Thursday, December 10, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: भागीदारी से संभव हैं शीर्ष उपलब्धियां

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
वही पुरानी दुख भरी कहानी जो हम सभी ने सुनी है। पिता शराबी है। मां घरों में काम करती है। छोटी-सी कमाई में मां चारों बच्चों- दो बेटे और दो बेटियों को पढ़ाने की कोशिश करती है। पैसों की तंगी है। एक दिन संकट चरम पर पहुंच जाता है। मां के सामने एक ही विकल्प है कि एक बच्चे को स्कूल से निकाल ले ताकि वह
घर की जिम्मेदारी उठा ले ताकि मां कुछ और घरों में काम कर सके। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। रुक्मिणी घर की तीसरी संतान है, पहली कक्षा की छात्रा, लेकिन यह कुठाराघात उस पर हुआ, क्योंकि बड़ी बहन को पोलियो है। इसलिए सात साल की उम्र में पहली कक्षा की पढ़ाई छोड़कर वीपी रुिक्मणि ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठानी शुरू कर दी। वह खाना पकाना सीखती है और परिवार के घर लौटने से पहले साफ-सफाई का काम कर देती है। कई वर्षों के ऐसे ही संघर्ष के बाद एक स्टोर वर्कर के साथ उसकी शादी कर दी गई। यह शादी 1998 में उसे बेंगलुरू ले आई और यहां उसने एक गारमेंट फैक्ट्री- ट्रांसपोर्ट ओवरसीज ग्रुप कंपनी में काम शुरू कर दिया। 
यहां रुक्मिणी ने गारमेंट कर्मचारियों के सामाजिक सरोकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था के साथ काम शुरू किया और 2004 से 2006 के बीच वे इसकी संयोजक भी रहीं। गारमेंट कर्मचारियों की कानूनी मदद के लिए वे एक लेबर यूनियन की महासचिव भी बनीं और 2006 से 2011 तक यह जिम्मेदरी निभाई। लंबे अनुभव ने रुक्मिणी को काउंसलिंग, स्वास्थ्य के मामलों, यूनियन, महिला और श्रम कानून, गारमेंट कर्मचारियों के लिए बीमा, भविष्य निधि, लीडरशिप और प्रबंधन जैसे मामलों का विशेषज्ञ बना दिया। 2012 में उन्होंने अपने जैसे गारमेंट कर्मचारियों के साथ गारमेंट लेबर यूनियन (जीएलयू) बनाई। वे यहीं नहीं रुकीं। निरंतर इस मसले पर विचार करती रहीं कि कैसे गारमेंट कर्मचारियों को प्रताड़ना से निकाला जाए, ताकि उनकी कुछ समस्या तो हल हो। वह खुद भी सामान्य कर्मचारी रहते सुपरवाइजर और बॉस के हाथों कई तरह की प्रताड़ना और शोषण से गुजर चुकी थीं। 
वे गारमेंट कर्मचारियों के साथ होने वाले हर तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहती थीं। नई तकनीक, टैक्सटाइल के क्षेत्र में रहे बदलावों से लेकर फेयर ट्रेड तक, यूनियनों के फायदे और नुकसान से लेकर श्रम कानूनों की समझ तक, इस काम से जुड़े स्वास्थ के खतरों से लेकर कॅरिअर में आगे बढ़ने के अवसर तक, कपड़ों की रिसाइकलिंग से लेकर माइक्रो आंत्रप्रेन्योर तक, योन शोषण से जुड़े मामलों से लेकर सामाजिक सुरक्षा की जरूरत तक के बारे में उनकी गहरी जानकारी सभी को अपनी और खींचती है। इसीलिए बेंगलुरू की 1200 से ज्यादा गारमेंट फैक्ट्रियों में काम करने वाले 6 लाख से ज्यादा कामगार रुक्मिणी पर भरोसा करते हैं, क्योंकि वे उनके अधिकारियों के लिए 24/7 संघर्ष करती हैं। आज वे पीड़ित गारमेंट कर्मचारियों की आवाज अपनी रेडियो सीरिज के माध्यम से उठा रही हैं, जिसका नाम है- बिहाइंड लेबल। 
गारमेंट वर्कर्स द्वारा तैयार की गई यह सीरिज उन लोगों की कहानी सामने लाने का प्रयास है, जो हमारे कपड़े सिलते हैं। इसी साल जून से शुरू हुई इस सीरिज का प्रसारण कम्यूनिटी रेडियो पर सोमवार से शुक्रवार तक सुबह 8 से 8 .30 तक और शाम को फिर से 6 से 6.30 तक सुना जा सकता है। इसमें दिल को छू लेने वाले संघर्ष और जीत की कहानियां होती हैं। अभी तक करीब 80 कहानियों का प्रसारण हो चुका है। रुक्मिणी फैक्ट्रियों और घरों से कर्मचारियों की कहानियां जुटाती हैं। वे वॉइस क्लिप्स लेती हैं और उन्हें संपादित कर अपने शो में इस्तेमाल करती हैं। पहली कक्षा में स्कूल छोड़ देने वाली महिला के लिए सैकड़ों परेशान कामगारों की आवाज बनना बड़ी उपलब्धि है। 
फंडा यह है कि अगरपहली कक्षा की ड्रॉप आउट छात्रा उत्साह और भागीदारी के बल पर औद्योगीकरण के एक क्षेत्र के छह लाख से ज्यादा कामगारों के जीवन को बदलने के मिशन में लग सकती है तो हम सभी पढ़े-लिखे लोग तो चमत्कार कर सकते हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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