Sunday, February 21, 2016

कहीं राजनीतिक साजिश तो नहीं ये आंदोलन

गिरिराज अग्रवाल
6 फरवरी सेपहले तक हरियाणा में कहीं कोई ऐसी बड़ी सभा या बैठक नहीं हुई, जिसमें जाट आरक्षण के लिए फिर से सीधे आंदोलन करने का एलान हुआ हो। तभी 7 फरवरी को नरवाना के सर छोटूराम पार्क में आदर्श जाट महासभा और बिनैण खाप के कुछ नेताओं ने एक सभा की। उसी दिन संघर्ष का एलान हुआ और अगले दिन इनके नेता मिनी सेक्रेटिरिएट के सामने अनशन पर बैठ गए। 27 फरवरी को विधानसभा घेरने की धमकी दी। इससे पहले 15 फरवरी को हरियाणा बंद की घोषणा हुई। लेकिन, ये सभा और खाप पूरे हरियाणा में आंदोलन किसी भी हाल में नहीं कर सकती थीं। तभी अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष हवा सिंह सांगवान इस आंदोलन में कूद पड़े। सरकार को लगा कि मामला शायद गंभीर हो रहा है, इसलिए आदर्श जाट महासभा के नेताओं को बातचीत के लिए 9 फरवरी को चंडीगढ़ बुला लिया। बातचीत में प्रस्तावित आंदोलन को 31 मार्च तक टाल दिया गया। चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी, जिसे 31 मार्च से पहले आरक्षण के मुद्दे पर रिपोर्ट देने को कहा गया। 
लेकिन, जाटों को बातचीत के लिए बुलाने में सरकार ने एक बड़ी गलती कर ली। ये गलती थी हवा सिंह सांगवान और यशपाल मलिक गुट को इग्नोर करना। दोनों नेताओं ने इसे स्वाभिमान का मुद्दा बना दिया और सरकार के खिलाफ तुरंत आंदोलन शुरू की रणनीति बनानी शुरू कर दी। तीन दिन बाद 12 फरवरी को सांगवान गुट मय्यड़ में जुटा और उसी दिन सैंकड़ों लोग रेलवे ट्रैक पर जा बैठे। कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने सांगवान से बात की और 2 दिन में रेलवे ट्रैक खाली भी करा दिया। दूसरी, तरफ मलिक गुट इस बात से भी नाराज हो गया कि सरकार ने दोनों ही बातचीत में उसे शामिल नहीं किया। इसी वजह से मलिक गुट ने 15 फरवरी को रोहतक के सांपला में आंदोलन शुरू कर दिया। इससे ठीक एक दिन पहले सांगवान गुट पीछे हट चुका था। इसके बाद सरकार ने गलती सुधारते हुए सभी गुटों को बातचीत के लिए चंडीगढ़ बुला लिया। 
17 फरवरी को चंडीगढ़ में बैठक हुई। इसके लिए जिन 126 नेताअों को सरकार ने बुलाया, उनमें से ज्यादातर भाजपा नेताओं के समर्थक हैं। ये सरकार की तीसरी बड़ी गलती थी। खैर, सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब तक एसबीसी कैटेगरी में आरक्षण स्थायी नहीं होता, तब तक जाटों समेत पांच जातियों को आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल करके आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। जाटों ने बैठक में तो हामी भरी, लेकिन बाद में मुकर गए। इसलिए, क्योंकि फील्ड में बैठे आंदोलनकारियों ने इन नेताअों की बात सुनने से ही इनकार कर दिया। अब आंदोलन नेताविहीन हो चुका था। भाजपा के जाट लीडर चंडीगढ़ और दिल्ली में जम गए। कोई भी फील्ड में जाकर अपने-अपने प्रभाव वाले इलाकों में लोगों को मनाने नहीं गया। हैरानी की बात तो ये है कि किसी भी गैरजाट मंत्री ने तो सीएम खट्‌टर को सलाह दी और ही सीएम ने उनसे बात की तीन दिन तक सिर्फ जाट मंत्रियों की ही सीएम खट्‌टर से आंदोलन से निपटने को लेकर बात हो रही है। 
दूसरी तरफ भाजपा सांसद राजकुमार सैनी ओबीसी के पक्ष में उतर चुके थे। उन्हें रोककर भाजपा सरकार ने चौथी बड़ी गलती की। उनके बयानों से पहले रोहतक -भिवानी और फिर जींद, नरवाना, झज्जर में ओबीसी कैटेगरी के लोग आंदोलन कर रहे जाटों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। शुक्रवार को हल्की झड़प हुई, लेकिन शनिवार को दोनों तरफ से ईंटे-पत्थर चलने शुरू हो गए। तब जाकर भाजपा को गलती का अहसास हुआ और सैनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। दूसरी तरफ कैप्टन अभिमन्यु जाटों के समर्थन में खड़े हो गए। उनसे सरकार ने कोई सवाल-जवाब नहीं किया, ताकि वह खुद को जाटों के पक्ष में दिखा सके। सरकार का ये रवैया सैनी के आह्वान पर सड़कों पर उतरे युवाओं को रास नहीं आया। 
आखिर बात यहां तक पहुंची कैसे? इसका जवाब हवा सिंह सांगवान कुछ ऐसे देते हैं- 2011 तक जाटों के सिर्फ तीन गुट थे। हमारा, मलिक का और कर्नल सिद्धू का। सरकार हर बार हमें टरकाती रही, जिस वजह से खापों के साथ-साथ युवाओं के कई गुट बन गए, जो अब हमारे कंट्रोल में नहीं हैं। हम इन्हें समझाने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन वे हमारी बात ये कहकर अनसुना कर देते है ंकि आप जाट समाज का नुकसान कर रहे हो। ये छोटे-छोटे गुट हमसे जुड़े सीनियर नेताओं को भावनात्मक रूप से आंदोलन के लिए मजबूर कर रहे हैं। तो क्या प्रदेश सरकार हिंसा रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकती? इसका जवाब अब खट्‌टर सरकार से नहीं मिल रहा।

इंटेलिजेंसने पहले इनपुट नहीं दिया, जब दिया तो इग्नोर कर दिया: आमतौरपर सीआईडी, इंटेलीजेंस के माध्यम से सरकार और जिला प्रशासन के पास आंदोलनकारियों की रणनीति का इनपुट होना चाहिए था। सीआईडी और इंटेलीजेंस संभाल रहे अफसरों ने या तो शासन-प्रशासन को सही फीडबैक नहीं दिया या फिर जानबूझकर उस फीडबैक की अनदेखी की गई। स्थानीय जिला प्रशासन को सीआईडी के फीडबैक के आधार पर केवल पीस कमेटियों की मीटिंग बुलाकर आंदोलन भड़कने से रोकना चाहिए था, बल्कि धारा 144 लागू करने का कदम बहुत पहले ही उठा लेना चाहिए था। आंदोलन में एंटी सोशल एलिमेंट को घुसने से रोकने के लिए एहतियातन पहले ही गिरफ्तारियां करनी चाहिए थीं। 
पुलिसने कहीं भी कुछ नहीं किया, क्योंकि ऊपर से आदेश थे: रोहतक,झज्जर, भिवानी, हिसार समेत कई जगहों पर जब बहुत कम संख्या में आंदोलनकारी हाइवे, रेलवे ट्रैक जाम करने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें तभी सख्ती से रोका जा सकता था। लेकिन, हर जगह पुलिस चुप बैठी रही। पुलिस को सरकार के निर्देश थे कि तो लाठीचार्ज करना है और ही कोई सख्ती करनी है, नहीं तो आंदोलन और भड़क जाएगा। यही वजह है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान आंदोलनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने कहीं भी तो रबड़ की गोलियां चलाईं, आंसू गैस के गोले छोड़े और ही वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। यहां तक कि कुछ स्थानों पर तो पुलिस के डीएसपी और अन्य अधिकारियों ने खुद जाम लगाने को उकसाया। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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