Saturday, April 29, 2017

52 गांवों में 33 साल से दहेज बंद, होती हैं सामूहिक शादियां, बचे पैसों से खोले स्कूल और अस्पताल

धार जिले के 52 गांवों के पाटीदार समाज में 33 साल से दहेज प्रथा बंद है। वे बेटे-बेटियों की शादी सामूहिक विवाह में करते हैं। इसके लिए वसंत पंचमी और अक्षय तृतीया का दिन तय किया है। अब तक यहां 47 सामूहिक
विवाह समारोह हुए हैं। जिनमें 2426 जोड़ों का विवाह हुआ है। पाटीदार समाज ने बचे हुए पैसे जुटाकर जिले में स्कूल और अस्पताल खुलवाए। आज इन गांवों के 25 बच्चे विदेश में नौकरी कर रहे हैं। 48वां समारोह शनिवार को धार स्थित अंबिका धाम में होगा। इसमें 74 जोड़े सात फेरे लेंगे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दरअसल, जिले में पाटीदार समाज के लोगों को अपनी बेटियों की शादी करने के लिए जमीन बेचनी पड़ती थी। इसके चलते 1985 में समाज के कुछ लोगों ने सहमति से सामूहिक विवाह समारोह शुरू किए। ताकि समाज में दहेज प्रथा बंद की जा सके। इस बदलाव का असर हुआ। धीरे-धीरे 52 गांवों के लोग मुहिम से जुड़ गए। अब समाज के लोग दहेज देने से बचे पैसे बच्चों की पढ़ाई और उन्नत खेती में खर्च कर रहे हैं। स्कूल और अस्पताल खोले जा रहे हैं। धार में पाटीदार समाज का एक अस्पताल और दो स्कूल हैं। बदनावर में भी एक अस्पताल, एक स्कूल और एक कॉलेज हैं। स्टूडेंट्स के रहने के लिए छात्रावास भी खोले हैं। 
तोरनोद के स्वप्निल बोरदिया 5 साल से टेक्सास में हैं। वे पौधों पर रिसर्च वर्क करते हैं। उनके पिता योगेंद्र बोरदिया बताते हैं, 'मैं शादियों का खर्च बचाकर ही बेटे को विदेश भेज सका।' एहमद गांव के डॉ. अनिल पाटीदार कैलीफोर्निया में पढ़ाई के बाद रिंगनोद के सरकारी अस्पताल में डॉक्टर हैं। तिरला के अंबाराम बिडवालिया के बेटे राजेश यूएसए में रिसर्चर हैं। 
पहले बेटी की शादी करने के लिए बेचनी पड़ती थी जमीनपाटीदार समाज के अध्यक्ष उदयराम पाटीदार बताते हैं-1985 से पहले तक यह स्थिति थी कि किसी के यदि तीन बेटी है तो पहली शादी में ही उसकी जमा पूंजी खत्म हो जाती थी। दूसरी बेटी की शादी करने के लिए उसे जमीन बेचनी ही पड़ती थी। दहेज प्रथा का बोलबाला था। अब छोटा हो या बड़ा समाज का हर व्यक्ति अपने बेटे-बेटी की शादी इसी दिन करता है। 
विवाह समारोह में समिति देती है कन्यादान में उपहार: सामूहिक विवाह समारोह के लिए एक समित बनी है, जो हर जोड़े को बर्तन आदि उपहार कन्यादान में देती है। इसके अलावा दहेज लेनदेन बंद है। समाज के रमेश पटेल कहते हैं 'साल में सिर्फ दो दिन शादियां होने से समय की भी बचत होती है और पैसों की भी। अलग-अलग दिन शादियां हो तो हर रिश्तेदार के यहां जाने में समय और पैसा खर्च होता था।
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साभार: भास्कर समाचार 
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