Saturday, February 13, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: प्रतिज्ञा दृढ़ है तो आप पहाड़ भी हिला सकते हैं

पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले का गांव भाबटा। जिला देश के सबसे गरीब जिलों में गिना जाता है। यहां 70 प्रतिशत आबादी गरीबी और अज्ञान के दलदल में फंसी है। किसी भी बच्चे का स्कूल जाना गांव में लग्ज़री माना जाता है, जबकि शिक्षा मुफ्त है, लेकिन ट्रांसपोर्ट, यूनिफॉर्म और किताबों का खर्च बहुत ज्यादा है। बाबर
अली खुशकिस्मत रहे। जूट का व्यापार करने वाले पिता मोहम्मद नजिमुद्‌दीन (50) का भरोसा शिक्षा में था। उन्होंने सिर्फ बाबर के ट्रांसपोर्टेशन पर हर साल 1800 रुपए खर्च किए, जो 2002 में काफी बड़ी रकम मानी जाती थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। नौ साल का बाबर यह देखकर दुखी होता था कि जो सुविधा उसे मिल रही है, वह गांव के अन्य बच्चों के पास नहीं है। वह गांव के बच्चों के लिए कुछ करना चाहता था। उसका दिन रोज सुबह पांच बजे शुरू होता। पहले कुछ दूर पैदल और फिर ऑटो से वह स्कूल पहुंचता। दोपहर दो बजे लौटकर आता और गांव के बच्चों को शाम तक पढ़ाता। हर रोज वह स्कूल में जो सीखता वह अन्य बच्चों के साथ साझा करता। समय के साथ अधिक बच्चे उसकी क्लास में शामिल होने लगे। उनमें से अधिकांश ने जीवन में कभी स्कूल नहीं देखा था और उन्हें स्कूल के बारे में कुछ पता भी नहीं था, जब तक उन्होंने बाबर के मुंह से इसके बारे में सुना नहीं था। जल्द ही उसे पता चला कि हर बच्चे में सीखने की काफी इच्छा है। 
कुछ महीनों में यह स्थिति हो गई कि छात्र इंतजार करते कि कब वह स्कूल से लौटेगा, यहां तक कि उसे खाना खाने का समय भी नहीं मिलता। उसकी मां और भाई-बहन भी उसका सहयोग करते, हालांकि, पिता को राजी होने में कुछ समय लगा। वह अपने स्कूल में शिक्षकों से चाक के टुकड़े मांगता। जब शिक्षरों को पता चला कि वह इनका उपयोग पढ़ाने में कर रहा है तो वे उसे चॉक का बॉक्स ही देने लगे। यह सिलसिला दो साल तक चलता रहा। गांव वालों ने इसकी गंभीरता को समझा और उन्होंने ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी से किताबें और पढ़ाई की अन्य सामग्री देने में मदद मांगी। चूंकि पूरा गांव उसके साथ था, इसलिए धीरे-धीरे इंतजाम होने लगे। सरकारी अधिकारियों ने उसे ब्लैक बोर्ड, किताबें और चॉक लाकर दिए। इस तरह 11 साल की उम्र में बाबर ने औपचारिक रूप से अपने स्कूल आनंद शिक्षा निकेतन का शुभारंभ किया। 
उसने गांव के बुजुर्गों की एक स्कूल कमेटी बनाई। फिर पास के गांव के हायर सेकंडरी स्कूल की प्रधानाध्यापिका फिरोजा बेगम से अनुरोध किया कि उसकी स्कूल की सचिव बन जाएं। बच्चे की ईमानदारी और गंभीरता की जीत हुई और वह राजी हो गईं। इन सब में अच्छी बात यह थी कि उसके जोश से गांव वाले एकसाथ आए और उन्होंने उसका सपना पूरा करने में मदद की। स्कूल के उद्‌घाटन की खबर को स्थानीय अखबारों ने तो छापा ही कोलकाता के एक बड़े अखबार ने भी इसे प्रकाशित किया। जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन की ओर से उसे बुलावा आया। जब वह 13 साल का हुआ तो कोलकाता के एक लर्निंग सेंटर शांतिनिकेतन से उसे संबोधित करने के लिए बुलावा आया। यहां श्रोताओं में पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री और कई बड़े प्रोफेसर शामिल थे। 
अगले साल बाबर को सीएनएन-आईबीएन का रियल हीरोज अवॉर्ड सुपरस्टार आमिर खान ने प्रदान किया। इसके बाद वह आमिर खान के प्रसिद्ध टीवी शो सत्यमेव जयते में भी आया। फिर बीबीसी भी उसके बारे में लिखने गांव पहुंचा। वह टेड फैलो बना और अपने स्कूल के बारे में टैड टॉक में बताया। उसका स्कूल अब घर के पीछे के हिस्से में लगता है और कक्षा आठ तक की क्लास स्कूल में लगने लगी है, जिसमें 300 नियमित छात्र हैं। स्कूल में 10 टीचर्स हैं और ये सभी स्वयंसेवी हैं और इसमें से चार तो उसी के स्कूल के पूर्व छात्र हैं, जिन्होंने यहां से निकलने के बाद ग्रेजुएशन किया। बाबर अब 22 साल को हो चुके हैं और फ्री स्कूल के अपने आइडिया को देशभर में आजमाना चाहते हैं। 
फंडा यह है कि अगर आप कुछ करने के लिए दृढ़ हैं तो पहाड़ हिलाना भी संभव है। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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