Thursday, February 11, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: सतत सफलता के लिए जीत को पीछे छोड़ आगे देखें

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
इस सप्ताह मंगलवार को अंडर 19 वर्ल्ड कप क्रिकेट के सेमीफाइनल मैच में श्रीलंका के खिलाफ भारतीय टीम ने 97 रन से बड़ी जीत दर्ज कर फाइनल में प्रवेश किया, जबकि भारत की सीनियर टीम अपने ही ग्राउंड पर इसी देश की सीनियर टीम के खिलाफ मैच हार गई। हालांकि, भारत के पास सबसे विध्वंसक और दुनिया की
एक नंबर वन टी-20 बैटिंग यूनिट वाली टीम है। विरोधी टीम अनुभवहीन, कैच पकड़ने में सुस्त और मैदानी फिल्डिंग में लचर थी, लेकिन उस युवा, विरोधी टीम ने बड़ी भारी भारतीय टीम के खिलाफ जोश से भरकर और लाइन लेंथ बनाए रखकर एक जैसी चुस्त बॉलिंग की। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भारत ने पिच को दोष देने में देर नहीं लगाई। हालांकि, मैच के ठीक पहले भारतीय प्रसारकों ने कहा था कि विकेट पर मौजूद घास के कारण खूब चौक और छक्के लगेंगे, दर्शकों का खूब मनोरंजन होगा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। भारत के शीर्ष आठ बल्लेबाजों में से छह एक अंकीय स्कोर पर ही मैदान से चलते बने। इन सभी बल्लेबाजों में समझदारी से बल्लेबाजी नहीं की और खराब गेंद का इंतजार नहीं किया। इस टीम ने पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ विध्वंसक टीम की इमेज बनाई थी, िकक्रेट में माहिर एक ऐसा देश, जहां क्रिकेट खेल से बढ़कर बहुत कुछ है, वह इमेज इस मैच के शुरू होने के 45 मिनट बाद ही नष्ट हो गई। 
अगस्त 2015 में श्रीलंका की टीम के 22 साल के तेज गेंदबाज कसन रंजीथा प्रेमदासा स्टेडियम में भारतीय टीम के अधिक से अधिक खिलाड़ियों के साथ सेल्फी लेने की कोशिश में लगे थे। इसके पहले वे कभी किसी अंतरराष्ट्रीय टीम में नहीं आए थे। वे उन खिलाड़ियों के साथ सेल्फी लेते हुए झिझक रहे थे, जिन्हें उन्होंने उसी दिन आउट किया था। मंगलवार को भी उन्होंने अच्छी गेंदबाजी जारी रखी और उनका गेंदबाजी विश्लेषण 4-0-29-3 रहा। अगर आपने मैच देखा हो तो रंजीथा ही थे, जिन्होंने भारत के अधिक मूल्यवान शीर्ष क्रम को ध्वस्त किया, जिसके बल पर उनकी टीम ने तीन टी-20 मैचों में से पहले मैच में जीत हासिल की। खेलों में कहा जा सकता है कि हारना और जीतना तो खेल का हिस्सा है, लेकिन कॉर्पोरेटर जगत में यह पूरी तरह नामंजूर है, क्योंकि दूसरा मौका कभी नहीं मिलता। व्यवसाय जगत में भीषण कॉर्पोरेट लड़ाइयां अब काफी आम हो गई हैं। एयर बी एंड बी जैसी कंपनियां जो दुनिया के किसी भी कोने में एक भी होटल खोले बिना 10 अरब डॉलर की हॉस्पिटेलिटी कंपनी बन गई है, से लेकर उबर जैसी ट्रांसपोर्ट कंपनियां इसमें शामिल हैं, जिसके कारों के बेड़े में अपनी कारें है ही नहीं। 
भारत में स्टार्टअप कंपनियां पुरानी स्थापित कंपनियों की नींव हिला रही हैं और अब उन्हें प्रेम से 'डिस्ट्रक्टिव इनोवेटर्स' कहा जा रहा है। मुझे याद है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम हमेशा कहते थे सफलता ऐसी चीज है जिसका उत्सव मनाया जाना चाहिए, लेकिन असफलता पर अपनी पूरी ताकत उसके समाधान में लगा देनी चाहिए। जब पहला पीएसएलवी लॉन्च असफल हुआ था तब वे सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार भी थे। वे तुरंत फ्लाइट से श्रीहरिकोटा पहुंचे और पूरा दिन और रात स्टाफ के साथ बिताई ताकि वे इस असफलता से निकल सकें और रिकवरी प्लान पर काम कर सकें। उनका मानना था कि असफलता शिक्षक है। पहली बार सेटेलाइट की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग के छह घंटे बाद जब उन्होंने देखा कि स्टाफ अभी भी जश्न मना रहा है, तो उन्होंने अधिकारियों को फोन किया, उनकी सराहना की और कहा कि अब अगले प्रोजेक्ट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसे गुणवत्ता और समय प्रबंधन के मामले में अगले स्तर पर ले जाए जाने की जरूरत है। 
फंडा यह है कि कर्मचारियोंको प्रोत्साहित करने के लिए जश्न महत्वपूर्ण है, लेकिन उसे पीछे छोड़कर अगले प्रोजेक्ट के मापदंडों को ऊंचा करने पर ध्यान केंद्रित करना कर्मचारी और कंपनी को लगातार सफलता की ओर ले जाता है।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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