सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सरकार को आदेश देने से इन्कार कर दिया है। सोमवार को अदालत ने इस मामले में दायर जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट संसद को कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकता। कानून बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह पोस्ट
आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के वकील अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने का आदेश देने की मांग की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इसके अभाव में धर्म के आधार पर भेदभाव होता है। ज्यादातर महिलाओं को इस भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर विचार करने से साफ इन्कार कर दिया।
सुप्रीमकोर्ट ने एसिड हमला पीड़िताओं की पीड़ा और भविष्य की संभावनाओं पर चिंता जताते हुए सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे एसिड हमले की शिकार पीड़िताओं को विकलांग सूची में शामिल करने पर विचार करें। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकारों से कहा है कि वे पीड़िताओं को मुआवजा और मुफ्त इलाज मुहैय्या कराने को लेकर जारी दिशा निर्देशों का पालन करें। न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल व न्यायमूर्ति सी. नागप्पन की पीठ ने ये आदेश बिहार की एसिड हमला पीड़िता दो बहनों का मामला उठाने वाली याचिका पर जारी किये। गैर सरकारी संगठन परिवर्तन केंद्र ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर एसिड हमला पीड़िताओं के पुनर्वास और इलाज का मुद्दा उठाया था। याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकारें ने पीड़िताओं के पुनर्वास और मुफ्त इलाज के बारे में लक्ष्मी मामले में दिये गए सुप्रीमकोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रही हैं। सुप्रीमकोर्ट ने अपने पूर्व आदेश को दोहराते हुए सभी राज्यों से उसका पालन सुनिश्चत करने को कहा है। कोर्ट ने बिहार की एसिड हमला पीड़ित लड़की को मुफ्त इलाज के अलावा 10 लाख रुपये मुआवजा देने का भी राज्य सरकार को आदेश दिया है। इसके अलावा सरकार दूसरी बहन जिसे हमले में कम चोटें आयी है उसे भी 3 लाख रुपये मुआवजा देगी। कोर्ट अपने आदेश मे कहा है कि 13 लाख की इस कुल रकम में से राज्य सरकार 5 लाख रुपये पीड़ित परिवार को एक महीने के भीतर और बाकी के 8 लाख रुपये तीन महीने के भीतर देगी।
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साभार: जागरण समाचार
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