तीन साल से लड़ते-लड़ते थक गई, पर हार नहीं मानी। लेकिन आज सरकार ने उसे छोड़ दिया, जिसने मेरी बेटी को सबसे ज्यादा दर्द दिया था। अब आप ही बताइये मैं क्या करूं...? सुबह से हम परेशान हैं। जंतर-मंतर गई तो पुलिस ने वहां से हटा दिया। इंडिया गेट गई तो वहां बैठने तक नहीं दिया। मैंने उनके हाथ जोड़े, कहा कि
हम सिर्फ अपनी बात रखना चाहते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। लेकिन उन्होंने जबरन वहां से भी भगा दिया। हम भारत के नागरिक तो हैं, लेकिन इंडिया गेट हमारा नहीं है...। पुलिस बस में बंद करके ले गई और दूर छोड़ आई। हमें रोक दिया, पर दुष्कर्मी को खुलेआम घूमने के लिए छोड़ रहे हैं। तीन साल पहले तो सब कह रहे थे निर्भया देश की बेटी है... तो आज वो बेटी नहीं रही क्या? क्यों नहीं कुछ सोचते हैं उसके बारे में?
मैं अकेले क्या करूं... मजबूर होकर सड़क पर हूं। किसे अच्छा लगता है सड़कों पर धक्के खाना। एक हफ्ते पहले ही पता चल गया था कि वह छूट जाएगा। लेकिन मैंने तय किया था कि अंतिम पल तक लड़ूंगी। शायद किसी को समझ जाए। पर सरकार को तो फर्क ही नहीं पड़ता। छोड़ दिया उसे। मैं तो आज जीते जी मर गई हूं। आखिरी वक्त बेटी को किया वादा भी नहीं निभा पाई। ऐसे लोग जब छूट जाएंगे तो महिलाओं के खिलाफ अपराध कैसे कम होंगे? सरकार चाहती है कि लोग मरें और वो तमाशा देखे। लेकिन मैंने भी ठान लिया है, चाहे जितनी ठोकर खानी पड़े लड़ती रहूंगी।' -आशा देवी, ज्योति (निर्भया) की मां
निर्भया की मां; दिनभर परेशान होने के बाद अपनी बात कहते-कहते रो पड़ीं...
हाईकोर्ट के फैसले में कई खामियां हैं। हमने उन्हीं के आधार पर अपील की है। जुवेनाइल एक्ट के कुछ मुद्दों पर दोबारा सुनवाई होना जरूरी है। इसे सिर्फ सुप्रीम कोर्ट कर सकता है।' -स्वातिमालीवाल, अध्यक्ष, दिल्ली महिला आयोग
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साभार: जागरण समाचार
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