साभार: जागरण समाचार
स्कूलों में वार्षिक परीक्षाएं सिर पर हैं। शिक्षकों की कमी से जूझ रहे ज्यादातर सरकारी स्कूलों के छात्र टेंशन में हैं कि परीक्षाओं में उनकी नैया कैसे पार लगेगी। खासकर दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने जा
रहे बच्चों को समझ ही नहीं आ रहा कि बगैर अध्यापकों के परीक्षा की तैयारी करें तो करें कैसे। प्रदेश में कुल 14 हजार 373 स्कूल हैं जिनके लिए शैक्षणिक स्टाफ के तहत एक लाख 28 हजार 791 पद स्वीकृत हैं। इनमें 52 हजार से अधिक पद खाली हैं। हालांकि वैकल्पिक रूप से करीब साढ़े तेरह हजार अतिथि अध्यापकों की सेवाएं ली जा रही हैं, लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है। साढ़े तीन हजार से अधिक स्कूल बगैर मुखिया के ही चल रहे हैं,जिससे इनमें व्यवस्था बुरी तरह डगमगाई हुई है।
स्टाफ की कमी से बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम भी गिरता जा रहा है। शिक्षकों की भर्ती के लिए शिक्षा विभाग कर्मचारी चयन आयोग से सिफारिश कर चुका, लेकिन भर्ती प्रक्रिया अमल में नहीं आ सकी है।
गांवों की हालत चिंताजनक: शहरी क्षेत्रों की बजाय गांवों में हालत ज्यादा चिंताजनक है। स्टाफ की कमी से शिक्षण कार्य पूरी तरह से चरमरा गया है। कई स्कूलों में आधे से अधिक पद खाली हैं। कई विषयों के शिक्षक नहीं होने से बच्चे कक्षाओं में खाली बैठने को मजबूर हैं। सबसे खराब स्थिति सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की है जिनमें लेक्चरर के 13 हजार से अधिक पद खाली हैं। शिक्षकों पर अध्यापन के अलावा वोटर लिस्ट, जनगणना, सर्वे, चुनाव ड्यूटी जैसे तमाम अन्य सरकारी काम लिए जाने से रही सही कसर पूरी हो जा रही है। अधिकतर स्कूलों में लाइब्रेरी भी नहीं है। साइंस की लैब में उपकरण नहीं तो कंप्यूटर धूल फांक रहे हैं।
- शिक्षा में सुधार के लिए सरकार पूरी तरह गंभीर है। पिछले तीन वषों के दौरान सरकारी स्कूलों की स्थिति में काफी तेजी से सुधार हुआ। दूसरे राज्य भी हमारी नीतियों का अनुकरण कर रहे हैं। शिक्षा विभाग में रिक्त पदों की रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। कर्मचारी चयन आयोग के जरिये जल्द ही 20 हजार से अधिक पदों पर नियुक्तियां होंगी। - रामबिलास शर्मा, शिक्षा मंत्री, हरियाणा