! मजे की बात है कि ये सारे ही बुकस्टोर सेकंड-हैंड किताबों के हैं। 1972 में रिचर्ड बूथ इसी गांव का पहला व्यक्ति था, जिसने बंद पड़े फायर स्टेशन में सेकंड-हैंड किताबों का पहला स्टोर खोला था। शेष ने तो अवसरों को देखा और फिर धीरे-धीरे इस गांव को पुस्तकप्रेमियों के स्वर्ग में बदल दिया। 
अब वैल्स में 25 मई से 4 जून के बीच होने वाले विश्वप्रसिद्ध हे फेस्टीवल में आपका स्वागत है, जिसमें दुनियाभर के लेखक और पाठक इकट्‌ठे होते हैं तथा उन कार्यक्रमों में कहानियां आइडियाज़ को साझा करते हैं, जो प्रेरित करती हैं, परीक्षण करती हैं अौर मनोरंजन करती हैं। पालक उन बच्चों युवाओं को गर्मी की छुटि्टयों के हिस्से के रूप में यहां लेकर आते हैं, जिनमें वे पढ़ने की रुचि जगाना चाहते हैं। वे यहां कलाकारों, बुक डिज़ाइनर्स, कवियों, लेखकों यानी पुस्तकों से संबंधित हर पेशेवर से चर्चा करते हैं। भरोसा कीजिए, जो बच्चे यहां आते हैं वे बहुत किताबें पढ़ने वाले बनकर अपनी जिंदगी में सफल होते हैं। दूसरे शब्दों में वे ऐसे पेड़ बन जाते हैं, जिनमें से फल मिलते ही रहते हैं। वैसे बच्चे नहीं जो सालाना परीक्षा पास करने के लिए किताबें पढ़ते हैं। 
हे-अॉन-व्हे की यह कहानी सुनने के बाद एक स्मार्ट आंत्रप्रेन्योर की ओर से तत्काल जवाब आया, 'यह आइडिया किसी विकसित राष्ट्र के लिए ठीक है, जहां पूरा देश ही शिक्षित है और हमारे देश की उससे तुलना नहीं हो सकती। हमारे जैसे विकासशील देश में टिके रहने का मतलब है हमें पेड़ों की चिंता करने की बजाय साल-दर-साल खेतों में काम करके फसल लेनी होगी!' वह वास्तव में मेरी खिल्ली उड़ा रहा था और अचानक उस ग्रुप में हंसी फूट पड़ी। इसके कारण मुझे उन्हें भिलार का परिचय देना पड़ा। यह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध स्ट्रॉबेरी के हिल स्टेशन महाबलेश्वर के पास का बड़ा-सा गांव है। 10 हजार लोगों के इस गांव में 90 फीसदी लोग खेती करके साल-दर-साल 50 करोड़ रुपए की 100 टन स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करते हैं। उन्होंने इस साल 4 मई से गांव को 'बुक विलैज' का नाम देकर पेड़ लगाने का फैसला किया है (यानी वे अगली पीढ़ी को किसान से ज्यादा कुछ बनाना चाहते हैं। महाराष्ट्र सरकार भिलार को 10 हजार किताबें और पत्रिकाएं देगी, जिनमें से कुछ दुर्लभ, यहां तक कि आउट ऑफ प्रिंट भी हैं। पास के महाबलेश्वर और पंचगनी में हर साल बड़ी संख्या में आने वाले पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए गांव वालों ने कई घरों को किताबों के म्युरल से पेंट करने का फैसला किया है ताकि वे छुटि्टयों का आनंद लेते हुए किताबें भी पढ़ें। दो हफ्तों पहले राज्य सरकार ने मुंबई और पुणे के 75 कलाकारों से संपर्क किया ताकि वे गांव को पुस्तकों से सजाकर सुंदर बनाने में मदद कर सकें। उन्होंने ज्यादातर सार्वजनिक स्थानों पर गांव का नया मराठी नाम पेंट किया है 'पुस्तकांचे गाव' यानी किताबों का गांव। किताबों का पहला सेट तो मराठी का है, भविष्य में अंग्रेजी और हिंदी की किताबें भी आएंगी। लोग डिपॉजिट देकर वे दुर्लभ किताबें ले सकते हैं और पढ़ने के बाद लौटाकर अपना पैसा वापस ले सकते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com

साभार: भास्कर समाचार 
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