साभार: जागरण समाचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से शाह बनाने के लिए प्रयासरत भाजपा सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रही है। भाजपा जहां जाटों को गले लगाने का कोई मौका नहीं चूक रही, वहीं गैर जाटों को भी नाराज नहीं करना चाहती।
जाट आरक्षण आंदोलन में दर्ज मुकदमे वापस लेने का ही दबाव है कि सरकार को अब डेरा प्रेमियों को देशद्रोह के आरोप से मुक्त करने की पटकथा तैयार करनी पड़ी।
उल्लेखनीय है कि पंचकूला की जिला अदालत ने गत वर्ष 25 अगस्त को हुई हिंसा और आगजनी के मामले में 53 अभियुक्तों पर लगी देशद्रोह तथा हत्या के प्रयास की धाराएं हटा दी हैं। इनमें अधिकतर डेरा सच्चा सौदा सिरसा की 45 सदस्य कमेटी के सदस्य हैं। हरियाणा पुलिस कोर्ट में ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर सकी, जिसमें यह साबित हो सके कि इनका इरादा देशद्रोह अथवा लोगों की हत्याएं करने का था। अदालत में जो आरोप पत्र पेश किया जाता है, उसमें पुलिस को आरोपों के संबंध में तथ्य पेश करने होते हैं।
हरियाणा पुलिस आरोपित डेरा प्रेमियों के खिलाफ निर्धारित 90 दिन की समय अवधि में आरोप साबित नहीं कर पाई है। डेरा प्रेमियों को बचाने के लिए दो स्तर पर काम हुआ है। पहले तो पुलिस ने निर्धारित समय अवधि में चालान की तमाम औपचारिकताएं पूरी नहीं की। फिर अंतिम समय में जब हरियाणा सरकार के देशद्रोह की धाराओं के बारे में उसकी राय जानी गई तो गृह विभाग ने पुलिस को समय से कोई जवाब नहीं दिया। नतीजतन कोर्ट में केस कमजोर पड़ गया और इसी का फायदा डेरा प्रेमियों को मिला है।
डेरे की कृपा का ऋण उतारने के पक्ष में मंत्री और विधायक: मनोहर सरकार में शामिल कई मंत्री ऐसे हैं, जो डेरे की कृपा से ही मंत्री बने हैं। विधायकों को भी डेरे की राजनीतिक ताकत का अहसास है। यह मंत्री और विधायक अपने भविष्य की चिंता करते हुए सरकार को यह समझाने में कामयाब रहे कि गैर जाटों को खुश करने के लिए डेरा प्रेमियों के प्रति नरम रुख जरूरी है।
डेरा प्रेमियों को राहत देने के होंगे दो राजनीतिक फायदे: डेरा प्रेमियों को राहत देने के दो फायदे होंगे। पहला तो यह कि डेरा समर्थकों के बीच जाने में भाजपाइयों को कोई हिचक नहीं होगी और दूसरा यह कि जब जाटों के ऊपर दर्ज मुकदमे वापस लेने की बात उठेगी तो खुले तौर पर यह कहा जा सकता है कि गैर जाटों के प्रति भी सरकार का रुख नरम ही रहा है।
डेरा प्रेमियों को राहत देने के होंगे दो राजनीतिक फायदे: डेरा प्रेमियों को राहत देने के दो फायदे होंगे। पहला तो यह कि डेरा समर्थकों के बीच जाने में भाजपाइयों को कोई हिचक नहीं होगी और दूसरा यह कि जब जाटों के ऊपर दर्ज मुकदमे वापस लेने की बात उठेगी तो खुले तौर पर यह कहा जा सकता है कि गैर जाटों के प्रति भी सरकार का रुख नरम ही रहा है।