Thursday, February 11, 2016

बात कानून की: परिजन को वृद्धाश्रम में छोड़ना कानूनी अपराध

बुजुर्गों को आज के समाज में परिवारों में अच्छा माहौल नहीं मिल पाता है। कई संतानें या परिजन उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं और उनकी देखभाल नहीं करते। इस तरह बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में छोड़ना कानूनी अपराध है। साथ ही अत्याचार होने पर बुजुर्गों को शिकायत कर गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है। देश में हजार से अधिक वृद्धाश्रम रजिस्टर्ड हैं। इसमें से 278 बीमार बुजुर्गों के लिए हैं, जबकि 101 विशेषतौर पर
बुजुर्ग महिलाओं के लिए हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।अपने देश में 60 वर्ष और इससे अधिक के व्यक्तियों को वरिष्ठ नागरिक माना जाता है। इस श्रेणी के लोगों की आबादी 2001 में 7.7 करोड़ के करीब थी, जिसमें से 3.8 करोड़ पुरुष और 3.9 करोड़ महिलां थीं। अब जबकि लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ है। आंकड़ों के अनुसार करीब 11 फीसदी बुजुर्गों के पास ही सेवानिवृत्ति के बाद भी आय के स्रोत रहते हैं। 10 फीसदी बुजुर्गों तक तो सुविधा मिलने पर भी पेंशन नहीं पहुंच पाती है। भारत में तो 65 वर्ष के बाद स्वास्थ्य बीमा सेवा भी नहीं दी जाती, जबकि पश्चिमी देशों में 80 वर्ष की उम्र तक स्वास्थ्य बीमा सुविधाएं दी जाती हैं। 
एकल या छोटे परिवारों में बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल ठीक से नहीं हो पाती है। अधिकांश मामलों में बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। कुछ साल पहले एक बुजुर्ग सिख अपने पुत्र और पुत्र-वधुओं के अत्याचार से इतने परेशान हो गए कि वे एक जज के घर के बाहर गेट पर बैठ गए। जब जज ने कारण पूछा तो उपेक्षा की बात पता चली। जज ने पुलिस अधिकारियों को उनके पुत्र और बहुओं के पास भेजा। तब बेटे और बहू नाटक करने लगे। चारों बेटों को बुजुर्ग को पांच-पांच हजार रुपए महीने देने का निर्देश हुआ और निचले फ्लोर पर रहने की जगह देने को कहा गया। ऐसी शिकायतें आम हैं कि बुजुर्गों को भोजन और दवाओं तक के लिए वंचित रखा जाता है। इनकी संपत्ति लेकर इनके वारिस उन्हें वृद्धाश्रम में भी भेज देते हैं। यह सभी अनैतिक और गैर-कानूनी भी है। 
हिंदू दत्तक एवं देखभाल कानून 1956 के अनुसार ऐसे माता-पिता जिनके पास आय के साधन नहीं हो, उनकी देखभाल का दायित्व उनके उत्तराधिकारियों (वारिसों) का ही बनता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल का अधिकार बेटे और बेटी की जिम्मेदारी होती है। ईसाई और पारसी समाज में इस आशय का पर्सनल लॉ नहीं है। ऐसे में बुजुर्गों को गुजारा भत्ता के लिए 'कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर' 1973 के अंतर्गत आवेदन देना पड़ता है। विवाहित बेटी को भी देखभाल की जिम्मेदारी दी जा सकती है। 
1999 में केंद्र सरकार ने बुजुर्गों के लिए राष्ट्रीय नीति की घोषणा की, जिसके अंतर्गत स्वास्थ्य, सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और सुचारू जीवन को ध्यान में रखकर कई सुविधाएं दी गई। इसके बाद 2007 में 'मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट' आया। इसके द्वारा वृद्ध माता-पिता की देखभाल करना एक कानूनी जिम्मेदारी बना दिया गया। इस कानून में बुजुर्गों की जिंदगी और संपत्ति को बचाने का सरल, त्वरित और कम खर्च वाला रास्ता बताया गया। इस कानून ने प्रभावी तरीके से देखभाल और कल्याण के कार्यों को गति दी। इस कानून के अंतर्गत जो व्यक्ति 60 या इससे अधिक की आयु के हैं, वे वरिष्ठ नागरिक माने जाएंगे। इसमें परिजन उस व्यक्ति को कहा गया है, जो वरिष्ठ नागरिकों के उत्तराधिकारी हों। साधनहीन बुजुर्गों को भी उचित, गुजारा भत्ता, आहार, आश्रय, कपड़ा, चिकित्सा और उपचार की सुविधाएं दी गई हैं। ऐसे व्यक्ति भी जिनके उत्तराधिकारी हो, वे उनसे गुजारा भत्ता ले सकते हैं, जो उनकी संपत्ति को लेना चाहते हो। ऐसे बुजुर्ग स्वयंसेवी संस्थाओं से भी मदद और गुजारा भत्ता ले सकते हैं। मेंटेनेंस मिलने पर या अन्यायपूर्ण व्यवहार पर ऐसे बुजुर्ग विशेष न्यायाधिकरण या ट्रिब्यूनल में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। न्यायाधिकरण को 90 दिन में फैसला देना होता है। ऐसे बुजुर्गों को अधिकतम दस हजार रुपए का गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। साथ ही कोई गिफ्ट या भेंट जो बुजुर्ग ने अगर परिजनों को हस्तांतरित की हो तो इसके एवज में गुजारा भत्ता देना होगा, नहीं तो यह गिफ्ट या भेंट बुजुर्ग को वापस देनी होगी। 
नंदिता झा (हाईकोर्टएड्वोकेट, दिल्ली ) 

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साभार: भास्कर समाचार 
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