Friday, December 11, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: सभी के फायदे के लिए सभी पक्ष अच्छा करें

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
पचास साल के अनथप्पा मरिअप्पा रेशम किसान हैं और रागी और ज्वार जैसे मोट अनाज की खेती भी करते हैं। देश के अन्य किसानों की ही तरह वे भी बिजली-सब्सिडी से खुश नहीं हैं। कारण कोई और नहीं बल्कि बिजली का अनियमित आना-जाना है। वे देर रात तक जागते हैं जब तक कि बिजली जाए। जैसे ही बिजली आती है अपनी 5 एचपी क्षमता के इरिगेशन पावर (आईपी) सेट का स्विच ऑन करने के लिए खेत की और
दौड़ पड़ते हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस तरह वे अपनी दो एकड़ भूमि की सिंचाई कर पाते हैं। खेतों में 35 साल मेहनत करने के बाद आज उनके सहित 250 अन्य किसानों की इच्छा पूरी हो रही है। अब उन्हें लंबे समय तक अबाधित बिजली उपलब्ध है। वे सुबह 7 से शाम को 6 बजे तक अपने खेतों में सिंचाई करने जा सकते हैं। पिछले बरसों की तरह उन्हें आधी रात तक बिजली के आने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उनका गांव देश का पहला गांव बन गया है, जहां किसानों के लिए सौर ऊर्जा से बनी बिजली की आपूर्ति के लिए फीडर लगाया गया है। 
स्वागत है कर्नाटक के इस छोटे से गांव हारोबेले में। यहां 947 घर हैं और आबादी है 44,93। इनके पास 1,314 हैक्टेयर जमीन है। इस गांव ने मिलकर अच्छा काम करने और इससे टिकाऊ जीवनचर्या हासिल करने की बात को साबित कर दिया है। गांव में रेलवे स्टेशन है और ही अच्छी सड़कें, फिर भी सरकार की एक पहल से यह अचानक ताकतवर गांव बन गया है। इसे कहते हैं जनता का असली सशक्तीकरण। फीडर से कुल 310 लोगों को लाभ होगा। पहले चरण में 250 किसानों को फीडर से जोड़ दिया गया है, जबकि बचे हुए लोगों को दूसरे चरण में जोड़ा जाएगा। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 20 करोड़ रुपए है। किसानों को इसमें काई भी निवेश नहीं करना पड़ा, क्योंकि इन्स्टॉलेशन, सर्विस और मेंटेनेंस जैसे सभी काम दस साल तक कंपनी ही करेगी। किसानों को बस यह करना पड़ा कि अपनी 5 X 5 फीट जमीन सोलर पैनल लगाने के लिए देनी पड़ी। यह उन्होंने बड़ी खुशी से कर दिया, क्योंकि अबाधित बिजली के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। 
कुल 20 पेनल उनके खेतों में लगाए गए हैं, जिसमें से हर पेनल की क्षमता 300 वॉट है। 4 किलो वॉट सोलर पावर यूनिट 30 से 35 यूनिट बिजली हर दिन पैदा करती है। इसमें से हर किसान 20 से 25 यूनिट खर्च करता है। बाकी बिजली ग्रीड को चली जाती है। अगर बारिश होती है तो किसानों को अपनी मोटर चालू करने की जरूरत तक नहीं पड़ती और सारी बिजली ग्रीड को चली जाती है। यह किसानों के लिए कमाई का माड्यूल भी है। पीवी पेनल 50 प्रतिशत तक बड़े किए जा सकते हैं। आईपी सेट का इस्तेमाल चालू रहते भी ग्रीड को अतिरिक्त बिजली दी जा सकती है। अतिरिक्त बिजली ग्रीड को देने के लिए फीडर सुबह 6 से शाम को 6 बजे तक चालू रखे जाते हैं। आमतौर पर 66 प्रतिशत बिजली पंप को चली जाती है और 33 प्रतिशत ग्रीड को। सन एडिसन सोलर पावर इंडिया इस प्रोजेक्ट को चला रहा है। उन्हें उसी स्तर का वॉल्टेज मिल रहा है जो सामान्य पावर कंपनी से मिलता और पानी भी 600 फीट की गहराई से भी काफी फोर्स से ऊपर चढ़ाया जा रहा है। 
परियोजना में किसान, सरकार, सब्सिडी और बिजली कंपनी द्वारा वित्त पोषण किया गया है। 7.20 रुपए में से 6 रुपए पावर कंपनी द्वारा लोन चुकाने के लिए रख लिए जाते हैं, एक रुपया किसानों को भुगतान कर दिया जाता है और 20 पैसे सोसायटी के कॉपर्स फंड में डाल दिए जाते हैं। लौटाने की अवधि बिजली उत्पादन के आधार पर 10 से 12 वर्ष मानी गई है। इस व्यवस्था में सरकार पर पावर सब्सिडी का भार तो कम हुआ ही, किसानों को बिजली के अलावा पैसा कमाने का विकल्प भी मिल गया है। बिजली तो मिली ही है, आमदनी का साधन मिलने से अब सहकारिता के आधार पर आगे बढ़ने का रास्ता दिखाई देने लगा है। 
फंडा यह है कि सभीके लिए फायदे के हालात बनाना आसान है अगर सभी पक्षों का इरादा नेक हो।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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