बाबरी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 13 के खिलाफ अापराधिक साजिश के आरोप बहाल कर दिए हैं। साथ ही कहा कि
सुनवाई 4 हफ्ते में शुरू हो जानी चाहिए। अदालत ने केस रायबरेली कोर्ट से लखनऊ सेशन कोर्ट ट्रांसफर कर दिया है। मामले की रोज सुनवाई कर 2 साल में फैसला देना होगा। तब तक जज के तबादले पर रोक रहेगी। सीबीआई को भी कहा गया है कि गवाह हर दिन पेशी पर आएं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अलग से न तो कोई मुकदमा चलेगा और न ही नए सिरे से ट्रायल शुरू होगा। मौजूदा मुकदमे के साथ ही सुनवाई चलेगी। संवैधानिक बाध्यता क चलते कल्याण सिंह को अभी राहत मिली है। राजस्थान के राज्यपाल पद से हटने के बाद उन पर भी केस चलेगा। देर शाम आडवाणी के घर जाकर मुरली मनोहर जोशी ने उनसे मुलाकात की। 25 साल पहले (1992) हुए बाबरी विध्वंस मामले में 21 लोगों पर साजिश रचने के आरोप थे। इनमें से 8 की मौत हो चुकी है।
फैसले की सूचना जब आडवाणी को दी गई तो उन्होंने टीवी खोला और शांतचित्त बैठ गए: सुप्रीमकोर्ट के आदेश की सूचना आडवाणी के घर पहुंची। स्टडी रूम में बैठे आडवाणी को इसके बारे में बताया गया। टीवी पर न्यूज फ्लैश देख वे शांतचित्त बैठे रहे। कुछ देर बाद स्टडी रूम से निकल ड्राइंग रूम में चले गए। दो-तीन फोन आए। बात की। फिर परिजनों से बातें करने लगे। बेटी प्रतिभा, सहयोगी दीपक चोपड़ा और कुछ लोग वहीं बैठे थे। सभी के चेहरे पर चिंता के भाव थे। क्या इससे आडवाणी के राष्ट्रपति बनने की संभावना धूमिल हो गई? बकौल आडवाणी नहीं। वह कई बार कह चुके हैं कि देश ने उन्हें जो स्नेह दिया है वह किसी भी पद से बढ़ कर है। फिर चेहरों पर चिंता क्यों? शायद इसलिए कि जो हुआ वह क्यों हुआ और कैसे हुआ? इसको लेकर चर्चाओं में जिस तरह आडवाणी का नाम रहा है, वह व्यथित करने वाला है। तो क्या राम मंदिर आंदोलन की परिणति आडवाणी को आज इस मुकाम पर ले आई है? आडवाणी कहते हैं- मंदिर आंदोलन ने भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदल दी। मेरी राजनीत के लिए भी यह टर्निंग प्वाइंट रहा। इस आंदोलन ने उन्हे शोहरत दी जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस आंदोलन पर उन्हें भी गौरव है।
सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश के बाद क्या आडवाणी, नैतिक आधार पर बतौर सांसद इस्तीफा देंगे। इस प्रश्न पर उनके नजदीकी लोगों का कहना है कि नैतिकता का पैमाना आडवाणी हवाला कांड के बाद स्थापित कर चुके हैं। उनके नैतिकता पर विरोधी भी सवाल नहीं उठा सकते हैं। अनुशासन ऐसा कि मोदी सरकार बनने के बाद से अपना ब्लॉग लिखना भी छोड़ चुके हैं। संगठन के हित को लेकर कुछ टिप्पणी जब उन्होंने की और शीर्ष नेतृत्व को यह पसंद नहीं आया तो आडवाणी ने बोलने का फैसला कर लिया। यहां तक कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी या कार्यसमिति तक में उन्होंने चुप्पी साधे रखी है।
कल्याण सिंह पद छोड़ सकते हैं: राजस्थानके राज्यपाल कल्याण सिंह पर मुकदमा नहीं चल सकता। ऐसे में उन पर इस्तीफे का दबाव बनाया जा सकता है। विपक्ष भी हमला बोलेगा। उमा के खिलाफ भी मंत्री पद छोड़ने का दबाव बन सकता है। हालांकि वह इससे मना कर चुकी हैं।
दोषी हुए तो जेल की सजा संभव: अगर भाजपा नेता आपराधिक साजिश के दोषी हुए तो जेल जाने तक की सजा संभव है। और यह फैसला उसी साल सकता है जिस साल लोकसभा चुनाव होने हैं। यानी 2019 में। भाजपा पक्के तौर पर इस फैसले का अपने पक्ष में इस्तेमाल करना चाहेगी।
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साभार: भास्कर समाचार
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