ब्रिटिश शोधकर्ताओं का कहना है कि स्ट्रेस शब्द को हमें अपने शब्दकोश से निकाल देना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को कभी यह नहीं बोलना चाहिए कि मैं तनाव (स्ट्रेस) में हूं। क्योंकि जैसे ही आपने यह जताया या बोला तो आपकी सेहत और ज्यादा बिगड़ सकती है। दरअसल, स्ट्रेस बोलते ही शरीर में कुछ केमिकल्स सक्रिय हो जाते हैं। यह बात एक अध्ययन में आई है।
शोधकर्ता क्लीनिकल साइकोथैरेपिस्ट सेठ स्विरस्काई का कहना है कि स्ट्रेस शब्द आपकी जिंदगी पर काफी बुरा असर डाल सकता है। मैंने अध्ययन में पाया कि स्ट्रेस शब्द का इस्तेमाल करते ही शरीर में एपीनेफ्रिन और कोर्टिसोल केमिकल्स बढ़ जाते हैं, साथ ही मस्तिष्क में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर्स आपको और ज्यादा स्ट्रेस्ड महसूस करवाते हैं। इस दौरान हमारा दिल तेजी से धड़कना शुरू कर देता है, सांसंे भी तेज चलने लगती हैं। ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है। इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इसके चलते हम कुछ सोच नहीं पाते और डर और चिंता से भर जाते हैं। इसलिए स्ट्रेस को कम करने के लिए हमें अपनी भाषा और सोच में सुधार करना चाहिए। ऐसा कुछ महसूस होते ही हमें खुद से ही बात करना, पॉजिटिव किताबें पढ़ना और विजन बोर्ड बनाना या फिर वो काम करना चाहिए जो आप पसंद करते हों।' डॉक्टर प्रतिमा रायचुर कहती हैं 'इस शब्द को हमें दिमाग से ही निकाल देना चाहिए। यह मेडिटेशन और एक्सरसाइज से ही संभव है। इसके लिए हमें अपनी आदतें पहचाननी होंगी, रोजाना पॉजिटिव सोचना होगा।' हाल ही में हुए एक अन्य अध्ययन में भी यह पाया गया कि जब हमें कोई स्ट्रेस्ड टॉस्क मिलता है तो भी यदि हम उसे मुस्कुरा कर स्वीकार करते हैं तो उस दौरान हॉर्ट रेट और कोर्टिसोल लेवल काफी कम होता है।
भारत में 46% कर्मचारी तनाव में, सबसे ज्यादा सुसाइड भी इसी कारण: एक रिसर्च के मुताबिक भारत में करीब 46% कर्मचारी ऑफिस में स्ट्रेस्ड होकर काम करते हैं। वहीं, डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा सुसाइड स्ट्रेस के चलते होते हैं। हर 40 सेकंड में दुनिया में एक व्यक्ति सुसाइड करता है। भारत में हर साल करीब एक लाख व्यक्ति सुसाइड करते हैं। दुनिया में पिछले पांच सालों में युवाओं में 2 से 12% तक स्ट्रेस बढ़ा है। जबकि 77% लोग रोमांटिक रिलेशनशिप को लेकर स्ट्रेस में रहते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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