एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साभार: भास्कर समाचार
बारह मार्च 1993 को मैं मुंबई स्थित जुहू के सेंटौर होटल के बेसमेंट में बैठकर सेलेब्रिटी शेफ संजीव कपूर से बातचीत कर रहा था, जो तब वहां काम करते थे। वे कार पार्किंग तक मेरे साथ आए और कोने में खड़ी एक अन्य
कार की ओर इशारा करते हुए कहा, 'क्या आप जानते हैं यह किसकी है?' मैंने कहा, 'नहीं।' संजीव ने कहा, 'श्रीदेवी' की। मैंने मुस्कान के साथ कहा 'अच्छा,' चूंकि हमें मालूम था कि श्रीदेवी ने उस होटल को रहने का ठिकाना बना रखा है। समुद्र के नज़ारे वाले उस सुंदर होटल से मैं तीन किलोमीटर आगे भी नहीं गया था और मुझे धमाके की आवाज आई और ट्रैफिक जाम में किसी ने कहा, 'बम ने सेंटौर होटल को उड़ा दिया।' यह उन 12 बम धमाकों में से एक था, जिन्होंने तब बॉम्बे कहे जाने वाले शहर को हिला दिया था। चूंकि ये मोबाइल फोन के दिन तो थे नहीं कि किसी को सूचना दी जा सके या किसी से सलामती की खबर ली जा सके, मैंने तत्काल होटल लौटने का फैसला किया, क्योंकि श्रीदेवी वहां हो सकती थीं और हमें उनकी सुरक्षा के बारे में कुछ पता नहीं था।
कार की ओर इशारा करते हुए कहा, 'क्या आप जानते हैं यह किसकी है?' मैंने कहा, 'नहीं।' संजीव ने कहा, 'श्रीदेवी' की। मैंने मुस्कान के साथ कहा 'अच्छा,' चूंकि हमें मालूम था कि श्रीदेवी ने उस होटल को रहने का ठिकाना बना रखा है। समुद्र के नज़ारे वाले उस सुंदर होटल से मैं तीन किलोमीटर आगे भी नहीं गया था और मुझे धमाके की आवाज आई और ट्रैफिक जाम में किसी ने कहा, 'बम ने सेंटौर होटल को उड़ा दिया।' यह उन 12 बम धमाकों में से एक था, जिन्होंने तब बॉम्बे कहे जाने वाले शहर को हिला दिया था। चूंकि ये मोबाइल फोन के दिन तो थे नहीं कि किसी को सूचना दी जा सके या किसी से सलामती की खबर ली जा सके, मैंने तत्काल होटल लौटने का फैसला किया, क्योंकि श्रीदेवी वहां हो सकती थीं और हमें उनकी सुरक्षा के बारे में कुछ पता नहीं था।
सौभाग्य से श्रीदेवी होटल में नहीं थीं और उनकी कार सहित वहां संपत्ति का भारी नुकसान हु्आ था। उस कार के हमने फोटो खींचे थे। उस दिन हमारे पास बहुत काम था, क्योंकि तब तक पूरे शहर से ही धमाकों की खबरें आने लगी थीं और सैकड़ों लोग मारे गए थे। बाद में जब मैं संजीव से फिर मिला तो बातचीत में उन्होंने कहा कि श्रीदेवी बोल्ड अभिनेत्री हैं और हर स्थिति का वे शांत रहकर सामना करती हैं।
बरसों बाद मुझे उनका कहा 'बोल्ड' शब्द याद आया, जब मैंने श्रीदेवी को 'कौन बनेगा करोड़पति' में अमिताभ बच्चन के सामने बैठे देखा। वहां लाखों दर्शकों के सामने उन्होंने बिना किसी हिचक के बताया कि कैसे कमल हासन उन्हें 'श्रीदेवी सिंह' कहते थे, क्योंकि उनके चेहरे पर साधारण से अधिक बाल थे और काफी बाद में जाकर उन्होंने वैक्सिंग शुरू की। कैमरा उनकी बड़ी आंखों और भावपूर्ण चेहरे पर केंद्रित था, जहां बाल दिखाई नहीं दे रहे थे। वे वाकई बहुत साहसी थीं।
उनकी बोल्डनेस ने ही उन्हें उतने ही बोल्ड डायरेक्टरों से मिलाया जैसे के. बालाचंदर, जिन्होंने 1976 में उन्हें मात्र 13 वर्ष की उम्र में 'मूंद्रु मुडिचु' में प्रस्तुत किया और वह भी रजनीकांत व कमल हासन के साथ। उसमें वे हीरो से बदला लेने के लिए उसके पिता से विवाह करती हैं और हीरो को 'कन्ना' कहती हैं, जैसे वे अपने बच्चे को संबोधित कर रही हो। मेरा यकीन मानिए कि उस तरह की एक्टिंग सिखाई नहीं जा सकती। साहसी बच्ची के रूप में श्रीदेवी ने चार साल की उम्र में अभिनय शुरू किया और वह भी शिवाजी गणेशन जैसे अभिनेता के साथ।
हाल ही में एक आयोजन में मेरी उनसे मुलाकात हुई थी, जहां वे स्टेज पर सिर्फ पांच मिनट बोलीं और हर किसी को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। वे बहुत उल्लासपूर्ण तथा ज़िंदादिल थीं और बोल्डनेस से ही ये गुण कुछ इस तरह बाहर आते हैं। कुछ उनके 'सुडौल' न्यू लुक की प्रशंसा करते तो कुछ कहते कि खींच-तानकर बनाए न्यू लुक ने उनके स्वाभाविक सौंदर्य को बिगाड़ दिया। किंतु मेरे लिए तो फिर एक बार वे साहसी महिला ही हैं, जो उस इंडस्ट्री के कहे अनुसार करने को तैयार है, जिसके साथ वह काम कर रही है। यही वजह है कि इस सोमवार जब सोशल मीडिया पर यह बहस चल रही थी कि कहीं वजन कम करने और युवा दिखने के लिए उठाए कदमों के कारण ही तो 54 वर्षीय अभिनेत्री हमसे विदा तो नहीं हुईं, मेरे दिल ने सोशल मीडिया की इन बातों को फारवर्ड करने से इनकार कर दिया।
फंडा यह है कि  हर व्यक्ति में पैदाइशी गुण होते हैं और वे कभी नहीं बदलते। हमारे विकास के साथ वे नए अवतार ग्रहण करते जाते हैं।