Saturday, December 5, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: तीव्र संचार सुविधाओं से घटा हमारा धीरज

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
इस सप्ताह बुधवार-गुरुवार को मैंने दुनियाभर में तमिल बिरादरी के मेरे परिचितों को वॉट्स एप पर जवाब देते हुए 20 घंटे बिताए। वे चन्नई में भीषण बरसात के कारण परिजनों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। संचार के साधन ठप पड़ने से वे बहुत हताश हो गए थे। मैंने उन्हें बिजली लौटने तक इंतजार करने को कहा, क्योंकि
तभी मोबाइल फोन की बैटरी के अच्छी तरह चार्ज होकर संपर्क की गुंजाइश बनती थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुंबई के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. राजेश्वरी रवि ने गुरुवार को सुबह 5:30 बजे फोन किया और पूछा कि क्या मैं चेन्नई के नदम्पक्कम क्षेत्र में किसी को जानता हूं। आखिरी बार उन्हें मंगलवार को अपने माता-पिता के बारे में जानकारी मिली थी कि सेना की नौका उन्हें बचाने रही है। कोलकाता की सोमा चक्रवर्ती चेन्नई के निकट कांजीपुरम की एसआरएम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे बेटे सायन के बारे में बोलते समय आंसू नहीं रोक सकीं। अस्पष्ट टेलीफोन लाइन पर दो मिनट की बातचीत के सहारे उन्होंने 56 घंटे निकाल लिए थे। सायन बायो मेडिकल इंजीनियरिंग का प्रथम वर्ष का छात्र है। शहर के लगभग 90 फीसदी हिस्से में बिजली बंद कर दी गई थी, क्योंकि वहां सदी की सबसे भीषण बारिश हुई थी। संचार के साधन ठप होने का सीधा परिणाम चिंता और घबराहट में हुआ था। 
एक ओर तो टेलीविजन अपडेट और प्रभावित क्षेत्रों की तस्वीरों से शहर में आए संकट की हकीकत रेखांकित हो रही थी, जिसके कारण बताया जाता है कि 15,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। दूसरी तरफ अपने प्रियजनों की सुरक्षा के बारे में जानने की लाचारी उन्हें व्याकूल कर रही थी। जब टेलीफोन नहीं था तब 1969 के दिनों की ऐसी घटना मुझे याद आती है। हम चौथी कक्षा के विद्यार्थी नागपुर में पास की एक जगह कोराडी में पिकनिक लिए गए थे। एक अजीब-सी दुर्घटना में पास की नदी में डूबकर प्राथमिक कक्षा की शिक्षिका की मौत हो गई। उन दिनों मोबाइल फोन तो था नहीं और ट्रंक कॉल सुविधा वाला सबसे नजदीकी फोन बूथ कई किलोमीटर दूर था। 
वरिष्ठतम शिक्षक ने यह दुखद संदेश स्कूल के प्रिंसिपल को पहुंचाने का दायित्व लिया। मैं उनके साथ बूथ तक गया और दूर रहकर उन्होंने जो भी कहा, उसे सुना। दूसरे छोर पर मौजूद ट्रंक कॉल ऑपरेटर ने कहा कि कनेक्टिविटी खराब है और वह एक मिनट से ज्यादा की बातचीत की गारंटी नहीं दे सकती। प्रिंसिपल से बात करते हुए शिक्षक ने कहा, 'सर, सारे बच्चों सहित हम सब सकुशल है। केवल एक स्टाफ सदस्य के (उनका नाम), जो एक अजीब से हादसे में जान गंवा बैठीं, जब 3:30 बजे हम यहां से रवाना होने ही वाले थे। चूंकि तलाशी में तीन घंटे लग गए, इसलिए हम देर से पहुंचेंगे और संभव है पालक घबरा जाएं। यदि पालक फोन करें तो कृपया उनसे कहें कि वे स्कूल परिसर में रात 10 बजे आकर बच्चों को ले जाएं।' उन्होंने बताया कि हादसा शिक्षिका की गलती से हुआ। उन्होंने यह दुखद समाचार देने के लिए हिंदी की शिक्षिका को उनके घर भेजने को कहा, क्योंकि हिंदी टीचर को दिवंगत टीचर का परिवार अच्छी तरह जानता था। 
अंत में उन्होंने प्रिंसिपल से पूछा, 'क्या आपको कोई प्रश्न पूछना है।' इस पर प्रिंसिपल ने कहा, 'मैं अपने सहायक मूर्ति को कुछ नकदी के साथ भेजता हूं। तब तक आप वहीं ठहरिए' और फोन 1.10 मिनट के बाद कट गया। जब हम स्कूल पहुंचे तो हर पालक वहां मौजूद था। उनके चेहरे उदास थे और उन्हें दुर्घटना का पता चल गया था। दस मिनट में सारे बच्चों को घर भेज दिया गया, जबकि कई पालक दुर्घटना को लेकर स्कूल प्रिंसिपल की मदद के लिए रुक गए। घबराहट, चिंता, अधैर्य और मुद्‌दे की बात करने की अक्षमता अब हममें से कई लोगों में काफी बढ़ गई है, क्योंकि अब हमारे पास संचार की बेहतर सुविधाएं हैं। उन दिनों अपर्याप्त टेलीफोन सुविधा ने हमें सिखाया था कि थोड़े समय में पूरी जानकारी कैसे दी जाए। 
फंडा यह है किहमें खुद को चेन्नई जैसी बदलती स्थिति के मुताबिक खुद को प्रशिक्षित कर अनुकूल बना लेना चाहिए। ऐसी स्थिति मानवनिर्मित या प्राकृतिक हो सकती है। वरना हम अधीरता औरव्याकुलता के शिकार हो जाएंगे।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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