चाहे महिलाओं के कार चलाने की बात हो या उनके खुलकर जीने की बात, सऊदी अरब के कड़े नियम और बैन ऐसा नहीं होने देते। इसीलिए कई रिपोर्टों में सऊदी अरब को महिलाओं के लिए 'नर्क' बताया गया है।
बहुत देरी से मिला महिलाओं को वोट डालने का हक: ब्रिटेन में जहां 1918 में तो न्यूजीलैंड में 1893 में ही महिलाओं को चुनाव में भाग लेने का हक दे दिया गया था। इसके करीब एक शताब्दी बाद साल 2011 में किंग अब्दुल्ला ने महिलाओं को कुछ हक देने का फैसला किया था, जिसे अब लागू किया
जा रहा है।
यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हालांकि, सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रशासन ने इस बार दो ऐसी महिलाओं की उम्मीदवारी खारिज कर दी है जो अपने एक्टिविज्म के लिए चर्चित रही हैं। इसलिए देश वाकई महिलाओं को हक देना चाह रहा है, इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय संशय की नजर से ही देख रहा है।
13 लाख पुरुष तो सिर्फ 1.3 लाख महिलाएं: दरअसल, इतने साल बाद मिले हक के बावजूद, करीब 7000 कुल उम्मीदमारों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 900 तक ही सीमित रही है। दूसरी ओर, 13 लाख पुरुष वोटर से काफी पीछे सिर्फ 1 लाख 31 हजार महिलाओं ने ही वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाया है। महिलाओं के बीच जागरुकता अभियान नहीं चलाने के लिए सऊदी अरब की आलोचना भी हो रही है। यह चुनाव काउंसिल की आधी सीटों (284) के लिए हो रहा है, बाकी आधी सीटों पर किंग के प्रतिनिधि होते हैं। इसलिए चुनाव के बावजूद सऊदी अरब की असल सत्ता राजा के हाथ में ही रहती है। वैसे भी म्यूनिसिपल काउंसिल सिर्फ साफ-सफाई जैसे छोटे काम ही संभालती है।
क्या-क्या है महिलाओं के लिए प्रतिबन्ध:
- बिना 4 चश्मदीद के रेप के अपराधी को सजा नहीं दिला सकतीं: सऊदी में लड़कियों के बालिग होने से पहले ही शादी करा दी जाती है। यहां पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने को रेप नहीं माना जाता है। वहीं, बलात्कार के लिए किसी आरोपी को तब तक सजा नहीं दी जा सकती, जब तक उसके चार चश्मदीद न हों।
- पब्लिक में गैर मर्दों से नहीं मिल सकतीं महिलाएं: सऊदी अरब में महिलाओं की स्थिति और आजादी को इस सबसे बड़े उदाहरण से समझा जा सकता है कि पब्लिक प्लेस पर यहां की महिलाएं गैर मर्दों से नहीं मिल सकती। महिलाएं सिर्फ अपने परिवार के लोगों के साथ ही पब्लिक प्लेस पर दिखाई देनी चाहिए। महिलाएं जब भी पब्लिक में जाएंगी, उनके साथ घर का एक पुरुष भी जरूर होना चाहिए। इस नियम को सख्ती से लागू भी किया जाता है, नहीं मानने पर महिलाओं को सजा दी जाती है, जिसमें पिटाई भी शामिल है। सऊदी में कई घरों में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग दरवाजे भी बनाए गए हैं। ये स्कूल, यूनिवर्सिटी और वर्कप्लेस में भी लागू होता है।
- महिलाओं के गाड़ी चलाने पर पाबंदी: सऊदी में महिलाओं के गाड़ी चलाने पर प्रतिबंध है। इसके पीछे ये सोच बताई जाती है कि बिना जरूरत महिलाएं घर से बाहर ना निकलें, अपनी मर्जी से वो कहीं बाहर ना चलीं जाएं, इस मौके का फायदा उठाकर वो पुरुषों के संपर्क में ना रहे। नियम तोड़ने के आरोप में कई महिलाओं को सजा भी सुनाई जा चुकी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाएं अपने निजी कम्पाउंड में गाड़ी चला सकती हैं।
- खुद बैंक एकाउंट भी नहीं खोल सकतीं: जहां काफी संख्या में महिलाओं ने सऊदी अरब में खुद का बिजनेस शुरू कर दिया है और नौकरी भी कर रही हैं, वे खुद अपना बैंक एकाउंट नहीं खोल सकतीं। बैंक एकाउंट खोलने के लिए पुरुष पेरेंट्स की सहमति अनिवार्य होती है।
- पुरुष पेरेंट्स के बिना नहीं जा सकती विदेश पढ़ने: सऊदी अरब के हायर एजुकेशन कानून के मुताबिक, सरकारी स्कॉलरशिप पर विदेश में पढ़ाई करने के दौरान लड़की के साथ पुरुष अभिभावक का होना ज़रूरी है। सऊदी ऑफिशियल पॉलिसी के मुताबिक, वहां लड़कियों को केवल इसलिए पढ़ाया जाता है, ताकि वे पारंपरिक इस्लामिक ढंग से अपनी जिम्मेदारियां निभा सकें।
- अकेले सफर करने पर पाबंदी: 38 साल की एक महिला रेहम रियाद में रहती है। वह तब तक प्लेन में बैठ नहीं सकती, जब तक उसके पास अपने बेटे द्वारा लिखित अनुमति नहीं होगी। यहां कानूनी रूप से बालिग होने के बावजूद महिलाओं का कोई अस्तित्व नहीं है। सऊदी में हर महिला का पुरुष अभिभावक होना चाहिए। इसमें उसके पिता से लेकर अंकल, भाई, बेटे होते हैं। किसी भी सऊदी महिला को पढ़ाई, काम, यात्रा, शादी और यहां तक डॉक्टरी जांच के लिए भी घर के पुरुष से लिखित अनुमति लेनी पड़ती है। इतना ही नहीं, महिलाएं बिना किसी पुरुष अभिभावक के केस तक फाइल नहीं कर सकती।
- बिना बुर्के के नहीं निकल सकतीं बाहर: सऊदी अरब दुनिया के उन चुनिंदा देशों में हैं जहां महिलाओं पहनावे पर सख्स पाबंदी है। यहां घरों से बाहर निकलने पर महिलाओं के सिर्फ हाथ और आंख ही बिना कपड़ों के दिखाई देने चाहिए। इसका पालन नहीं करने पर महिलाओं के साथ मारपीट भी की जाती है।
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साभार: भास्कर समाचार
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