अरुण विश्वनाथन आम मध्यमवर्गीय लड़का है, जो भारतीय बाजारों में उपलब्ध चॉकलेट खाकर बड़ा हुआ। अब ऐसे बच्चे के लिए तो कॉर्नेल पर डार्क चॉकलेट और केक तो जैसे चमत्कार की तरह थे। पहले दिन तो वह उन चॉकलेट पर ऐसे टूट पड़ा कि बीमार ही हो गया, लेकिन उसे कैंडी की वैराइटी चॉकलेट स्प्रैड बहुत पसंद आए। जब उसने फूड साइंस और टेक्नोलॉजी एंड फूड प्रोसेसिंग एंड मार्केटिंग में डबल मास्टर्स करने और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से चॉकलेट में स्पेशलाइजेशन की इच्छा जताई तो माता-पिता ने पूछा कि क्या उसे इस कॅरिअर में पर्याप्त तनख्वाह मिलेगी। एक साल बाद 'गानाचे फार दा चॉकोहोलिक्स' के मालिक अरुण को अपने फैसले पर कोई रंज नहीं है। अब वह अन्य शहरों में अपनी चीजों को विस्तार देने की भविष्य की योजनाएं बनाने में लगा है।
आंचल चेतन को बेकरियों में जाना बहुत पसंद था। फिर उसने कलिनरी कोर्सेस का गढ़ माने जाने वाले लंदन के ले कॉर्डन ब्लू में बेकरी कोर्स करने की इच्छा जताई। पिता को संदेह था कि पता नहीं यह कोर्स उनकी बेटी को आर्थिक स्थिरता दे पाएगा कि नहीं पर फिर उन्होंने बेटी की बात मानकर उसके फैसले पर भरोसा कर लिया। वहां जाकर आंचल ने देखा कि उच्च पदों पर मोटी तनख्याह की नौकरियां करने वाले लोग वह सब छोड़कर बेकरी का कौशल सीखने आए हैं। इससे उसे भी आत्मविश्वास मिला। उसने शॉर्ट कोर्स खत्म किया और फिर अलग-अलग रेसिपी सीखने के लिए उसने कई बेकरियों में काम किया। स्वदेश लौटते समय पूरी हवाई यात्रा में वह सोचती रही कि वह अपने जुनून को क्या नाम दे। और जब उसका हवाई जहाज भारत में उतरा तो उसके नए बिज़नेस का नाम था, 'चॉकलेट एंड सच पैस्तीसेरी'
उस नई जगह में कई दिन ऐसे होते कि कोई बिक्री नहीं होती। वह हताश होकर मीनू बदलने पर विचार करने लगी। पर उसकी शिक्षा पर पैसा लगाने वाले पिता को लगता था कि नए मीनू को समझने में लोगों को वक्त लगता है। आज यह हालत है कि कैरट केक भी शेल्फ पर आते ही गायब हो जाती है। चूंकि अब इसे अनूठा समझा जा रहा है। पश्चिम में तो ये आम है, लेकिन पूर्व के लोगों के लिए यह नई चीज है।
खास मध्यवर्ग का ही विशाक चंद्रशेखरन ने भी, आंचल जहां से ट्रेनिंग लेकर आर्ई वहीं, बेकिंग सीखने की इच्छा जताई। माता-पिता तो ठीक रिश्तेदार भी यह कहकर हंसी उड़ाने लगे कि अय्यर का लड़का अब बिरयानी बेचकर जिंदगी चलाएगा। किंतु वह अपने फैसले पर डटा रहा और आज वह वीएस कैफे का मालिक है।
संयोग की बात है कि ये चारों तमिलनाडु के दूसरे दर्जे के शहर कोयम्बटूर के हैं और जोरदार बिज़नेस कर रहे हैं। अब उनके पालकों को उनकी आर्थिक सफलता की चिंता नहीं है। उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं है कि अन्य लोग उनके बच्चों के बारे में क्या कहते हैं, क्योंकि उनके लिए बच्चों की खुशी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
फंडा यह है कि जब आपके बच्चे अपने भविष्य के लिए जोखिम ले रहे हों और अपने संकल्प पर दृढ़ हो तो कृपया आप उनका साथ दें, क्योंकि वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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