एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
शुक्रवार की रात मेरी बेटी के जन्मदिवस का जश्न था। परिवार के कुछ नज़दीकी सदस्य और मित्र घर में डिनर के लिए मौजूद थे। उस दौरान चर्चा में किसी ने पूछा, 'आप लोग वीकेंड के लिए कहा जा रहे हैं?' जहां हर किसी ने
अलग-अलग जगहों के नाम लिए पर मेरी बेटी ने अनूठी जगह का नाम सुझाया- पटना। जब हमने उससे इस च्वॉइस का कारण पूछा तो उसने बड़ी अजीब-सी सफाई दी और कहा कि मौसम विज्ञान विभाग ने पूर्वानुमान व्यक्त किया है कि इस वीकेंड पटना में मौसम खुशनुमा रहेगा और उत्तरी बिहार की ज्यादातर जगहों पर अगले तीन दिनों तक आंशिक या पूरी तरह बादल छाये रहेंगे, क्योंकि नमी भरी पूर्वी हवाएं पारे को 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जान देंगी। इसके विपरीत देश के ज्यादातर शहरों में दिन का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाएगा, जिससे लू जैसी परिस्थितियां बनेंगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उसकी दलील थी कि यदि हम किसी जगह जाएं और किसी होटल के ही कमरे में जमे रहे तो फिर हमारे अपने घरों में ही रहने में क्या गलत है!
बेटी के इस जवाब से वहां मौजूद लोगों को हमारी युवा पीढ़ी की सोच पर थोड़ा झटका लगा और फिर बातचीत हर साल 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस बनाने की रस्म और हमारी धरती के संरक्षण के लिए व्यक्तियों तथा सरकारों द्वारा दिए योगदान पर होेने लगी। फिर यह चर्चा चलती रही कि कैसे चीन 'वर्टिकल फारेस्ट बिल्डिंग्स' बना रहा है, जिसमें 1,100 पेड़ और 2,500 पौधे है, जो प्रतिदिन 60 किलो ऑक्सीजन पैदा करते हैं। और कैसे चंद्रबाबू नायडू फर्टिगेशन (पानी में घुलनशील उर्वरक के साथ माइक्रो इर्रिगेशन) के जरिये आंध्रप्रदेश को हार्टिकल्चर हब के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं ताकि किसानों की आय 35 फीसदी बढ़ाई जा सके। लेकिन वहां मौजूद लोग मेरे एक मित्र का बेंगलुरू का अनुभव सुनकर दंग रहे कि कैसे वहां ऑटो रिक्शा धरती के लिए ऑक्सीजन का योगदान करते हैं। सिर्फ KA 41 B 7675 नंबर के रिक्शा पर सवार हो जाएं और एक ऑटो-ड्राइवर की पहल का जश्न मनाइए, जो हम बताती है कि किसी वाहन में घूमते हुए भी हम पर्यावरण संरक्षण कर सकते हैं। नारायणा वी अपने ऑटो रिक्शा को 'एयर कंडीशन्ड' कहते हैं। नारायण ने पैसेंजर की सुविधा के लिए कई आइडियाज आजमाए, फिर चाहे चिलचिलाती धूप ही क्यों हो। उन्होंने रिक्शा में बैठने वालों के लिए पानी की व्यवस्था की, पंखा लगाया और यह करते हुए अंतत: वे इस आइडिया पर पहुंचे, जो यह सुनिश्चित कर सकता है कि धरती बर्दाश्त के बाहर तपे। उसने ऑटो रिक्शा में पौधे लगाने शुरू किए, क्योंकि ऐसी ही किसी पहल का कोई अर्थ था और रिक्शा में सवार होने वालों को भी प्राकृतिक एसी का अहसास मिल सकेगा।
उन्होंने ड्राइवर की सीट की दोनों तरफ दो पेड़ लगा रखे हैं और यात्रा करते समय यात्री इनके बारे में बातें करते हैं और कभी-कभी पौधा मांग भी लेते हैं, जो वे उन्हें मुफ्त में देते हैं। जो वे रिक्शा के पिछले भाग में इकट्ठे रखे होते हैं। पहले वे धूम्रपान करते थे, जिसे उन्हें छोड़ दिया है और जो पैसा बच रहा है उसे वे पौधे खरीदने में लगाते हैं। इसके अलावा फालतू समय में वे अंत्येष्टि के लिए शव ले जाने वाली एम्बुलेंस चलाते हैं। जो अधिकारी उन्हें एम्बुलेंस का यह काम देते हैं वे उन्हें उनके पर्यावरण संरक्षण के काम में मदद करते हैं। आपको इस ऑटो रिक्शा में बैठकर देखना चाहिए कि जब हवा पेड़ों को छूकर आती है और आपके चेहरे से टकराती है तो कितना अच्छा लगता है बल्कि खुशबू भी अच्छी आती है।
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साभार: भास्कर समाचार
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