दिल्ली के निर्भया केस को तीन साल बीत गए हैं। सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के इस मामले में दोषी किशोर की रिहाई की तिथि करीब आ रही है, लेकिन उसकी रिहाई को लेकर हाईकोर्ट ने फिलहाल अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। इसकी पहली वजह यह है कि निर्भया की मां के साथ केंद्र सरकार भी उसकी रिहाई के पक्ष में नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दूसरे याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत के सामने कहा है कि इस केस में ऐसा आदेश पारित किया जाए ताकि वह दूसरों के लिए एक नजीर बन सके। उनकी दलील है कि यह किशोर अपराधी भले ही सुधार गृह में तीन साल का समय गुजार चुका हो, लेकिन उसे कानून के तहत अभी दो साल तक और रखा जा सकता है। इस सिलसिले में कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। क्या दो साल के बाद इस अपराधी को समाज या परिवार स्वीकार करेगा? दो साल बाद 22 साल की उसकी आयु होने पर क्या उसकी रोजी-रोटी का कोई सरकारी प्रबंध होगा? उसका ठीक से पुनर्वासन न होने से कहीं उसके मन में समाज से प्रतिशोध लेने की ज्वाला तो नहीं धधक उठेगी? इस अपराधी की रिहाई से जुड़े ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका समय रहते उत्तर खोजा जाना जरूरी है। सच तो यह है कि यदि किसी किशोर ने जघन्य अपराध किया है और उसकी आयु भले ही 18 साल से कम हो तो भी उस पर आईपीसी की धाराओं के तहत ही मुकदमा चलना चाहिए, लेकिन ऐसे मामलों में सजा का निर्धारण सामाजिक अवधारणा और कानून के अनुसार ही होती है। इस किशोर को किशोर न्याय अधिनियम-2000 के प्रावधान के तहत केवल तीन साल की ही सजा हुई।
सजा के बाद भी किशोरों को सुधार गृह ही भेजा जाना कानून की मजबूरी है। यह बात और है कि ज्यादातर बाल सुधार गृहों की हालत बहुत खराब है। वे किसी जेल से कम नहीं हैं। राज्य सरकारें अधिकांश सुधार गृहों का जिम्मा गैरसरकारी संगठनों को सौंप देती हैं। इन सुधार गृहों की पहली शर्त यह है कि वहां का वातावरण मित्रवत होने के साथ-साथ वहां ऐसे किशोरों के लिए रोजगारपरक कुछ कोर्स चलने चाहिए, लेकिन खराब माहौल होने के कारण वहां से बाल अपराधियों के भागने की घटनाएं अब आम हो गई हैं। राज्य सरकारों के लिए बाल सुधार गृह उनकी अंतिम प्राथमिकता पर हैं। बाल सुधार गृहों में किशोर अपराधियों को सुधारने का काम मुश्किल से ही होता है। कई बार तो वे और बड़े अपराधी बन जाते हैं। देश में आज मात्र 815 किशोर सुधार गृह हैं जिनमें करीब 35 हजार किशोरों को रखने की ही व्यवस्था है जबकि देश में किशोर अपराधियों की संख्या लगभग 17 लाख है। निर्भया मामले के बहुचर्चित होने से इस केस का फैसला भले ही जल्दी हो गया हो, पर आज ऐसे हजारों नाबालिग इन बाल सुधार गृहों में अपना जीवन काट रहे हैं जो न्यायिक प्रक्रिया में देरी का शिकार है। ऐसे तमाम नाबालिग हैं जिनके खिलाफ आरोप पत्र तक प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। तमाम नाबालिग की उम्र 18 वर्ष पार कर गई है। आखिर ऐसे हालात में किशोर अपराधियों को सुधारने का काम कैसे हो सकता है?
जब हम दुनिया के प्रमुख देशों में किशोर अपराध और उनसे संबंधित न्यायिक प्रक्रिया पर निगाह डालते हैं तो पाते हैं कि जहां भारत में 18 साल से कम उम्र का अपराधी नाबालिग माना जाता है वहीं इग्लैंड में 18 साल से कम उम्र के किशोरों को देश के बाकी आम नागरिकों के समान ही सजा का प्रावधान है। चीन में यह आयु सीमा 14 से18 के बीच है। अमेरिका के कई राज्यों में संगीन अपराध करने पर 13 से 15 साल के किशोरों को भी गंभीर सजा दी जाती है। अरब के देशों में तो उम्र की कोई रियायत ही नहीं है। आखिर भारत में कोई तब्दीली क्यों नहीं हो रही है? निर्भया कांड के बाद कई गैर सरकारी संगठनों की ओर से किशोर अपराधियों की उम्र सीमा 18 से 16 तय करने की मांग उठी थी। इस मांग के समर्थन में दस सालों के आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे। उन आंकड़ों के हिसाब से यौन उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोत्तरी के बाद भी उनमें नाबालिग किशोरों की भागीदारी 1.2 फीसदी थी। शायद ऐसे ही आंकड़ों के कारण वर्मा कमेटी ने भी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उम्र सीमा कम करने से मना कर दिया। एक वजह यह भी थी कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के आधार पर ही किशोर अपराधियों की उम्र 18 तय की गई थी, लेकिन किशोर अपराध संबंधी ताजा आंकड़े बताते हैं कि 16-18 साल की उम्र के नाबालिगों की गिरफ्तारी में 60 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। नाबालिग किशोरों द्वारा अंजाम दी गई दुष्कर्म की घटनाओं में उनकी गिरफ्तारी में 288 फीसद की वृद्धि हुई है। चोरी और डकैती की घटनाओं में भी किशोरों की भागीदारी का ग्राफ बढ़कर 200 फीसद तक पहुंच गया है।
बच्चे अब छोटी उम्र में ही जवान हो रहे हैं। वे अपराध की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं। इसका कारण मोबाइल-इंटरनेट संसार से उनका परिचित होना और परिवार एवं स्कूल जैसी संस्थाओं का पर्याप्त असरकारी न होना है। जब किशोरों द्वारा किए जा रहे जघन्य अपराधों की प्रकृति पर गौर करने की मांग की जा रही है तब यह भी कहा जा रहा है कि नाबालिग अपराधियों के प्रति उदारता ही बरती जानी चाहिए। नाबालिगों से जुड़े अपराध के सही कारणों की खोज की भी मांग हो रही है। इस सबके बीच निर्भया कांड का नाबालिग दोषी अब बालिग हो चुका है। यह हमारे न्याय तंत्र की विडंबना है कि यौन अपराध की इतनी वीभत्स घटना में लिप्त होने के बाद भी वह जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का सहारा लेकर बच गया। चूंकि पिछले तीन सालों में उसके सुधार की कोशिशें कमजोर ही रही हैं इसलिए यह कहना मुश्किल है कि रिहा होने के बाद उसका व्यवहार कैसा होगा? इन परिस्थितियों में ऐसे फैसले का इंतजार पूरे देश को है जो सचमुच नजीर बन सके।
(लेखक समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर एवं मानद बाल न्यायिक मजिस्ट्रेट हैं)
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: जागरण समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.