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साभार: जागरण समाचार
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2016 में हरियाणा में हुए पंच व सरपंचों के चुनावों में कई प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ने के लिए फर्जी 8वीं व 10 वीं के अंकपत्र व प्रमाणपत्र बनवाए। इसके लिए उन्होंने 50 हजार रुपये से लेकर 1.50 लाख तक खर्च किए। कोर्ट के
आदेश पर इस मामले की जांच के लिए कमेटी भी गठित की गई थी। जांच कमेटी ने हाल ही में राज्य सरकार को एक रिपोर्ट पेश की है। उप्र के जिन जिलों से फर्जी प्रमाणपत्र बनवाए गए हैं, उनमें मेरठ, गाजियाबाद, आजमगढ़, फैजाबाद, कानपुर, प्रतापगढ़ और इलाहाबाद के कई शिक्षण संस्थान शामिल हैं। जांच कमेटी अब हरियाणा सरकार से अनुमति लेकर उत्तर प्रदेश के इन शिक्षण संस्थानों पर कार्रवाई करेगी। इन सभी शिक्षण संस्थानों को चुनाव आयोग की ओर से नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाएगा। केस दर्ज कर ऐसे शिक्षण संस्थानों की मान्यता रद करने की सिफारिश भी की जाएगी।- हाई कोर्ट की जांच कमेटी की रिपोर्ट में पर्दाफाश
- 2016 में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए लागू की गई थी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता
उत्तर प्रदेश सरकार ने हरियाणा से की रिपोर्ट साझा: कुछ महीनों पहले ही उत्तर प्रदेश में फर्जी डिग्री, अंकपत्र व प्रमाणपत्र बनाने के आरोप में एक गिरोह पकड़ा गया था। जिसमें ये पता चला था कि इस गिरोह ने ही दो वर्ष पूर्व हरियाणा में हुए पंचायती चुनाव में प्रत्याशियों को फर्जी सर्टिफिकेट मुहैया कराए थे।
चुनाव के लिए जरूरी शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र ऐसे कई उम्मीदवारों ने मुंहमांगी कीमत देकर इसी गिरोह से खरीदी थीं। पुलिस ने जुलाई 2018 में इस गिरोह का पर्दाफाश किया था। इस गिरोह के पास से 16 सरकारी और प्राइवेट यूनिवर्सिटी व बोर्ड की 180 से ज्यादा मार्कशीट और डिग्रियां बरामद मिली थीं।
चुनाव के लिए जरूरी शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र ऐसे कई उम्मीदवारों ने मुंहमांगी कीमत देकर इसी गिरोह से खरीदी थीं। पुलिस ने जुलाई 2018 में इस गिरोह का पर्दाफाश किया था। इस गिरोह के पास से 16 सरकारी और प्राइवेट यूनिवर्सिटी व बोर्ड की 180 से ज्यादा मार्कशीट और डिग्रियां बरामद मिली थीं।
बता दें कि पंचायत चुनाव लड़ने के लिए हरियाणा सरकार ने 2016 में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की शर्त लागू कर ती थी। इसके अंतर्गत सामान्य वर्ग के लिए 10वीं, महिलाओं और अनुसूचित जाति के लिए 8वीं पास की शर्त रखी थी। वहीं अनुसूचित जाति से पंच बनने वाली महिलाओं के लिए 5वीं पास होना अनिवार्य किया गया था। सबसे पहले देश में राजस्थान ने पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता की शर्त लागू की थी। वहां भी फर्जीवाड़े के 400 केस सामने आए थे।